प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ

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प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ
प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ

डॉ.अंजना सिंह सेंगर

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ या करक चतुर्थी भी कहा जाता है, विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है। इस पर्व की जड़ें भारतीय समाज में बहुत गहरी हैं और इसका विशेष महत्व उत्तर भारत के राज्यों में देखा जाता है, जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश। करवाचौथ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, समर्पण और विश्वास को भी दर्शाता है। प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ

पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएँ

करवाचौथ व्रत का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसके पीछे कई धार्मिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं। सबसे प्रचलित कथा महाभारत काल से जुड़ी है, जब द्रौपदी ने अर्जुन के लिए इस व्रत का पालन किया था। इसके अतिरिक्त, वीरवती की कथा भी इस व्रत के महत्व को दर्शाती है, जिसमें वीरवती नामक एक महिला ने अपने मृत पति को वापस लाने के लिए इस कठिन व्रत का पालन किया था। इन कथाओं के माध्यम से करवाचौथ के महत्व और स्त्रियों के अपने पतियों के प्रति असीम प्रेम और समर्पण को दर्शाया गया है।

व्रत और पूजा विधि

करवाचौथ का व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें दिन भर निर्जला (बिना जल के) उपवास रखा जाता है। व्रत का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और यह चंद्रमा के दर्शन के बाद समाप्त होता है। इस दिन व्रती स्त्रियाँ सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी का सेवन करती हैं। सरगी एक विशेष प्रकार का भोजन होता है जो सास द्वारा अपनी बहू को दिया जाता है। इसमें मिठाई, फल, ड्राई फ्रूट्स और अन्य पौष्टिक पदार्थ शामिल होते हैं।
इसके बाद पूरे दिन निर्जल व्रत कर महिलाएँ माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं। करवा चौथ की *कथाएँ सुनना इस दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस कथाओं के माध्यम से स्त्रियाँ व्रत की महिमा और उसकी शक्ति को समझती हैं। शाम को महिलाएँ करवे (मिट्टी के बर्तन) में जल, चावल और रोली भरकर चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और अपनी पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। चंद्रमा को देखकर पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करती हैं। प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ

रीति-रिवाज और परंपराएँ

करवाचौथ के दिन महिलाएँ अपने सबसे सुंदर और पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं। *सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है, जिसमें कुमकुम, बिंदी, मेंहदी, चूड़ियाँ, सिंदूर, और मंगलसूत्र शामिल हैं। मेंहदी की खुशबू और उसके गहरे रंग को प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

यह दिन महिलाओं के लिए न केवल आध्यात्मिक होता है, बल्कि एक सामाजिक अवसर भी होता है, जिसमें वे अपनी सहेलियों और परिवार की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर करवाचौथ की पूजा करती हैं। वे एक-दूसरे को सरगी की थाली दिखाकर अपनी खुशियों को साझा करती हैं। शाम को चाँद देखने के लिए महिलाएँ उत्सुकता से इंतजार करती हैं और उनके साथ ही उनका परिवार भी इस पवित्र समय का हिस्सा बनता है।

आधुनिक समय में करवाचौथ का महत्व

समय के साथ-साथ करवाचौथ की परंपराएँ और इसके पालन की विधि में भी बदलाव आया है। अब कई जगहों पर पति भी अपनी पत्नी के साथ उपवास रखते हैं, जो इस पर्व के प्रति उनकी साझेदारी और प्रेम को दर्शाता है। सोशल मीडिया और डिजिटल युग ने इस पर्व को एक नया आयाम दिया है, जहाँ महिलाएँ ऑनलाइन कथा सुनने और पूजा विधि जानने के लिए वीडियो का सहारा लेती हैं। करवाचौथ के दिन पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को फिर से अनुभव करते हैं। यह दिन केवल उपवास और पूजा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह एक-दूसरे के प्रति आभार व्यक्त करने और अपने रिश्ते को और मजबूत बनाने का अवसर भी है।

करवा चौथ की कथाएँ-

करवाचौथ का व्रत भारतीय नारी की शक्ति, उसके प्रेम और उसकी भक्ति का जीवंत उदाहरण है। यह पर्व भारतीय समाज और संस्कृति में हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है और आने वाले समय में भी इसके महत्व में कोई कमी नहीं आएगी। करवा चौथ के अवसर पर कई कहानियाँ सुनी जाती हैं, जो इस व्रत के महत्व, इसके धार्मिक पहलुओं और भारतीय संस्कृति में इसके विशेष स्थान को दर्शाती हैं। इन कहानियों में से कुछ प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं:-

वीरवती की कथा :-

वीरवती की कथा सबसे प्रचलित कहानियों में से एक है, जिसे करवा चौथ के दिन सुनना अनिवार्य माना जाता है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में वीरवती नाम की एक स्त्री थी, जो सात भाइयों की इकलौती बहन थी। वीरवती ने विवाह के बाद अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। वह पूरे दिन उपवास रखकर भूखी-प्यासी थी, जिससे उसकी हालत खराब हो गई। वीरवती की यह स्थिति उसके भाइयों से देखी नहीं गई और उन्होंने अपनी बहन के व्रत को तुड़वाने की योजना बनाई। भाइयों ने पीपल के पेड़ की आड़ में एक दर्पण रखकर ऐसा प्रतीत कराया मानो चाँद निकल आया हो। इसे देखकर वीरवती ने अपना व्रत तोड़ दिया। लेकिन जैसे ही उसने भोजन किया, उसे यह समाचार मिला कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। वह बहुत दुखी हुई और पूरी रात भगवान शिव और माता पार्वती की प्रार्थना करती रही। माता पार्वती उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उन्होंने उसे अपनी गलती का एहसास दिलाया। वीरवती ने करवा चौथ का व्रत दोबारा पूरी श्रद्धा के साथ रखा, जिससे उसका पति पुनः जीवित हो गया। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि करवा चौथ का व्रत केवल प्रेम और समर्पण से ही पूर्ण होता है।

करवा की कथा :-

इस कथा के अनुसार, करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, तभी उसे एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। करवा ने अपनी श्रद्धा और भक्ति के बल पर धागे का उपयोग करके मगरमच्छ को बांध दिया और यमराज से उसके पति की रक्षा की प्रार्थना की। यमराज ने पहले करवा की प्रार्थना को अनसुना किया, लेकिन उसकी भक्ति देखकर अंततः उन्होंने मगरमच्छ को मार दिया और उसके पति को जीवनदान दिया। करवा की इस शक्ति और भक्ति के कारण यह पर्व उनके नाम पर करवा चौथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस कहानी से यह सीखने को मिलता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण में अपार शक्ति होती है।

सत्यवान-सावित्री की कथा :-

सत्यवान और सावित्री की कथा भी करवा चौथ से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कहानी है। यह कथा उस महान स्त्री सावित्री की है, जिसने अपने पति सत्यवान की मृत्यु के बाद यमराज से उसे वापस पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। कथा के अनुसार, सत्यवान की मृत्यु यमराज द्वारा निर्धारित थी, लेकिन सावित्री ने अपना दृढ़ निश्चय और अटूट प्रेम दिखाया। उसने यमराज का पीछा किया और उनकी कठिन परीक्षा का सामना करते हुए उनसे अपने पति के प्राण वापस मांगे। सावित्री की भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान को पुनः जीवनदान दे दिया। इस कथा से यह सीख मिलती है कि नारी का संकल्प और प्रेम इतना शक्तिशाली होता है कि वह भगवान को भी प्रसन्न कर सकता है।

गणेश जी और माता पार्वती की कथा :-

इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान गणेश से करवा चौथ के व्रत का महत्व और विधि पूछी थी। गणेश जी ने माता पार्वती को करवा चौथ का महत्व बताया और कहा कि यह व्रत विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस व्रत के पालन से पति की आयु बढ़ती है और विवाहित जीवन में सुख-समृद्धि आती है। माता पार्वती ने इस व्रत को स्वयं पालन करके एक आदर्श स्थापित किया, जिसे सभी स्त्रियाँ अपने जीवन में अपनाती हैं।

महाभारत की कथा (द्रौपदी और अर्जुन):-

महाभारत से जुड़ी एक कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन कठिन तपस्या के लिए नीलगिरी पर्वत पर गए हुए थे। उनकी अनुपस्थिति में पांडवों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से इस समस्या का समाधान पूछा। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि देवी पार्वती ने भी भगवान शिव के लिए इसी प्रकार का व्रत रखा था। श्रीकृष्ण की सलाह पर द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत किया, जिससे अर्जुन की तपस्या सफल हुई और उन्हें सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिली।

    इन कहानियों का संबंध करवा चौथ के व्रत के महत्व और शक्ति से है। ये कहानियाँ भारतीय संस्कृति में स्त्रियों के समर्पण, प्रेम और निष्ठा का प्रतीक हैं, और करवा चौथ के दिन इन्हें सुनने से व्रती स्त्रियों को प्रेरणा मिलती है कि वे इस व्रत को संपूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरा करें।

    सोलह शृंगार:-

    भारतीय साहित्य में सोलह शृंगार (षोडश शृंगार) की यह प्राचीन परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। इस परंपरा में स्त्री और पुरुष दोनों ही प्रसाधन करते आए हैं। यह न केवल उनके सौंदर्य को निखारने का माध्यम था, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक था। सोलह शृंगार के अंतर्गत निम्नलिखित 16 चरण आते हैं:

    1.अंगशुची: शरीर पर उबटन लगाना, जिससे त्वचा को साफ-सुथरा और निखरा बनाया जाता है।
    2.मंजन: दाँतों की सफाई के लिए मंजन करना, जिससे दाँत सफेद और चमकदार बने रहते हैं।
    3.वसन: साफ और सुंदर वस्त्र धारण करना।
    4.माँग: सिंदूर या कुमकुम से माँग भरना।
    5.महावर: पैरों पर महावर या अल्ता लगाना जिससे उनके सौंदर्य में वृद्धि होती है।
    6.केश: बालों को संवारना, तेल लगाना और उन्हें सुंदरता से बाँधना।
    7.तिलक: माथे पर तिलक लगाना, जो धार्मिकता और सौभाग्य का प्रतीक होता है।
    8.तिल चिबुक में: ठोड़ी पर सौंदर्य तिल लगाना।
    9.भूषण: विभिन्न प्रकार के आभूषणों को पहनना, जैसे कान के कुण्डल, नथ, चूड़ियाँ आदि।
    10.मेंहदी: हाथों और पैरों पर मेंहदी लगाना, जिससे उनका सौंदर्य और अधिक निखरता है।
    11.मिस्सी: दाँतों पर मिस्सी लगाना जिससे दाँतों की चमक बढ़ती है।
    12.काजल: आँखों में काजल लगाना, जिससे आँखें बड़ी और आकर्षक दिखती हैं।
    13.अरगजा: सुगंधित द्रव्यों का शरीर पर प्रयोग करना।
    14.वीरी: पान खाना, जिससे होंठों की लालिमा बढ़ती है।
    15.सुगंध: सुगंधित फूलों का शरीर पर प्रयोग करना या सुगंधित इत्र लगाना।
    16.माला और नीला कमल: फूलों की माला पहनना और नीला कमल धारण करना, जो शांति और पवित्रता का प्रतीक है। प्रेम,विश्वास और समर्पण का पर्व है करवा चौथ