
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आगामी वित्तवर्ष के लिए बजट में सबसे अधिक चर्चा आयकर में दी गई छूट के इर्द-गिर्द ही है। कोई दो मत नहीं कि केंद्र सरकार ने इस बार आयकर सीमा में अप्रत्याशित वृद्धि की है। इस संबंध में यह मांग अरसे से हो रही थी। यह एक दबाव भी था। मगर क्या सरकार का यह कदम आने वाले समय में आर्थिक विकास में तेजी लाएगा या इसे ऐसी आर्थिक नीति के तौर पर जाना जाएगा, जिसमें राजनीतिक दृष्टिकोण बड़ा रुख रखता था, यह अभी स्पष्ट नहीं है। प्रारंभिक तौर पर इसमें यह देखने को मिलता है कि आयकर छूट से नागरिकों के पास वित्तीय तरलता में तो बढ़ोतरी होगी और साथ इसके प्रत्यक्ष तौर पर दो फायदे भारतीय अर्थव्यवस्था में देखने को मिलेंगे। पहला, व्यक्तियों की क्रय क्षमता बढ़ेगी और दूसरा, उनकी बचत बढ़ेगी। तीसरा। फायदा यह भी हो सकता सकता है कि कुछ व्यक्तियों को इस वित्तीय बचत से अपने ऋण के भुगतान में भी सहायता मिले, जो पिछले कुछ वर्षों से अपने पास कम वित्तीय तरलता से जूझ रहे थे। यानी संभव है कि क्रेडिट कार्ड के बकाया भुगतान या मकान बनाने के लिए उनके द्वारा लिए गए वित्तीय ऋणों की ऋणों की मासिक किस्तों के कारण आर्थिक तरलता में हुई कमी को एक सहारा मिले। आयकर ढांचा बनाम आर्थिक विकास
इस पक्ष पर अगर सिलसिलेवार समझने की कोशिश की जाए, तो कुछ आंकड़ों को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा। आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सामान्य विकास की दर को दस फीसद द के आसपास प्रस्तावित किया है और महंगाई को पांच फीसद से कम । कम इससे स्पष्ट है कि जीडीपी की वास्तविक विकास की दर छह से सात फीसद के बीच ही रहने की संभावना है। इसलिए मोटे तौर पर सभी को यह बात समझनी होगी कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की दर को बनाए रखने के लिए क्रय क्षमता में तेजी रखना सरकार की प्राथमिकता में है। इसके साथ ही तस्वीर का दूसरा पक्ष एक अलग असलियत को रखता है और वह यह बताता है कि भारत में से आयकर देने वालों की संख्या मात्र आठ करोड़ के आसपास है, जो आबादी का मात्र का मात्र पांच फीसद है। इससे पहले आयकर सीमा सात लाख रुपए थी, जिसे सरकार ने इस बार बजट में बढ़ा कर बारह लाख रुपए कर दिया, लेकिन इस आयकर सीमा के अंतर्गत आने वाले करदाता तीन करोड़ या उससे कम ही हैं। यानी तीन करोड़ करदाता जो औसतन 15 करोड़ जनसंख्या का ही प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें ही इस कर मुक्त सीमा का फायदा मिलेगा। तो क्या 140 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले मुल्क में आर्थिक विकास की जिम्मेदारी चाहे क्रय क्षमता बढ़ाने के संदर्भ में हो या आर्थिक बचत के हिसाब से, मुल्क के इस छोटे से तबके पर ध्यान देना तर्कसंगत है? जबकि भारत जीडीपी के हिसाब से चाहे विश्व में पांचवीं अर्थव्यवस्था का मुकाम रखता है, पर प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से विश्व में बहुत पीछे है।
आयकर सीमा में बढ़ोतरी का प्रावधान वित्तवर्ष 2025- 26 अप्रैल से लागू होगा। अब इस संदर्भ में यह बात भी समझनी होगी कि आगामी वित्तवर्ष की पहली दो तिमाहियों तक इस प्रावधान के सकारात्मक असर देखने को नहीं मिलेंगे। क्योंकि दिवाली तीसरी तिमाही में आती है और भारत में क्रय क्षमता का असली शक्ति प्रदर्शन उसी दौरान होता है। इस बजट के बाद से एक और चर्चा बहुत आम रही है कि आयकर की इस सीमा में बड़ी वृद्धि को मध्यवर्गीय व्यक्ति और उसके परिवार से प्रत्यक्ष तौर पर जोड़ दिया गया है, जो कि उचित नहीं है। भारत में मध्यवर्गीय व्यक्ति आबादी के करीबन 60 फीसद से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि आयकर सीमा में बढ़ोतरी का फायदा मात्र तीन करोड़ परिवारों को होने वाला है, जो कुल जनसंख्या दस फीसद हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस करमुक्त सीमा के प्रावधान को पूर्ण रूप से मध्यवर्गीय व्यक्ति के साथ जोड़ना अनुचित है। क्योंकि ये प्रावधान उच्च मध्यवर्गीय व्यक्ति को ही प्रभावित करते हैं।
वित्तवर्ष 2017-18 से वर्ष 2024-25 तक वेतन भोगी व्यक्तियों की आय में छह फीसद से अधिक की कमी देखी गई गई है, “जबकि स्वनियोजित रोजगार वाले लाखों व्यक्तियों की आय में नौ फीसद से अधिक की कमी दर्ज की गई है। यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि जिन आयकरदाताओं को इस आयकर सीमा में बढ़ोतरी से फायदा होगा, वे कूल बेतेनी भाबका है, जिनके वेतन में पिछले छह- वेतन भोगियों का मात्र 25 फीसद है, बाकी बचा 75 फीसद वह वेतन सात वर्षों में बहुत अधिक वृद्धि दर्ज नहीं हुई है और इसके अलावा महंगाई दर का चार से पांच फीसद के बीच बने रहना तथा खाद्य पदार्थ की महंगाई का आठ फीसद के स्तर पर पहुंचना, उनके लिए अत्यंत कष्टदायक है, क्योंकि जीएसटी की दरों में किसी भी तरह के परिवर्तन की कोई उम्मीद अभी नहीं दिखती है।
सरकार ने बजट प्रस्तुत करते समय आयकर सीमा में इतनी बड़ी राहत देकर एक तरह से तकरीबन एक लाख करोड़ रुपए के आर्थिक नुकसान को भी प्रस्तावित किया है। ज्ञात रहे कि तीन-चार वर्ष पहले जब सरकार ने कंपनियों के करों की दर में कमी की थी, तो उसने एक प्रकार से डेढ़ लाख करोड़ का घाटा प्रस्तावित किया था। जबकि वित्तीय नुकसान उससे दोगुना हुआ था। यह समझना भी अत्यंत आवश्यक है कि इस आयकर सीमा में बढ़ोतरी से प्रति व्यक्ति आय और न्यूनतम आयकर की सीमा के बीच का अंतर छह गुना से अधिक हो गया है। क्या यह पक्ष भारत में गरीबों के पैमाने को अत्यंत प्रभावित नहीं करेगा ? तनहा करणार आर्थिक विषमता को और अधिक गहरा नहीं करेगा ? नब्बे के दशक के आर्थिक सुधारों के समय भारत में प्रति व्यक्ति आय और न्यूनतम आर्थिक सीमा के बीच का अंतर तीन गुना हुआ करता था। अमेरिका में आज यह अंतर दोगुने से भी कम है। ऐसे समय में भारत में इसका छह आने वाले समय में आर्थिक विकास में किस के स्तर पर पहुंचना, गुना अधिक सुविधाजनक होगा, यह अभी बहुत स्पष्ट नहीं है।
फिर भी, इस कदम के बहुत सकारात्मक पक्ष आने वाले समय में ही दिखेंगे। इससे निजी आर्थिक निवेश को मिलेगा। क्योंकि यह व्यक्ति की आर्थिक क्षमता को यकीनन बढ़ाएगा। इसके अलावा लोगों की इससे बढ़ने वाली आर्थिक बचत का फायदा भी आने वाले दिनों में भारतीय पूंजी बाजार, बैंकिंग क्षेत्र, जमीन-जायदाद कारोबार क्षेत्र आदि में देखने को मिलेगा। इसके अलावा विभिन्न वैश्विक परिस्थितियों में हो रहे बदलाव के कारण भी भारत के घरेलू बाजार में आर्थिक तरलता में बढ़ोतरी आवश्यक थी, जिसे राजग सरकार ने समय रहते ही भांप लिया और उन अप्रत्याशित वैश्विक कदमों से निपटने के लिए सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कदम समझा जा सकता है। आयकर ढांचा बनाम आर्थिक विकास