संविधान सभा में महिलाओं का अमूल्य योगदान

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संविधान सभा में महिलाओं का अमूल्य योगदान
संविधान सभा में महिलाओं का अमूल्य योगदान

जयसिंह रावत

भारतीय संविधान का निर्माण केवल एक कानूनी दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया नहीं थी बल्कि यह एक नए भारत की सामाजिक और राजनीतिक दिशा तय करने का युगांतकारी प्रयास था। इस प्रक्रिया में जिन 15 महिलाओं ने हिस्सा लिया, उन्होंने अपने विचारों और संघर्षों के माध्यम से संविधान को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाया। संविधान सभा में महिलाओं की संख्या कम थी लेकिन उनके विचार और उनके द्वारा किए गए प्रयास भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में निर्णायक रहे। इन्होंने महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रम सुरक्षा, संपत्ति के अधिकार और राजनीतिक भागीदारी से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर आवाज उठाई और यह सुनिश्चित किया कि भारतीय संविधान में महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिले। संविधान सभा में महिलाओं का अमूल्य योगदान

संविधान सभा की महिला सदस्यों में राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, दुर्गाबाई देशमुख, सरोजिनी नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, रेणुका रे, कमला चौधरी, पुर्निमा बैनर्जी, एनी मस्कारेन, भागनाथी देवी, लीला रॉय, सुचिता कृपलानी, अरुणा आसफ अली, अम्मू स्वामीनाथन और लक्ष्मी मेनन प्रमुख थीं। ये सभी महिलाएँ अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावशाली कार्य कर चुकी थीं और संविधान सभा में भी इन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला बेगम कुदसिया ऐजाज रसूल धर्मनिरपेक्षता की कट्टर समर्थक थी। वह समावेशी राष्ट्रीय पहचान की समर्थक थी। सभा में पहली दलित महिला श्रीमती दक्षायनी वेलायुधन ने निर्भीकता से अस्पृश्यता का विरोध किया और वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख ने सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के निर्माण और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारत के सामाजिक न्याय के प्रारंभिक प्रारूप में योगदान दिया।

श्रीमती हंसा जीवराज मेहता ने भारत के मौलिक अधिकारों का प्रारूप तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि संवैधानिक बहसों में लैंगिक न्याय को महत्ता मिले। राजकुमारी अमृत कौर एक अग्रणी राजनेता, भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों की निर्माता थी और उन्होंने देश में आधुनिक स्वास्थ्य सेवा की नींव रखी। “भारत कोकिला”  श्रीमती सरोजिनी नायडू नागरिक स्वतंत्रता की एक मुखर समर्थक थी। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। श्रीमती सुचेता कृपलानी, जो बाद में भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी सभा में एक प्रमुख आवाज़ थी। व‍ह श्रम अधिकारों और शासन सुधारों की समर्थक थी। प्रतिष्ठित राजनयिक श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक शासन में भारत की भूमिका का पुरजोर समर्थन किया। इस पुस्तक में अन्य प्रमुख महिलाओं के योगदान का भी उल्लेख किया गया है जिन्होंने भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक आदर्शों को आकार देने में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। हंसा मेहता ने प्रस्तावना में “मनुष्य” की जगह “पुरुष और महिला” शब्द जोड़ने की वकालत की, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि संविधान केवल पुरुषों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि महिलाओं को भी समान अधिकार प्रदान करेगा।

डॉ. दुर्गाबाई देशमुख ने शिक्षा सुधारों पर विशेष जोर दिया और महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधानों को मजबूत किया। वे आगे चलकर योजना आयोग की सदस्य बनीं और सामाजिक सुधारों में योगदान दिया। सरोजिनी नायडू, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख महिला थीं, ने संविधान सभा में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को लेकर प्रभावशाली तर्क दिए। संविधान सभा की महिला सदस्यों ने कई महत्वपूर्ण अनुच्छेदों के निर्माण में योगदान दिया, जिनका प्रभाव आज भी भारतीय समाज में देखा जा सकता है। इन्होंने समानता, संपत्ति के अधिकार, मातृत्व अवकाश, शिक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित किया।

संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 महिलाओं को समानता का अधिकार और सरकारी नौकरियों में समान अवसर प्रदान करते हैं। अनुच्छेद 39 (डी) महिलाओं और पुरुषों के लिए समान कार्य के बदले समान वेतन सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 42 मातृत्व अवकाश और श्रम सुधारों को मजबूती प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता (UCC) की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 243 (डी) के तहत आरक्षण की नींव रखी गई, जिसे बाद में 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के तहत लागू किया गया।

संविधान सभा की महिला सदस्यों के प्रयासों का दीर्घकालिक प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ा। इन्होंने सुनिश्चित किया कि महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और राजनीति में समान अवसर मिले। इनके योगदान से ही आगे चलकर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएँ लागू कीं। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “विशाखा दिशानिर्देश” और “यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013” जैसे कानून इन्हीं संवैधानिक प्रयासों का परिणाम हैं।

संविधान सभा की महिला सदस्यों ने भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की भूमिका को सुनिश्चित किया और एक ऐसे समाज की नींव रखी, जहाँ पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार मिले। भले ही इनकी संख्या कम थी, लेकिन इनके विचारों ने भारतीय संविधान को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाया। आज, जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो हमें उन महिलाओं को जरूर याद करना चाहिए जिन्होंने एक नया भारत गढ़ने में अपनी भूमिका निभाई। संविधान सभा में महिलाओं का अमूल्य योगदान