अनुशासन की कमी से बिगड़ रहा भविष्य

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अनुशासन की कमी से बिगड़ रहा भविष्य
अनुशासन की कमी से बिगड़ रहा भविष्य
हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित

सोशल मीडिया पुराकथाओं जैसा हीरो बन गया है। यह दो धारी तलवार है। जानकारियों का स्रोत है। भौतिक जीवन के प्रपंच सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनों तक पहुँचते हैं। उन्हें जरूरी या गैर जरूरी मानना व्यक्तिगत पसंद की बात हो सकती है। कुल मिलाकर सोशल मीडिया अनिवार्य बुराई के रूप में लिया जा रहा है। सोशल मीडिया में मनोरंजन है। ज्ञान है। पुस्तकें हैं। गीत संगीत भी हैं। जीवन को सुखमय बनाने वाले तमाम तत्व सोशल मीडिया का अंग हैं। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सोशल मीडिया नहीं था तब मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या बहुत कम थी। घर में बहुधा एक या दो फोन होते थे, लेकिन अब परिवार के सभी सदस्यों के पास अपना-अपना मोबाइल है। मोबाइल केवल दूरभाष वार्ता का काम नहीं देता। वह चलता फिरता टीवी है। बहुत सुंदर नोटबुक है। ज्ञात विश्व के सभी अनुशासनों का जीवन तंत्र है। अनुशासन की कमी से बिगड़ रहा भविष्य


विश्व का समूचा ज्ञान सोशल मीडिया का भाग है। इसका एक बड़ा हिस्सा मनुष्य जीवन को क्षति पहुंचा रहा है। छोटे-छोटे बच्चे मोबाइल से चिपके रहते हैं। इस नुकसान को लेकर अनेक शोध हुए हैं। मैंने निजी जीवन में देखा है कि एक ही परिवार के सात सदस्यों के पास अलग-अलग मोबाइल हैं। किसी के पास दो या तीन मोबाइल भी हैं। मैं ऐसे ही एक मित्र के घर में मेहमान था। मैंने उनको बताया कि चाय में शक्कर नहीं रहेगी। उन्होंने हमारे पास बैठे-बैठे अपनी पत्नी को फोन मिलाया। हमने पूछा चाय कहां बन रही है। उन्होंने कहा पीछे कमरे में। मैंने कहा आप जाकर भी बता सकते थे। उन्होंने कहा फोन है, तो क्यों जाएं? सोशल मीडिया से प्रसारित झूठी सूचनाएं समाज को क्षति पहुंचती हैं। दंगे फसाद भी हो जाते हैं।


सोशल मीडिया से पुलिस और प्रशासन को सुविधा हो रही है। वहीं अपराधी भी इसी के दुरुपयोग से बड़ी घटनाएं करके निकल जाते हैं। सोशल मीडिया में अराजकता है। कोई अपना नंगा चित्र पोस्ट करता है। कोई अश्लील चैट करता है। कोई देवी देवताओं पर अपनी भड़ास निकालता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अराजकता के विरुद्ध केन्द्र से कहा है कि कोई नियामक संस्था बनाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है। इस सूचना से लोगों को राहत मिली है। लेकिन यह आसान नहीं है। भारतीय संस्कृति के पक्षधर तो सोशल मीडिया के नियमन की खबर से खुश हैं, लेकिन वामपंथी ऐसे किसी संस्था या नियामक आयोग जैसी संस्था का विरोध करेंगे।

हम ऑस्ट्रेलिया से सीख सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया की संसद ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने वाले कानून पर 1 साल पहले सम्यक विचार किया था। अधिनियम पारित किया था। अगले महीने से कानून प्रभावी होने जा रहा है। भारत में अधिकांश परिवारों के बच्चे पूरी रात मोबाइल से चिपके रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित समय पर अपना निर्देश दिया है। सोशल मीडिया के विनियमितिकरण पर ठोस विचार समय की मांग है।

भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। संविधान निर्माताओं ने आदर्श लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार बनाया है, लेकिन यह अधिकार असीम नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन इसी अनुच्छेद के खण्ड 2 में इस अधिकार की मर्यादा भी बताई गई है। इसमें कहा गया है कि भारत की संप्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, दुनिया के अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय अवमान के सम्बंध में विद्यमान किसी भी विधि के प्रवर्तन पर फर्क नहीं पड़ेगा। यह सुविदित है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो रहा है।


भारत प्राचीन राष्ट्र है। भारत के लोगों के परिश्रम से राष्ट्र का सतत् विकास हो रहा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा की है। सरकार अपना काम कर रही है। समाज भी अपना काम करे। देश के सभी नागरिकों से भाषा संयम की न्यूनतम अपेक्षा तो कर ही सकते हैं। निसंदेह विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्वागत होना चाहिए। लेकिन अभिव्यक्ति में सुंदरता चाहिए। वाक् संयम चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदरणीय है। लेकिन इसके साथ ही संयम में रहने की भी आवश्यकता है।


यह अस्तित्व सुंदर है। हमारे होने का स्रोत और आधार यही संसार है। अस्तित्व प्रतिपल व्यक्त हो रहा है। प्रकृति में फूलों का खिलना, शिशुओं का हंसना, सूर्य का आना जाना, रात और दिन की गति अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है। गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि, ”संसार का जितना व्यक्त भाग है, उतना ही अव्यक्त भी है। व्यक्त अव्यक्त होता रहता है और अव्यक्त से व्यक्त।” इसीलिए मनुष्य को व्यक्ति कहते हैं। प्रकृति की सारी शक्तियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद उठाती प्रतीत होती हैं। इसलिए प्रकृति की कोई भी शक्ति नियम नहीं तोड़ती। सूरज निर्धारित समय पर उदित होते हैं। निर्धारित समय पर अस्त होते हैं। चन्द्रमा भी नियम नहीं तोड़ता। पूर्णमासी से अमावस्या तक सारी गति नियमित है। हम मनुष्यों को भी जीवन का आनंद लेते हुए अपना कर्तव्य पालन करते रहना चाहिए।

वाक् स्वातंत्र्य का अधिकार बड़ा है। शब्द सत्ता बड़ी है-शब्द संयम में प्रीति होती है, रस होता है। शब्द दुरूपयोग में उत्तेजना है, भावना और आस्था पर आक्रमण हैं। विश्वविख्यात कलाकार एम0एफ0 हुसैन ने सरस्वती व सीता के अश्लील चित्र बनाए थे। इसे विचार अभिव्यक्ति कहेंगे या विकार अभिव्यक्ति? सोशल मीडिया में आपत्तिजनक सामग्री की आंधी है। शब्द संयम में ही सौन्दर्य प्रकट होता है और शब्द अनुशासनहीनता में अश्लीलता। सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में मौन रहने को भी अनु0 19(1क) के अधीन विचार अभिव्यक्ति का अधिकार बताया था। राजनीति शब्दों का ही खेल है। लेकिन राजनैतिक शब्दकोष से शालीनता के तत्व गायब हैं। यहां आरोप-प्रत्यारोप हैं।

संसद और विधानमण्डल में बोले गए शब्दों पर न्यायालय कार्यवाही नहीं कर सकते। इसलिए संसदीय शब्द अराजकता अपनी सीमा पार कर गई है। वाक् स्वातंत्र्य के अधिकार का सदुपयोग सामाजिक परिवर्तन में होना चाहिए। वाद-विवाद में मधुमय सम्वाद की प्राचीन संस्कृति को बढ़ाना चाहिए। समाज के छोटे से हिस्से की भी भावनाओं को आहत करने वाले शब्दों का प्रयोग अभिव्यक्ति की आजादी का दुरूपयोग है। इसी तरह बात बे बात किसी विचार, संगीत, कला, काव्य या फिल्म को लेकर हल्ला बोलना भी स्वतंत्र समाज के लिए बहुत घातक है। राष्ट्र राज्य अपना कत्र्तव्य निभाए और नागरिक अपना।

hआधुनिकता सच्चाई है। समाज जड़ नहीं होते। गतिशील होना जगत् का मूल गुण है। भारत का समाज भी आधुनिक है, उसे और भी आधुनिक होना चाहिए। लेकिन आधुनिकता का अर्थ जीवन मूल्यों का यूरोपीयकरण या अमेरिकीकरण नहीं होता। कपड़ा-लत्ता, भाषा, व्यवहार और खानपान, रहन-सहन का अंधानुकरण ही आधुनिक नहीं कहा जा सकता। आखिरकार छात्रों को सोशल मीडिया को ही पूरा समय देना कहाँ तक उचित है? इसके व्यवस्थित संचालन के लिए नियामक आयोग जैसी संस्था अति आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट की पहल स्वागत योग्य है। भारत शब्द अराजकता से निपट सकता है। केवल सांस्कृतिक परंपरा को ही मजबूत करते हुए स्वस्थ वातावरण बनाया जा सकता है।      अनुशासन की कमी से बिगड़ रहा भविष्य