जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड

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जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड
जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड

“न्याय में देरी, अन्याय है” यानी “Justice delayed is justice denied” एक कानूनी कहावत है। इसका मतलब है कि अगर किसी को न्याय मिलता है, लेकिन इसमें बहुत देरी हो जाती है, तो ऐसे न्याय की कोई सार्थकता नहीं होती. यह कहावत न्यायिक सुधार के समर्थकों का प्रमुख हथियार है।

डॉ.अरविन्द मिश्रा

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की बुलडोजर न्याय मसले पर कुछ आरंभिक टिप्पणियों से एक पक्ष के लोग बल्लियों उछल रहे हैं कि लो मार लिया मैदान मगर तनिक ठहरिये , इतना उछलिये भी मत. अभी सरकारों का जवाब और उसके बाद माननीय /माननीयों के आखिरी फैसले तक तनिक ठंड रखिये। चंद लोगों को जो सुखाभास हो रहा है, वैसा कुछ इतना सीधा सपाट नहीं है। जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड

घर या कोई भी ‘बिल्डिंग’ इसलिये नहीं गिराये जा रहे कि कोई बलात्कारी है या हत्यारा है या राज्य के विरुद्ध कोई बड़ा घात कर बैठा है बल्कि वे इसलिये गिराये जा रहे और गिराये जाते रहेंगे कि उनका निर्माण अवैध रुप से हथिआई गयी जमीन पर है। या फिर निर्माण कानून विरुद्ध है। नियमानुसार नहीं है। अवैध है। अब कोई भी अदालत या अदालतें कानून विरुद्ध कैसे जा सकती हैं?

यह तो एक सामान्य बात है कि कानून के मुताबिक अगर कोई दोषी करार हुआ भी है तो केवल इस कारण से किसी का आवासीय घर या कारोबार की बिल्डिंग बुलडोज नहीं की जा सकती। यह न तो नैतिक है और जो नैतिक नहीं, वह कानूनन भी नहीं होना चाहिए भले ही इस पर भारतीय न्याय संहिताओं में कोई स्पष्ट व्याख्यायित कानून की धारा हो या न हो।

मगर जिनकी अट्टालिकायें जमींदोज की गयी हैं, उनके करनी करतब तो देखिये – वे हमारे आपकी तरह कितने ‘ला एबाईडिंग सिटिजन’ रहे हैं? इसलिये सरकारें उनकी कुंडली तुरंत खोलती हैं और उनके गैर कानूनी धतकरमों को नेस्तनाबूद करने के लिए  उन कुंडलियां खंगालती हैं। यह देखने के लिए कि अब ये शख्स इतना शातिर है तो और भी कुकर्म किये हो सकते हैं। और सचमुच उनके काले कारनामे उजागर हो जाते हैं। अब जब अवैध निर्माण के कारनामें जग जाहिर हो जांय तो क्या सरकारें हांथ पर हांथ रखे बैठी रहें?

या फिर मी लार्ड के सामने हाथ जोड़ें खड़ी हो न्यायादेश का इंतजार करती रहें। और कब तक? कौन नहीं जानता कि भारतीय न्याय अमूमन कितना विलंबित हो जाता है। यहां तक कि न्याय के मंदिरों में बार बार इस मधुर ध्वनि के गूंजते रहने के बाद भी कि “जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड”, न्याय प्रायः विलंबित ही रहता है। यह एक चिरंतन विरोधाभास है। ऐसे में न्यायप्रिय सरकारें चुपचाप बैठी रह जांय तो फिर त्वरित न्याय की जन आकांक्षाओं पर कैसे खरी उतरेंगी? उनका क्या इकबाल रह जायेगा?

इसलिए ही बुलडोजर न्याय का उदाहरण दिखाकर उत्तर प्रदेश ने न्याय की एक मिसाल कायम की है और एक दिशा दिखाई है जो प्रकारांतर से भारतीय न्याय व्यवस्था की ही पक्षधर है। यह दिखता है कि न्याय डिलीवर हुआ है? अपराधी सबक लें, धत कर्म करने और कानून को हाथ में लेने की जुर्रत न करें। गैर कानूनी निर्माण करने से परहेज करें। कानून का पालन करने वाले श्रेष्ठ नागरिक का उदाहरण प्रस्तुत करें।

आज उत्तर प्रदेश कानून व्यवस्था के लिहाज से ऐसे ही अन्य तमाम राज्यों का सिरमौर नहीं बना हुआ है। और अपराधी हौसलों से आजिज आये राज्य भी इसी ‘योगी माडल’ को अपनाने में लग गए हैं। आगामी सुनवाईयों में इन पहलुओं को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचारण के लिये रखा ही जायेगा। और जो भी आखिरी फैसला आयेगा, कहना नहीं है कि वह शिरोधार्य होगा ही। आखिर हम कानून का सम्मान करने वाले राज्य हैं मगर तब तक के लिए उन्मादी उछल कूद मुल्तवी रखिये। जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाईड