क्या जीवन का उद्देश्य आत्मा का विकास करना है..!

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जीवन का महान उद्देश्य अपनी आत्मा का निरन्तर विकास करना है….!

डॉ0 जगदीश गाँधी

विश्व की सबसे छोटी तथा सशक्त इकाई परिवार है। परिवार एक ईट के समान है। राष्ट्र-विश्व रूपी भवन का निर्माण परिवार रूपी एक-एक ईट को जोड़कर होता है। परिवार रूपी ईट के मजबूत होने से राष्ट्र-विश्व रूपी भवन मजबूत तथा टिकाऊ होता है। प्यार और सहकार से भरा-पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है पारिवारिक एकता ही वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की आधारशिला है। हम शिक्षा के माध्यम से रात दिन निरन्तर प्रयास करके पारिवारिक एकता द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्- जय जगत’ के सार्वभौमिक विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं।


मानव जीवन का एकमात्र महान उद्देश्य अपनी आत्मा का निरन्तर विकास करते रहना है-


पूजा, इबादत, प्रेयर, प्रार्थना परमपिता परमात्मा से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है। बच्चों को बाल्यावस्था से यह ज्ञान कराना चाहिए कि परमपिता परमात्मा द्वारा दिव्य
लोक से भेजी गई पवित्र पुस्तकों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रंथ साहिब व किताबे अकदस आदि की शिक्षाओं को जानकर उसे जीवन में धारण करना चाहिए। तथापि उसके अनुसार जीवन-पर्यन्त अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का निरन्तर विकास करते रहना चाहिये।


मंगलमय है वह जगह – जहाँ प्रभु महिमा गाई जाती है-


एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से महान अवतार राम (7500 वर्ष पूर्व), कृष्ण (5000 वर्ष पूर्व),बुद्ध (2500 वर्ष पूर्व), ईसा मसीह (2000 वर्ष पूर्व), मोहम्मद साहब (1400 वर्ष पूर्व), गुरू नानक देव (500 वर्ष पूर्व) तथा बहाउल्लाह (200 वर्ष पूर्व) मर्यादा, न्याय, सम्यक ज्ञान, करूणा, भाईचारा, त्याग और हृदय की एकता की शिक्षा देने के लिए युग-युग में इस धरती पर भेजे गये हैं। इसलिए हम मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा, बौद्ध विहार, बहाई मन्दिर आदि किसी भी पूजा स्थल में जाकर पूजा, इबादत, प्रेयर, अरदास, प्रार्थना करें उसे सुनने वाला परमपिता परमात्मा एक है।


पारिवारिक एकता ही वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की आधारशिला है-


विश्व की सबसे छोटी तथा सशक्त इकाई परिवार है। परिवार एक ईट के समान है। राष्ट्र-विश्व रूपी भवन का निर्माण परिवार रूपी एक-एक ईट को जोड़कर होता है। परिवार रूपी ईट के मजबूत होने से राष्ट्र-विश्व रूपी भवन मजबूत तथा टिकाऊ होता है। प्यार और सहकार से भरा-पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है। पारिवारिक एकता ही वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की आधारशिला है। हम शिक्षा के माध्यम से रात-दिन निरन्तर प्रयास करके पारिवारिक एकता द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्- जय जगत’ के सार्वभौमिक विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। भारतीय संविधान तथा संस्कृति के प्रति हमारा पूर्ण सम्मान तथा विश्वास है। हमारा प्रबल विश्वास है कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। यह सारा विश्व एक कुटुम्ब के समान है।


21वीं सदी का विश्व बदलाव चाहता है-


विश्व के सबसे बड़े विद्यालय सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के अपने लगभग 62 वर्षों के शैक्षिक अनुभव के आधार पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मनुष्य द्वारा की
जाने वाली सभी सम्भव सेवाओं में सबसे श्रेष्ठ सेवा है – बच्चों की शिक्षा, उनका चरित्र निर्माण तथा उनमें सर्व धर्म समभाव का ईश्वरीय ज्ञान उत्पन्न करना। वास्तव में शिक्षा ही वह सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसके द्वारा विश्व को बदला जा सकता है।


‘वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत’ में ही विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान निहित-


‘वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत’ एक ऐसी वैश्विक विचारधारा है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व की एकता, शान्ति व समृद्धि का उद्देश्य समाहित है। वास्तव में, यही वो विचार है जिसकी दुनिया को आज सबसे अधिक आवश्यकता है क्योंकि ‘वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत’ की विचारधारा में ही विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान निहित है। विश्व में बढ़ती अशान्ति व तनाव की परिस्थितियों के संदर्भ में मेरा सभी वर्ल्ड लीडर्स तथा विश्ववासियों से अपील है कि वे आगे आकर पारिवारिक एकता, जय जगत, विश्व एकता, विश्व शान्ति एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सार्वभौमिक विचारों द्वारा वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन समय रहते शीघ्र करके युग धर्म निभाये।


अभी नहीं तो फिर कभी नहीं…?


रोजाना किये जाने वाले हमारे सभी कार्य प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने। जो लोग प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेते हैं फिर उन्हें धरती तथा आकाश की कोई भी शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती। विश्व की वर्तमान विषम परिस्थितियों को देखते हुए विश्व संसद, विश्व सरकार एवं प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून व्यवस्था का गठन अब अनिवार्य आवश्यकता है और इसी के बाद धरती पर आध्यात्मिक साम्राज्य की स्थापना का अन्तिम लक्ष्य पूर्ण होगा। यहीं होगा धरती पर स्वर्ग का अवतरण अर्थात 21वीं सदी में धरती में मानव जाति का सुरक्षित, सुखी, समृद्ध एवं उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करना। जिसके लिए हम नौकरी अथवा व्यवसाय को ईमानदारी तथा सच्चाई से करते हुए अपनी आत्मा का निरन्तर विकास करन होगा और यही आत्मा के विकास का सबसे सरल, शुद्ध व सशक्त माध्यम भी है।………..‘वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत’