

भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व के लिए प्रेरणास्रोत है। भारत की सांस्कृतिक विरासत इतिहास,आध्यात्मिक ज्ञान-परंपरा, कला और प्राचीन परंपराएं अनमोल हैं। ये यहाँ शताब्दियों से पुष्पित पल्लवित हो रही हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत भारत के लोगों और विदेशों में भारतीय मूल के लोगों के लिए एक अनुपम साख है जो उनको अन्य लोगों से अलग पहचान प्रदान करती है। विविधता में एकता का विचार वह प्रमुख चिंतन बिंदु है जिसे भारत न सिर्फ अपनी विचारधारा में बल्कि वैश्विक मंचों से एकता का संदेश देने में संपोषित करता है। इसे भारत अपने आधारभूत मौलिक सिद्धांत में सर्वोपरि स्थान देता हैं।भारत की प्राचीन सभ्यता, सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता मानवीय विकास के क्रम में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व के लिए प्रेरणास्रोत
भारत की महान दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपरा ने वैश्विक समुदाय को गंभीर मूल्य प्रदान किए हैं। भारत के सनातन सैद्धांतिक मूल्य और कर्म ,धर्म और योग की विचारधारा समकालीन वैश्विक समुदाय को भारत का मौलिक अनुदाय माना जाता है। भारत की सांस्कृतिक,आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं ने वैश्विक सीमाओं को पार कर लिया है। आज पूरे विश्व परिदृश्य पर इसकी गंभीर छाप देखी जा सकती है। कर्म, धर्म और योग की अवधारणाएं संसार के लोगों को अपने गुरुत्वीय आकर्षण से आकर्षित कर रही हैं। इसका योगदान व्यक्तिगत कल्याण ,परमार्थिक सेवा और सांसारिक व्याधियों से मुक्ति में है। समकालीन आयोजनों में प्रयाग महाकुंभ 2025 भारत की सांस्कृतिक विरासत का अनूठा उदाहरण है। जहां वैश्विक समुदाय स्वत: आकर्षित होकर आ रहा है और अपनी मानसिक शांति के लिए आध्यात्मिक सूत्र तलाश रहा है। भारत की सांस्कृतिक विरासत में दिव्य गुरुत्व है जो वैश्विक समुदाय को आकर्षित कर रहा है।
भारत की सांस्कृतिक विरासत दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत है। आत्म संयम, सहमति, सह-अस्तित्व और विविधता में एकता जैसी सांस्कृतिक विरासत का समेकित रूप से भारत भव्य चित्र प्रस्तुत करता है। यह निरूपित करता है कि विविधता के मध्य एकता कैसे स्थापित की जा सकती है?जो हमें अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संजोने और सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है।
भारत वैश्विक स्तर की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो लगभग 4000 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित है। प्राचीन भारतीय विरासत में ऐतिहासिक स्मारकों ,पुरातात्विक स्थलों, और प्राचीन ग्रंथो का अनमोल खजाना हैं ,जो मानव सभ्यता के विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। भारत की प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता इन सभ्यताओं ने मानव सभ्यता को उन्नत एवं परिष्कृत किया है। प्राचीन सभ्यताओं ने उन्नत जल निकासी प्रबंधन, मानवीकृत वजन प्रणाली, उन्नत माप एवं लेखन की उन्नत प्रणाली एवं नियोजित शहरों का आविष्कार किया है, जो समकालीन मर्मज्ञ, इतिहासकारों, भू वैज्ञानिकों एवं पुरातत्वविदों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
भारत की महत्वपूर्ण प्राचीन वैदिक सभ्यता है, जिसका उद्भव 1500 ईसा पूर्व में हुआ था। वेद, इस अवधि के दौरान रचित महान पवित्र ग्रंथों का मौलिक संग्रह है एवं हिंदू धर्म का प्राचीन धर्म ग्रंथ माना जाता है। वैदिक सभ्यता ने हिंदू दर्शन, अनुष्ठानों और सामाजिक संरचनाओं की नींव रखी है जो वर्तमान में भी भारतीय विरासत को उन्नयन कर रहे हैं। भारत की प्राचीन सभ्यता ने कला, साहित्य, विज्ञान, व्यायाम शास्त्र, खगोलीय शास्त्र,औषधि शास्त्र, दर्शनशास्त्र, न्याय शास्त्र, गणित और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्राचीन सभ्यता ने शून्य के आविष्कारक और इसकी अवधारणा को व्यवस्थित करने वाले गणितज्ञ और खगोलीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट और आयुर्वेदिक चिकित्सा के विशेषज्ञ एवं चरक संहिता के लेखक प्रसिद्ध चिकित्सक चरक को दिया है। प्राचीन सभ्यता अपने दार्शनिक नवोन्मेष, वास्तु शिल्प उपादेयता एवं सांस्कृतिक परंपराओं से विश्व को प्रेरित किया हैं।
योग भारत की आध्यात्मिक विरासत को महत्वपूर्ण देन है। इसका उद्देश्य शरीर, आत्मा और मन को संतुलित करना है।यह भौतिक /सांसारिक सीमाओं को दूर करके आत्म-खोज,आंतरिक शांति और भगवत प्राप्ति के लिए उचित मार्ग प्रदान करता है। भारत की सांस्कृतिक विरासत में भागवत गीता, उपनिषद,श्री रामचरितमानस,महाभारत और समृद्ध शास्त्रों का अनुशासन है, जो मानव की स्थिति, मानवीय समुदाय की भलाई और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में मदद कर रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए निम्न सुझाव है-
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन( यूनेस्को) के प्रति कटिबद्ध आस्था और निष्ठा को उन्नयन करके भारतीय विरासत को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रसारित किया जाए।
- सांस्कृतिक विरासत की विस्तृत सूची स्थानीय स्तर ,क्षेत्र स्तर,जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार होनी चाहिए।
- सांस्कृतिक विरासत के उन्नयन एवं संरक्षण के लिए कार्यशालाएं होना अति आवश्यक हैं।
- सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए राज्य और केंद्र स्तर पर मजबूत कानून की आवश्यकता हैं।
- जिम्मेदार और उन्नत पर्यटन की दिशा में नागरिक आंदोलन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व के लिए प्रेरणास्रोत
—— (लेखक -अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, झंडेवालान के राष्ट्रीय संगठन सचिव हैं ।)