आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..?

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आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..?
आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..?
कमलेश पांडेय

चाहे भूमि हो या सोना, इनकी कीमत अमूमन इसलिए बढ़ती रहती है क्योंकि इसमें देश-दुनिया के ‘धनपशुओं’ का निवेश होता है। यहां पर ‘धनपशुओं’ का अभिप्राय उन नेताओं, उद्यमियों, अधिकारियों, सफेदपोश अपराधियों और उन मध्यमवर्गीय पेशेवरों के समझदारी भरे गठजोड़ से है जो अवैधानिक रूप से खूब सम्पत्ति जोड़ते हैं और अपने नेटवर्क को लाभान्वित करते हैं। ऐसे लोग दुनियावी लोकतंत्र और संवैधानिक कानूनों को अपने आर्थिक हितों के मुताबिक समय समय पर मोड़वाते रहते हैं। देश-दुनिया में जारी नई आर्थिक नीतियों ने इन्हें बेलगाम कर दिया है। क्रिप्टो करेंसी जैसी समानांतर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा का बढ़ता प्रचलन और अधिकतर कैश लेन-देन में चलने वाले इनके बड़े-बड़े धंधे बहुत कुछ बयां कर जाते हैं। कहीं टैरिफ वार और कभी तस्करी से इन्हीं जैसों को तो फायदा पहुंचता है। आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..?

आप यदि थोड़ी सी गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि गोल्ड तस्करी और बेनामी जमीन-फ्लैट संपदा सौदा के लिए जो अस्पष्ट कानून हैं, उनका मकसद शायद इन्हें ही लाभान्वित करना होता है। आपने ग्रामीण भू-हदबंदी कानून जैसे शहरी भू-हदबंदी कानून के बारे में कभी नहीं सुना होगा। वह सिर्फ इसलिए कि अधिकतर शहरों में निवास कर रहे धनपशुओं को लाभान्वित किया जा सके। आपने प्रॉपर्टी लेन-देन ये ब्लैक मनी और व्हाइट मनी सम्बन्धी लेने देन की चर्चा धड़ल्ले से सुनी होगी, जो संवैधानिक कानून पर करारा तमाचा है। 

इतना ही नहीं, सरकारी बैंकों या संस्थाओं को ऐसे लोग चूना लगाते रहें, इसलिए फर्म्स, कम्पनीज़, ट्रस्ट्स, सोसाइटीज आदि को अलग अलग इकाई करार दिया गया, चिट-फंड्स कानून बनाए गए जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। आप यह जानकर हैरत में रह जाएंगे कि जिन लोगों की कम्पनियों को दिवालिया कानून का लाभ मिलता है, व अन्य प्रकार के नीतिगत छूट मिलते हैं, उनके परिजनों, मित्रों, नौकरों के पास भी अकूत सम्पत्ति होती है। ट्रस्ट और सोसाइटी जनसेवा कम, कर वंचना के अड्डे ज्यादा हैं। 

हमारे देश के ज्यादातर अधिकारी इसलिए अमीर बन जाते हैं कि हर गलत चीज पर आंखें मूंदने के लिए उन्हें ‘उपकृत’ किया जाता है! शहरों में रियल एस्टेट भी एक अभिजात्य वर्गीय कारोबार है जिसमें बड़े पैमाने पर कालेधन का निवेश किया गया है। यदि आप कहेंगे कि सोने और जमीन, मकान-दुकान-फ्लैट्स की राशनिंग कब होगी, इनमें निवेश की हदबंदी कौन करेगा, इन्हें आधार कार्ड से कौन जोड़ेगा, तो नेताओं-अधिकारियों को सांप सूंघ जायेगा । 

वहीं, शहरों में प्रॉपर्टी खरीद-बिक्री के साथ-साथ रेंटल धंधे में भी कई प्रकार की अनियमितता की बात बताई जाती है। ऐसा नहीं कि इन्हें नियमित किये जाने के लिए कानून नहीं बनाए जाते बल्कि उनमें भी सुराग छोड़ दिये जाते हैं और जमीन पर अनुपालन करवाने में प्रशासनिक ढिलाई बरती जाती है। सरकार ने रेरा कानून भले बना दिए, फिर भी रियल एस्टेट के धंधे में अनियमितता पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। पूर्व के प्रोजेक्ट्स की भी सही जांच नहीं हुई है अन्यथा अबतक कई मामले प्रकाश में आए होते, खासकर नक्शे से ज्यादा फ्लैट्स बनाने व बेचने के। रेरा अधिकारियों को इस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। वहीं, आवासीय इलाकों में अवैध व्यवसायिक उपयोग भी सुलगता सवाल है जिस पर स्पष्ट नीति का अभाव महसूस किया जा रहा है। अवैध कॉलोनियों और झुग्गियों की बाढ़ का भी सही समाधान अबतक नहीं मिला। इसलिए यक्ष प्रश्न है कि आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे?

दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कुछ रियल एस्टेट कंपनियों और उन्हें लोन देने वाले कुछ बैंकों की ओर से घर खरीदारों को बंधक बनाए जाने के मामले में कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने साफ कहा है कि लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई लगाई लेकिन मजबूर कर घर खरीदार को बंधक बना दिया गया। लिहाजा, कोर्ट ने बिल्डर-बैंकों के गठजोड़ की जांच के लिए सीबीआई को मामला सौंपने के संकेत दिए हैं। इससे मामले की गम्भीरता को समझा जा सकता है। यह तो महज बानगी है। आर्थिक व नीतिगत जख्म इससे भी ज्यादा गहरा है।

दरअसल, जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली बेंच ने उन घर खरीदारों की शिकायतों पर सुनवाई की जो यह दावा कर रहे थे कि बिल्डरों की देरी के कारण उन्हें अभी तक अपने फ्लैट नहीं मिले हैं। फिर भी बैंक उनसे ईएमआई की जबरन वसूली कर रहे हैं। घर खरीदारों का कहना है कि बिल्डरों और बैंकों ने नियमों का उल्लंघन कर उन्हें लोन लेने का जरिया बनाया। बैंक ने बिना उनकी जानकारी के लोन की रकम सीधे बिल्डरों के खातों में ट्रांसफर कर दी।

सवाल है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और नैशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए यह पैसा बिल्डरों को क्यों दे दिया गया? वहीं, जब बिल्डरों की लापरवाही भांपकर फ्लैट खरीददारों ने बैंकों को ईएमआई का भुगतान करना बंद कर दिया तो बैंकों ने घर खरीदारों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। आलम यह है कि बिल्डर और बैंक अब तक एनसीआर के लेट प्रोजेक्ट्स की स्थिति पर साफ जानकारी देने में विफल रहे हैं। इस वजह से मामले की गहन जांच की जरूरत है। जांच के लिए एसआईटी गठित की जानी चाहिए।

देखा जाए तो लेन-देन के मामलों में बिल्डर कुछ ज्यादा ही बदनाम हो चुके हैं। उनके घटिया निर्माण की भी एक अलग त्रासदी है। यही वजह है कि वक्त वक्त पर इनकी अनियमितता सामने आती रही है। इनपर कार्रवाई भी हुई है। 2010 के दशक से इनके घपले बढ़े हैं। आम्रपाली समूह, अंसल ग्रुप आदि ने तो अपनी सारी हदें पार कर दी हैं। हाल ही में दो बिल्डरों पर इनकम टैक्स विभाग की रेड भी पड़ी है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की 30 से ज्यादा टीमों ने बुधवार को काउंटी बिल्डर और एबी कॉर्प के नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव और मेरठ के अलावा एनसीआर के करीब 30 ठिकानों पर रेड की। आईटी की टीम वित्तीय गड़बड़ी के मामले में छानबीन करने पहुंची थीं। गाजियाबाद में इंदिरापुरम स्थित ऑरेंज काउंटी सोसायटी में इनकम टैक्स की टीम पहुंची और कुछ कागजात ले गई।

वहीं, बरसों के इंतजार के बाद आज से ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थित आम्रपाली ड्रीम वैली-2 प्रोजेक्ट में घर खरीदारों को पजेशन मिलने लगेगा। जिन टावरों में यह प्रक्रिया शुरू हो रही है, उनके फ्लैट जून 2024 में ही तैयार हो गए थे। प्रोजेक्ट में बाकी बेसिक सुविधाएं न होने की वजह से पजेशन शुरू नहीं हो पाया था। इस प्रोजेक्ट में कुल 8302 फ्लैट हैं। 

सवाल है कि जब फ्लैट ही नहीं मिले, फिर भी ईएमआई की वसूली क्यों हुई? क्या यह बैंक प्रशासन की लापरवाही नहीं है? क्या न्यायिक सक्रियता के बिना भारतीय प्रशासन की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है कि वह ऐसे घपलों पर समय रहते ही रोक लगाए और सही कार्रवाई करे। क्या उसकी खुफिया एजेंसी विफल हो चुकी है जो ऐसे नासुरों की सही जानकारी, सही समय पर प्रशासन को नहीं दे रही है। यह चिंताजनक है। नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत होनी चाहिए, न कि धनपशुओं की! अब समय आ गया है कि रेरा को और अधिक जिम्मेदार बनाया जाए अन्यथा यह सवाल उठता रहेगा कि आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..? आखिर कब तक जारी रहेंगे रियल एस्टेट के गोरखधंधे..?