
राजेन्द्र चौधरी
1974 पुस्तक का विमोचन मुम्बई के यूसुफ मेहर अली सेंटर में 6 अप्रैल 2025 को महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी एवं जयप्रकाश नारायण के साथ रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने किया था। इस अवसर पर आयोजन में 1942 आन्दोलन के सौ साल पूरा कर चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जी.जी. पारिख को यह पुस्तक भेंट की गई। पुस्तक का सम्पादन अम्बरीष कुमार और श्री अरूण कुमार त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से किया है। यह पुस्तक वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। 1974 पुस्तक के माध्यम से राजनीति में रुचि रखने वाले पाठकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित जागरूक समाज के लोगों के लिए एक दस्तावेज है जिससे आपातकाल के पूर्व लोकतंत्र की मजबूती के लिए हुए आन्दोलन एवं संघर्ष की पृष्ठभूमि से परिचित हुआ जा सकता है। वर्तमान दौर के भारतीय लोकतंत्र विशेषकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का होना महत्वपूर्ण है जिनके नेतृत्व में समाजवादी लोग संविधान बचाने का अभियान मजबूती से चला रहे है। आपातकाल के पांच दशक बाद संविधान और लोकतंत्र का सबक
बीते वर्ष सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की बाबा साहेब के संविधान बचाने के अभियान और मुखर बयानों का यूपी के जनमानस पर ऐसा असर हुआ कि समाजवादी पार्टी सांसदों की संख्या के हिसाब से देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। समाजवादी विचारधारा एवं नागरिक अधिकार अखिलेश यादव की प्राथमिकता में शामिल हैं। बीते वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ 1942 भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहने वाले वयोवृद्ध जी.जी. पारिख के जन्म शताब्दी दिवस पर अखिलेश यादव ने विशेष शुभकामना संदेश प्रेषित किया था। इसी क्रम में उन्होंने हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘1974‘ व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन और जेपी समाजवादी आंदोलन की विरासत है।
अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में राजधानी लखनऊ में भव्य स्मारक ‘‘जेपी एनआईसी‘‘ बनवाया था। इसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं के साथ लोकतंत्र के दूसरे संघर्ष की पूरी कहानी भी चित्रित की जानी थी। भाजपा सरकार को इस स्मारक से इतनी चिढ़ हुई कि उसने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर गतवर्ष जेपी एनआईसी पर ताला डलवा दिया था। भाजपा सरकार ने जेपी की जयंती के अवसर पर अखिलेश यादव को जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से रोक दिया था। अंततः अखिलेश यादव ने सरकारी रोक के बावजूद जेपी एनआईसी का गेट फांदकर जेपी के सम्मान में उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण कर साबित कर दिया था कि उनकी प्राथमिकता में स्वतंत्रता से बढ़कर और कुछ नहीं है।
अपनी विरासत को सहेजकर भविष्य के समाज निर्माण की चुनौतियों के लिए सचेत होकर सक्रिय रहना ही राजनैतिक कार्यकर्ताओं का मूल कर्तव्य है। लोकतंत्र और समाजवादी आंदोलन की यात्रा एक प्रकाश की भांति हमारा रास्ता प्रशस्त करता है। 1974 व्यवस्था-परिवर्तन का आंदोलन और जेपी का सपना पुस्तक में जेपी के दो महत्वपूर्ण इंटरव्यू हैं। पुस्तक की विषयवस्तु तीन भाग में समाहित है, जिनमे पहला भाग भूमिका, ‘चौहतर आंदोलन और जेपी‘ दूसरा भाग ‘आंदोलन से निकले संगठन और अन्य आंदोलन‘ और तीसरा भाग ‘संघर्ष के विविध आयाम‘ शामिल है। इसी पुस्तक में राजेन्द्र चौधरी के लेख में आपातकाल के दिनों की भयावह यात्रा का वर्णन भी है जिसमें प्रतिरोध पत्रिका का प्रकाशन और मेरठ जेल की यात्रा का उल्लेख है।
इमरजेंसी में प्रतिरोध पत्रिका -राजेन्द्र चौधरी
सत्तर का दशक संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन का था जिसके खिलाफ छात्रों-नौजवानों ने जेपी की अगुवाई में लोकतंत्र बहाली के सपनें को साकार करने का संघर्ष किया। आज की चुनौती बड़ी है। तब भी नागरिकों के अधिकार छीन लिए गये थे आज भी नागरिक अधिकारों को समाप्त करने का षड्यंत्रकारी प्रयास जारी है। संविधान संकट में है, भारत की विविधता पर खतरा मंडरा रहा है।
आज से पचास साल पहले 1975 में जब देश में आपातकाल लगा था तब संविधान प्रदत्त नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन हुआ था। आपातकाल लगते ही विपक्ष के नेताओं को कैद कर लिया गया था। अखबारों पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। चारों ओर दहशत और आतंक का माहौल था, न अपील न वकील, न दलील। जेल में यातनाओं का दौर। 25 जून 1975 को आपातकाल लगने के कुछ घंटे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण की दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में मैं अपने सहयोगियों के साथ शामिल हुआ था। उस समय के हालात क्या थे आज की पीढ़ी का बड़ा हिस्सा नहीं जानता है।
इमरजेंसी लगने के बाद अनेक अन्डरग्राउन्ड पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन चोरी छिपे हो रहा था। जिनमें जनवाणी, प्रतिरोध, युवा संघर्ष और रेजिसटेन्स प्रमुख पत्र, पत्रिकाएं थी। उस समय मैं चौधरी चरण सिंह जी के भारतीय लोक दल के युवा संगठन का राष्ट्रीय महासचिव था। उसी दौर में मैंने अपने साथियों के साथ प्रतिरोध पत्रिका का प्रकाशन किया। इसका विवरण ऑपरेशन इमरजेंसी नामक पुस्तक में भी दिया गया है। प्रतिरोध के कुछ अंश निकलने के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पुलिस ने इसके अंक जब्त कर लिए।
हम लोग प्रतिरोध की कॉपियां छपवाकर एक ऑटो से राष्ट्रपति भवन चौराहा पर पहुंचे तभी प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का काफिला उधर से गुजरा। हम लोगों को लगा कि गिरफ्तारी तय है क्योंकि पुलिस चप्पे-चप्पे पर थी और हर एक को देख रही थी। कुछ वाहन चेक भी किए गए। मैं और केसी त्यागी आटो में थे। प्रतिरोध पत्रिका का बंडल साथ था। इस इलाके में वैसे भी कड़ी सुरक्षा रहती थी। वो तो गनीमत थी कि पुलिस ने चेक नहीं कियां अन्यथा जो प्रताड़ना मिलती उसके बाद आज हम यह कहानी बता पाते कहना मुश्किल ही था। ऐसे खतरनाक दिन थे वे।
हम किस तरह इमरजेंसी में प्रतिरोध का प्रकाशन कर रहे थे यह भी बहुत मुश्किलों भरा काम था। पत्रिका को राजनैतिक लोगों तक पहुंचाना एक अलग समस्या थी। दिल्ली में तब कनॉट प्लेस स्थित काफी हाउस भी हमारा एक अड्डा था। यहां सतपाल मलिक, राजकुमार जैन, रमाशंकर सिंह, सुधीर गोयल से लेकर राजेन्द्र चौधरी और केसी त्यागी आदि होते थे। वह बैठते और एक दूसरे को गोपनीय तरीके से पत्रिका झोले से निकालकर दे देते। फिर भी गिरफ्तारी की आशंका बनी रहती। उस दौर में काफी हाउस में समाजवादियों और वामपंथियों के अलग-अलग खेमों का अड्डा जमता था। काफी हाउस से लगी थियेटर कम्यूनिकेशन की बिल्डिंग थी जिसमें चंद्रशेखर की यंग इण्डियन पत्रिका निकलती थी। खैर हम प्रतिरोध पत्रिका को दिल्ली हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक पहुंचाते थे।
मैं आपातकाल के विरोध में एक दर्जन साथियों के साथ गाजियाबाद में प्रदर्शन कर रहा था। तब पुलिस ने हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार कर मेरठ जेल भेज दिया। हालांकि तब मैं एमए एलएलबी कर चुका था और 1974 में गाजियाबाद विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुका था। चौधरी चरण सिंह जी ने हमें टिकट दिया था। 1977 में इमरजेंसी के बाद मै वहीं से चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचा। तब मेरी पहचान एक छात्र युवा नेता के रूप में थी। समाजवादी शुरू से ही अन्याय के विरूद्ध संघर्षरत रहते हैं। लोकतंत्र, समाजवाद और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए वह प्रतिबद्ध हैं। अगस्त क्रान्ति में भी समाजवादियों ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। जब आपातकाल लगा तो जयप्रकाश नारायण, मोराजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, मधु लिमए, राजनारायण और मुलायम सिंह यादव आदि को रातों-रात गिरफ्तार कर लिया गया था। तमाम नेताओं को जेल यातना सहनी पड़ी थी।
आपातकाल के वे दिन आज भी तन-मन में सिहरन पैदा करते है। उन दिनों की यातनाओं को झेलते हुए न जाने कितने परिवार टूट कर बिखर गए। कितने ही जीवन जर्जर हो गए। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी सरकार बनने पर लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में जिनकी भागीदारी थी उनको सम्मानित करने का काम प्राथमिकता से हुआ। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में खाद्य रसद एवं जेल मंत्रालय के अतिरिक्त, राजनीतिक पेंशन विभागों का कैबिनेट मंत्री, आपातकाल के बंदी रहे राजेन्द्र चौधरी को सौंपा था। राजेन्द्र चौधरी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सलाह पर लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान देने के लिए ‘‘उत्तर प्रदेश लोकतंत्र सेनानी सम्मान अधिनियम 2016‘‘ बनाया। लोकतंत्र सेनानी, जिन्होंने आपातकालीन अवधि (दिनांक 25.06.1975 से दिनांक 21.03.1977 तक) में लोकतंत्र की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से संघर्ष किया एवं जो इन कार्यकलापों में भाग लेने के फलस्वरूप मीसा, डीआईआर के अधीन कारागार में निरुद्ध रहे हों, को सम्मान राशि, एक सहयोगी के साथ निःशुल्क परिवहन सुविधा एवं निःशुल्क चिकित्सा सुविधा प्रदान करने और उससे सम्बन्धित या आनुषंगिक विषयों की व्यवस्था करने के लिए अधिनियम बनाया गया है।
लोकतंत्र सेनानियों को केवल सम्मानजनक सम्मान राशि ही नहीं, मरणोपरांत उनकी राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की भी व्यवस्था की गई। लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु के पश्चात उनके आश्रित को भी पेंशन का लाभ मिलेगा। आज कल लोकतंत्र सेनानियों को प्रतिमाह 20 हजार रुपये की सम्मान राशि मिल रही है। इससे उनके सम्मान पूर्ण जीवन निर्वहन का प्रशंसनीय कार्य हुआ है। नतीजतन बहुत से उपेक्षित और परिवार में तिरस्कृत लोकतंत्र के भूले बिसरे सेनानियों की जिंदगी में फिर बदलाव आया और वे घर-परिवार में प्रतिष्ठित जीवन जीने लगे हैं। अखिलेश यादव लोकतंत्र और संविधान दोनों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार पहले से भी ज्यादा हो रहे हैं और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। संक्रमण की इस स्थिति में सबकी निगाहें अखिलेश जी पर टिकी हैं। जनता का भरोसा उन्हीं पर है।
(इमरजेंसी में ‘प्रतिरोध पत्रिका‘ शीर्षक के अनर्गत लेख में लोकतंत्र रक्षक सेनानी, यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने आपातकाल के पूर्व और उस दौरान के घटनाक्रम एवं अनुभवों का सिलसिलेवार ढंग से वर्णन किया है।) आपातकाल के पांच दशक बाद संविधान और लोकतंत्र का सबक