आखिर फंस ही गए भारतीय छात्र

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सांस के संकट के लिए रूस ने अब यूक्रेन पर वैक्यूम बम गिराए। रिहायशी बिल्डिंग पर भी हमले।रूस को समझने में गलती कर रहे है अमेरिका और यूरोप के देश। भारत का रुख अभी भी तटस्थ।आखिर फंस ही गए भारतीय छात्र। युद्धग्रस्त क्षेत्रों से सुरक्षित निकलना मुश्किल।

एस0 पी0 मित्तल

रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध 6 दिन रहा। असल में इस युद्ध में एक तरफा कार्यवाही हो रही है। हमले सिर्फ रूस की ओर से किए जा रहे हैं। अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है, जिसके अंतर्गत यूक्रेन ने रूस पर कोई मिसाइल दागी हो। 1 मार्च को रूस ने यूक्रेन पर वैक्यूम बम बरसाए हैं। सैन्य जानकारों के अनुसार वैक्यूम बम जिस स्थान पर गिरता है, वहां ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इतनी तेज ऊर्जा निकलती है कि लोगों का सांस लेना भी मुश्किल होता है। एक और रूस वैक्यूम बम गिरा रहा है तो वहीं रूस की मिसाइलें सैन्य ठिकानों के साथ साथ रिहायशी बिल्डिंगों और अस्पतालों को निशाना बना रही हैं। रूस के रुख से पता चलता है कि अब रूस को यूक्रेन के आम नागरिकों की भी कोई चिंता नहीं है। अब तक रूस का यही कहना था कि वह यूक्रेन के सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहा है। रूस को उम्मीद थी कि सैन्य ठिकाने नष्ट होने से यूक्रेन की सरकार सरेंडर कर देगी। लेकिन यूक्रेन की सरकार ने ऐसा नहीं किया। यूक्रेन की सरकार को सरेंडर करवाने के लिए ही रूस ने अब आम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। असल में अमेरिका और यूरोप के देश अभी भी रूस के रुख को समझने में गलती कर रहे हैं।

अमेरिका को लगता है जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, उससे रूस के राष्ट्रपति पुतिन कमजोर पड़ जाएंगे और यूक्रेन के युद्ध को समाप्त कर देंगे। पिछले दो दिन से मीडिया में ऐसी खबरें प्रकाशित करवाई जा रही है जिससे रूस की स्थिति कमजोर नजर आती हो, लेकिन एक मार्च को यूक्रेन पर वैक्यूम बम गिराकर रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका और यूरोप के देशों ने जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं उसका रूस पर कोई असर नहीं हो रहा है। यूक्रेन की सरकार भले ही अपने देश में रूस के हेलीकॉप्टर, टैंक आदि को निशाना बना रहे हों, लेकिन इसका रूस पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। यूक्रेन की छोटी सी कार्यवाही का रूस की ओर से बहुत सख्त जवाब दिया जाता है। यह सही है कि दुनिया के अधिकांश देन यूक्रेन की मदद कर रहे हैं, लेकिन किसी भी देश ने अभी तक अपने सैनिक यूक्रेन नहीं भेजे हैं। यूरोप के देश आर्थिक मदद के साथ साथ सैन्य सामान भी यूक्रेन को दे रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि यूक्रेन को जो सैन्य सामग्री मिल रही है, उसका इस्तेमाल कौन करेगा। रूस ने अमेरिका और अन्य देशों को पहले ही चेता दिया है यूक्रेन में किसी भी देश के दखल को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। रूस ने अभी तक इस युद्ध को यूक्रेन तक ही सीमित रखा है। यदि किसी देश ने यूक्रेन में अपनी सेना को भेजने की कोशिश की तो युद्ध जल्द ही तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दील हो जाएगा।

आखिर फंस ही गए भारतीय छात्र-

जिस बात का अंदेशा था वही हुआ। भारत सरकार की लाख कोशिश के बाद भी भारतीय छात्र यूक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंस गए हैं। 1 मार्च को यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने कीव प्रांत में फंसे छात्रों को तत्काल प्रभाव से कीव छोड़ने के निर्देश दिए हैं। छात्रों से कहा गया है कि वे किसी भी साधन से कीव से बाहर निकाल आए, लेकिन सवाल उठता है कि जिस कीव में रूसी सेनाएं वैक्यूम बम गिरा रही है, वहां से छात्र-छात्राएं कैसे निकल पाएंगे? कीव में यूक्रेन नागरिकों की जान को ही खतरा हो गया है। कीव के हालातों को देखते हुए ही भारत सरकार ने वायु सेना को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। यानी जरुरत पड़ी तो हमारी वायुसेना के हेलीकॉप्टर युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों से फंसे छात्रों को एयरलिफ्ट करने का काम भी कर सकते हैं। इस बीच चारों केंद्रीय मंत्री यूक्रेन के सीमावर्ती देशों में पहुंच गए हैं ताकि भारतीय छात्रों को जल्द से सुरक्षित निकाला जा सके। वहीं यूक्रेन के मुद्दे पर भारत का रुख अभी भी तटस्थ बना हुआ है। एक मार्च को संयुक्त राष्ट्र संघ की आपात बैठक में रूस के विरुद्ध रखे गए निंदा प्रस्ताव की वोटिंग में भारत ने भाग नहीं लिया। इससे पहले सुरक्षा परिषद की बैठक में भी निंदा प्रस्ताव का समर्थन भारत ने नहीं किया था। भारत चाहता है कि आपसी बातचीत के जरिए समस्या का हल निकाला जाए। असल में भारत को पता है कि फंसे हुए छात्रों को रूस की मदद से ही निकाला जा सकता है। रूस के सैन्य अधिकारियों की ओर से कहा भी गया है कि जिन वाहनों पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज लगा होगा, उसे नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यानी रूस की सेना भारतीय छात्रों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती है। यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारी लगातार रूस से भी संपर्क बनाए हुए हैं।