
डॉ.ब्रजेश कुमार मिश्र
जेपीसी की रिपोर्ट पर विवाद: विधायी प्रक्रिया या तुष्टिकरण की राजनीति? वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट को पिछले सप्ताह संसद में प्रस्तुत किया गया जिस पर विपक्ष ने विगत एक दशक से जारी अपने चरित्र के अनुरूप जोरदार विरोध किया। विपक्ष का यह आरोप था कि जेपीसी में हमारी मांगों को स्वीकार नही किया गया। इस रिपोर्ट में कई ऐसे बिंदु हैं जिसे हटा दिया गया है, जिसकी वजह से यह रिपोर्ट अधूरी प्रतीत होती है। अतः इसे दोबारा जेपीसी के पास भेजा जाए। वस्तुतः 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में जब केंद्र सरकार ने ‘वक्फ संशोधन अधिनियम बिल 2024’ प्रस्तुत किया तो विपक्षी दल के नेताओं ने हंगामा किया था और इसे मुस्लिम विरोधी बताया था। साथ ही सत्ता पक्ष के द्वारा दिए गए सुझाव को दरकिनार कर दिया था। फलतः इसके बाद सरकार ने इसे चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का फैसला किया था। JPC:विधायी प्रक्रिया या तुष्टिकरण की राजनीति..?JPC:विधायी प्रक्रिया या तुष्टिकरण की राजनीति..?
वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार के लिए जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में 31 सदस्यीय जेपीसी का गठन किया गया जिसमें लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य शामिल थे। जेपीसी एक तदर्थ समिति होती है जिसका गठन विषम परिस्थितियों में किया जाता है, जैसे गंभीर मुद्दे या बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के मामलों में। इसका गठन लोकसभा और राज्यसभा, दोनों की सहमति से होता है। यदि एक सदन प्रस्ताव पारित करे और दूसरा इसे स्वीकार कर ले या यदि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों सहमत हों, तो भी जेपीसी बनाई जा सकती है। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति भी इसके गठन का निर्णय ले सकते हैं। इसकी सदस्य संख्या निश्चित नहीं होती, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा का अनुपात 2:1 रहता है। इसकी अध्यक्षता लोकसभा का सदस्य करता है। यह स्थायी समिति नहीं होती और प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के बाद भंग हो जाती है।
वक्फ का अर्थ है किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा धार्मिक कार्य के लिए दान की गई संपत्ति। यदि कोई संपत्ति लंबे समय तक धर्म के कार्य में प्रयुक्त होती है तो उसे भी वक्फ माना जाता है। भारत में वक्फ की कानूनी व्यवस्था 1913 के ‘मुस्लिम वक्फ मान्यता अधिनियम’ से लागू हुई, हालांकि इसकी शुरुआत सल्तनत काल में हुई थी। अब तक इसमें तीन बार संशोधन (1955, 1995, 2013) हो चुका है। 1964 में वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई, जिसे अत्यधिक शक्तियां प्राप्त हैं। भारत में 30 से भी ज्यादे वक्फ बोर्ड कार्यरत हैं। रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास देश में सबसे अधिक भूमि है। किसी विवाद का निस्तारण वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा किया जाता है जिसके निर्णय के विरुद्ध अपील की अनुमति नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 प्रस्तुत किया गया। इसमें किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने से पहले जांच की मांग की गई। वक्फ का पुनर्गठन, केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव, संपत्ति के दुरुपयोग को रोकने हेतु मजिस्ट्रेट की भागीदारी और विवादित जमीनों का पुनः सत्यापन करने का प्रस्ताव रखा गया। इसके अलावा,वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के विरुद्ध सिविल कोर्ट व हाईकोर्ट में अपील की अनुमति और बोर्ड में दो महिलाओं तथा दो अन्य धर्मों के लोगों को सदस्य बनाने का प्रस्ताव भी शामिल था।
जब जेपीसी ने वक्फ संशोधन विधेयक पर काम शुरू किया तो यह सामने आया कि भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित धरोहरों को भी वक्फ अपनी संपत्ति मानता है जिससे उनके संरक्षण में बाधा आ रही थी। गहन जांच के बाद जेपीसी ने 572 संशोधनों का सुझाव दिया जिनमें से 44 पर चर्चा हुई। बहुमत के आधार पर 14 संशोधनों को स्वीकार किया गया जबकि विपक्ष की मांगें अस्वीकार कर दी गईं। जब रिपोर्ट सदन में पेश हुई, तो विपक्ष ने इसे अलोकतांत्रिक बताते हुए विरोध किया और कहा कि उनकी मांगों को रिपोर्ट में स्थान नहीं दिया गया। विपक्ष चाहता था कि अस्वीकृत प्रस्तावों का भी प्रतिवेदन में उल्लेख हो। अंततः सरकार ने विपक्ष की इस मांग को स्वीकार कर लिया, जिससे अब रिपोर्ट में उन मुद्दों को भी शामिल किया जाएगा जिन्हें जेपीसी ने अस्वीकार कर दिया था।
जेपीसी के प्रतिवेदन में विपक्ष की दलीलों को शामिल ना करके सरकार ने भी विपक्ष को मौका दे दिया है। यह विपक्ष को भी पता है कि जब किसी मुद्दे पर जेपीसी का गठन होगा तो सामान्यतया सरकार जो चाहेगी, वही होगा बावजूद इसके विपक्ष द्वारा जेपीसी के प्रतिवेदन की जा रही राजनीति एक छुद्र मानसिकता की द्योतक है। विपक्ष द्वारा की जाने वाली मांग सिर्फ ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ से आगे कुछ भी नही है। जब कोई मांग स्वीकार ही न की गई हो तो वह क्या थी, इसे रिपोर्ट में छपवाना एक चुनावी एजेंडे से अधिक कुछ भी नही है। आगामी राज्य चुनावों में सिर्फ यह दिखाने के लिए कि हमारे दल ने तो मुस्लिम समाज के लिए अमुक मांग की थी पर उसे सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। आखिर यह दौर कब तक चलेगा, कहना कठिन है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए राजनीति के इस पैटर्न को यथाशीघ्र त्यागना होगा। JPC:विधायी प्रक्रिया या तुष्टिकरण की राजनीति..?