पड़ोसी राष्ट्रों में बढ़ती अस्थिरता बढ़ाती भारत की चिंता

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. डॉ. आकाश यादव
सोशल रिसर्चर व एनालिस्ट

बांग्लादेश जिसे एक समय दक्षिण एशिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की उपाधि हासिल थी, दो साल पहले तक जिस बांग्लादेश ने जीडीपी के मामले में भारत को भी पछाड़ दिया था आज उसी राष्ट्र के हालात इतने नाजुक हो गए हैं कि उसकी प्रधानमन्त्री को देश छोड़कर भागना पड़ा है और देश में अस्थित्ता के भयावह मंजर देखने को मिल रहे हैं. 5 अगस्त को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफ़ा देती हैं और निर्णय लेती हैं कि देश की स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए वह तुरंत बांग्लादेश छोड़ेंगी. यह निर्णय उस प्रधानमंत्री का है, जो पिछले 15 साल से देश पर बहुमत की सरकार के साथ शासन करती आ रही थी.1971 में जिस देश को आज़ाद करवाने का साहसिक कार्य भारत ने किया था आज उसके हालात देखकर हमारे माथे पर चिंता की लकीरें पड़ना स्वाभाविक हैं.

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, मालदीव के बाद अब बांग्लादेश में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के मायने यह हैं कि अब भारत ऐसे पड़ोसियों से घिर चुका हैं जो कि आतंरिक रूप से अस्थिर होते जा रहे हैं. पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम अपने दोस्त तो बदल सकते हैं मगर अपने पड़ोसी नहीं जिसके मायने अन्तराष्ट्रीय संबंधों में बड़े ही व्यापक निकलते हैं. बांग्लादेश में बदले हुए हालात के बीच भारत के सामने एक बड़ी चुनौती ये है कि पड़ोसी मुल्क में जो नई सरकार बन रही है, उसके साथ भारत के ताल्लुक कैसे होंगे? साथ ही भारत और बांग्लादेश 4096 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. बांग्लादेश से भारी संख्या में लोग भारत आने का प्रयास करेंगे ताकि वो खुद को सुरक्षित महसूस कर सके. लेकिन भारत में इसके मद्देनजर बॉर्डर पर सुरक्षाबालों की तैनाती बढ़ा दी गई है. हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत का साउथ एशिया में सबसे ज्यादा 12 बिलियन डॉलर का व्यापार बांग्लादेश के साथ ही है.

इसी के साथ दिल्ली को यह भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि इस अवसर का फायदा उठाने का पाकिस्तान और चीन दोनों ही भरसक प्रयास करेंगे और ढाका में आने वाली किसी भी नई सरकार को भारत से दूर रखने की कोशिश ज़रूर होगी जिसमें जमात ए इस्लामी जो की पाकिस्तान द्वारा ऑपरेटेड है, जिसपर शेख हसीना ने प्रतिबन्ध लगाकर रखा था और जिसे भारत के खिलाफ काम करने के लिए जाना जाता है को मोहरा बनाने का काम किया जा सकता है.

भारत को बेहद ही सूझभूझ के साथ इस चुनौती से पार पाना होगा. हालही में नेपाल में प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) ने नेपाली कांग्रेस से गठबंधन तोड़ नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के साथ गठबंधन बना लिया था. प्रचंड के इस हालिया फ़ैसले से नेपाली संसद में सबसे ज़्यादा 88 सीटें जीतने वाली नेपाली कांग्रेस पार्टी विपक्ष में हो गई है और यह जगजाहिर है कि ओली का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा है जिसे चीन आने वाले दिनों में भारत के खिलाफ मोहरा बना सकता है और जिसके परिणाम आने वाले समय में हमें देखने को मिलेंगे.

. पड़ोसी राष्ट्रों में बढ़ती अस्थिरता बढ़ाती भारत की चिंता

मालदीव में बनी मुइज्जू सरकार ने भी भारत को लगातार एक के बाद एक दो झटके दिए हैं. पहले उसने अपने यहां तैनात भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग माने जाने का दावा किया और अब उसने भारत के साथ चार साल पहले हुए हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे समझौते को रद्द कर दिया. इस सर्वे के तहत भारत और मालदीव को मिलकर मालदीव के इलाक़े में जल क्षेत्र, रीफ़, लैगून, सामुद्रिक लहरों और उसके स्तर का अध्ययन करना था. मोहम्मद मुइज़्ज़ु की प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव पर चीन का काफी असर माना जाता है. राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान उनकी पार्टी ने ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था और कहा था कि वो मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी ख़त्म करेंगे.

वहीँ हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी म्यांमार की स्थिति को लेकर चिंता जताई है. वहां पर गृहयुद्ध जैसे हालात लगातार बने हुए हैं. भारत की भावी रणनीति के बारे में सूत्र कहते हैं कि बहुत कुछ आने वाले दिनों में स्थिति किस तरह से करवट लेती है, इस पर निर्भर करेगा. साथ ही चीन और अमेरिका के रवैये पर नजर रखना होगा. जहां तक भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा का मामला है तो इस पर तुरंत कोई खतरा नहीं है लेकिन चूंकि यह पूरा क्षेत्र ही कई वजहों से संवेदनशील है इसलिए भारत की तरफ से हर सुरक्षा इंतजामों को पुख्ता किया जा रहा है. श्रीलंका में मंदी का दौर जारी है. कोरोना के बाद से ही यहां की जीडीपी लगातार गिरती जा रही है. महिंदा राजपक्षे की सरकार देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में नाकाम रही थी. मई, 2022 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. अब विक्रमसिंघे की सरकार है, जो चीन समर्थक हैं. जबकि पाकिस्तान की अस्थिरता जगजाहिर है.

ऐसे में 2024 में पड़ोस में बनते और बिगड़ते हालातों को देखते हुए भारत को सामरिक तौर पर बेहद ही सोच-समझकर अपनी विदेश और पड़ोसी पहले की नीति को लागू करने की ज़रूरत पड़ने वाली है. किसी को आर्थिक सहयोग देकर से तो किसी को चीन के नापाक इरादों को बताकर हमें दक्षिण एशिया में शांति बहाल करनी होगी. साथ ही यह भी समझने की ज़रूरत होगी कि भारत बड़े भाई होने की छवि को त्यागकर एक मित्र की हैसीयत से ही अपने इन पड़ोसियों को चीन की गोद में बैठने से रोक सकता है.