

सारी उमर सोता रहा, पर नींद नहीं आई !
बहुत गुस्सा आता रहा, देखकर उसकी रुसवाई !
कोहबर सा जीवन मेरा, इंतजार था उसका कि !
आएगी दुल्हन बनकर, पाऊंँगा हास – परिहास उससे !
सजी थी सुहाग सेज, फिर भी वह नहीं आई.!
बनकर सुहागिन दुल्हन,भर लेगी आगोश में, नहीं आई.!
थक गया हूं सोते – सोते, नींद का इंतजार करते – करते.!
उस नींद से सभी डरते, पर हम तो आमंत्रित करते.!
आजाओ निंदिया प्यारी, चिर निद्रा से है सुख भारी.!
भूलकर थकी मैं अपनी सारी, ले लूंँ सुखमय निंदिया भारी…!!
