

भाषा पर केंद्र-तमिलनाडु में रार: अस्मिता संकट या राजनीतिक दरार..!वर्ष 1965 में जब केंद्र सरकार ने हिन्दी को एक मात्र आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयत्न किया तो तमिलनाडु में उग्र प्रदर्शन हुआ जिसमें 70 लोग मारे गए अन्नादुरई ने 25 जनवरी को ‘शोक दिवस’ घोषित किया। भाषा:अस्मिता संकट या राजनीतिक दरार
भारतीय राजनीति में लोकतंत्र के वे सारे गुण मौजूद हैं जो किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र को विशिष्ट पहचान दें। राजनीति मूल्यों का प्राधिकृत विनिधान है, अर्थात राजनीति केवल सत्ता और प्रशासन से जुड़ी प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह समाज में नैतिकता, न्याय, स्वतंत्रता, समानता जैसे मूल्यों को स्थापित करने और उन्हें लागू करने का माध्यम भी है। यह सरकारों, संस्थाओं और नीति-निर्माताओं के माध्यम से तय किया जाता है कि समाज में कौन से मूल्य अधिक महत्त्वपूर्ण होंगे और उन्हें किस प्रकार लागू किया जाएगा।
भाषा भी एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य है जो किसी समाज के अस्तित्व और विकास को निर्धारित करती है। दुर्भाग्यवश भारतीय राजनीति में भाषा का विवाद एक बार पुनः उभर कर सामने आया है। सम्प्रति तमिलनाडु और केंद्र सरकार भाषा को लेकर आमने-सामने हैं । केंद्र सरकार द्वारा लागू समग्र शिक्षा नीति में हिन्दी भाषा को लेकर केंद्र और तमिलनाडु-सरकार में विवाद है। इसकी बानगी वहाँ के प्रदर्शन में भी दिख रही है जिसमें कुछ लोग रेलवे स्टेशनों पर लिखे हिन्दी नामों को हटाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। आखिर इस प्रकार का विवाद हो क्यों रहा है।
भारत में भाषा को लेकर विगत 70 वर्षों से संघर्ष चल रहा है। वस्तुतः 15 फरवरी को बनारस में शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि तमिलनाडु को भी भारतीय संविधान के अनुसार चलना होगा और त्रिभाषा नीति को लागू करना होगा। जब तक तमिलनाडु ऐसा नही करता, तब तक उसे केंद्र से शिक्षा फंड नही मिलेगा। यह राशि लगभग 2400 करोड़ रूपये की है। इसी की प्रतिक्रिया में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि तमिल लोग ब्लैकमेलिंग नही सहेंगे और यदि केंद्र सरकार उनके फंड को रोकती है तो उन्हे तमिल लोगों के प्रतिकार का सामना करना होगा।
सही मायनों में संविधान के सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों का जिक्र है- केंद्र सूची,राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। इस पर केंद्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं लेकिन यदि इस पर दोनों ने कानून बना दिया तो केंद्र द्वारा बना कानून मान्य होगा। केंद्र सरकार नेशनल एजूकेशन पॉलिसी 2020 को पूरे देश में लागू करने का प्रयास कर रही है परन्तु तमिलनाडु सरकार ने अब तक इसे लागू नही किया है। वहाँ की सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार फंड न देकर भाषा युद्ध कर रही है। हमें द्विभाषा स्वीकार है, त्रिभाषा नही।
भाषा की राजनीति के मामले में तमिलनाडु का इतिहास बहुत पुराना है। 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने हिंदी को लाने का प्रयास किया था तो द्रविड़ कड़गम और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के द्वारा विरोध किया गया और हिन्दी को स्कूलों से हटाना पड़ा। यह आंदोलन तीन साल चला जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की मौत हुई और हजारों लोग गिरफ्तार हुए । 1946-1950 के बीच हिंदी विरोधी आंदोलन का दूसरा चरण आया जब सरकार ने स्कूलों में हिंदी लागू करने की कोशिश की। विरोध के बाद हिंदी को वैकल्पिक विषय बना दिया गया। 1959 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गैर-हिंदी भाषी राज्यों को आश्वस्त किया कि अंग्रेजी भी प्रशासनिक भाषा बनी रहेगी। 1963 में आधिकारिक भाषा अधिनियम के विरोध में डीएमके के अन्नादुरई के नेतृत्व में आंदोलन हुआ।
वर्ष 1965 में जब केंद्र सरकार ने हिन्दी को एक मात्र आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयत्न किया तो तमिलनाडु में उग्र प्रदर्शन हुआ जिसमें 70 लोग मारे गए अन्नादुरई ने 25 जनवरी को ‘शोक दिवस’ घोषित किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा बनाना पड़ा। हिन्दी विरोधी आंदोलन के चलते 1967 में डीएमके सत्ता में आई और इसके बाद से ही कांग्रेस की तमिलनाडु की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी।
नेशनल एजूकेशन पॉलिसी 2020 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि पहली भाषा मातृ भाषा होगी, दूसरी भाषा हिन्दी या राज्य की कोई दूसरी भाषा होगी और तीसरी भाषा कोई अन्य भारतीय या विदेशी भाषा होगी। इसमें कहीं भी हिन्दी को थोपने की बात नही है। वस्तुतः भारत में बड़ी संख्या में लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं और इस दौरान दूसरे राज्य में उनकी दूसरी भाषा उनकी अपनी मातृ भाषा होती है क्योंकि उस राज्य में तो पहली भाषा वहाँ की मातृ भाषा होगी। अतएव केंद्र सरकार इसी कारण त्रिभाषा नीति को सख्ती से लागू करने की वकालत कर रही है ताकि विस्थापित लोगों को भी अपनी भाषा को सीखने में परेशानी ना हो किन्तु तमिलनाडु इसे अपने ऊपर हिन्दी जबरन थोपी जा रही है, कहकर विरोध कर रहा है और उनकी ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि केंद्र सरकार तमिल संस्कृति के साथ भेद-भाव कर रही है। तमिलनाडु सरकार द्वारा इसे जबरन चुनावी एजेंडा बनाया जा रहा है। अगले वर्ष तमिलनाडु में चुनाव है. कदाचित इसका पूरा लाभ डीएमके उठाना चाहती है परन्तु इस तरह से अकारण भाषा के मुद्दे पर लड़ना राष्ट्रीय हित के प्रतिकूल है। भाषा:अस्मिता संकट या राजनीतिक दरार