2.5 लाख आय वाला अमीर तो 8 लाख वाला गरीब कैसे….?

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2.5 लाख आय वाला टैक्स पेयी तो 8 लाख वाला गरीब कैसे….?

लौटनराम निषाद

भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि 2.5 लाख वार्षिक आय से 5 लाख पर 5 प्रतिशत आयकर लगता है,वही भारत सरकार 8 लाख वार्षिक आय वाले सवर्णों को गरीब मानती है। उन्होंने कहा कि 8 लाख वार्षिक आय वाला सवर्ण ईडब्ल्यूएस आरक्षण का हकदार कैसे?निषाद ने बताया कि आयकर नीति के अनुसार 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आय पर 5 फीसदी टैक्स लगता है। 5 लाख रुपये से 7.5 लाख रुपये की आय पर 10 फीसदी टैक्स, 7.5 लाख रुपये से 10 रुपये की आय पर 15 फीसदी टैक्स,10 लाख से 12.5 लाख रुपये की आय पर 20 फीसदी टैक्स लगता है,वही 12.5 लाख रुपये से 15 लाख रुपये की आय पर 25 फीसदी और 15 लाख रुपये से ज्यादा आय वालों पर 30 फीसदी टैक्स लगता है।

ईडब्लूएस कोटा आय को ‘ आर्थिक रूप से कमजोर ’ वर्ग में शामिल करने के लिए एक निर्धारक कारक के रूप में मानता है। कोटा के भीतर का एक बड़ा वर्ग उस स्लैब के भीतर है जिसे आयकर का भुगतान करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को लोकतंत्र का सर्वोच्च स्थान दिया गया है,परन्तु बिना किसी प्रतियोगी परीक्षा के जातिवाद व भाई भतीजावाद,परिवारवाद के आधार पर न्यायाधीशों का मनोनयन किया जाता है।भारत का कॉलेजियम सिस्टम विश्व की अनोखी परम्परा है।समूह- ग व घ की नौकरियों की नियुक्ति के लिए भी लिखित परीक्षा व साक्षात्कार होता है।समूह ग के स्तर के प्राथमिक शिक्षक,नर्स,लिपिक की भर्ती के लिए टेट,सेट,पेट की परीक्षा पास करने के बाद सुपर टेट,सुपर पेट पास करना अनिवार्य कर दिया गया है।समूह क व ख़ की नौकरियों कद लिए लोक सेवा आयोग व संघ लोक सेवा आयोग की त्रिस्तरीय प्रतियोगी परीक्षा(प्री,मेन व इंटरव्यू) में सफल होना होता है।

जूनियर व सीनियर ज्यूडिशियरी के लिए भी त्रिस्तरीय प्रतियोगी परीक्षा होती है,ऐसे में हायर ज्यूडिशियरी(हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट) के न्यायाधीशों का कॉलेजियम से मनोनयन बिल्कुल गलत है,जिससे जातिवाद,भाई-भतीजावाद व परिवारवाद को खुला बढ़ावा मिलता है। मिश्रा,ललित व चंद्रचूड़ उपनामधारी उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के रूप में परिवारवाद का नमूना देखा जा सकता है।न्यायपालिका को जातिवाद,परिवारवाद के कलंक से बचाने व न्यायपालिका की निष्पक्षता के लिए लोक सेवा आयोग,संघ लोक सेवा आयोग के पैटर्न की प्रतियोगी परीक्षा भारतीय न्यायिक सेवा आयोग द्वारा संचालित कर की जानी चाहिए। बिना किसी प्रतियोगी परीक्षा के कॉलेजियम से नामित न्यायाधीश कठिन प्रतियोगी परीक्षा से चयनित लोकसेवक व जनता द्वारा चुने गए जनसेवक को कटघरे में खड़ा कर दंडित करता है,जो विश्व का आठवां आश्चर्य है।

यह कैसे हो सकता है कि 2.5 लाख रुपये आयकर संग्रह के लिए आधार वार्षिक आय है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में 8 लाख रुपये से कम की सकल वार्षिक आय को शामिल करने के फैसले को बरकरार रखा है? यह मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ में एक याचिका के लिए एक केंद्रीय प्रश्न है। कोर्ट ने इसमें केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस जे. सत्य नारायण प्रसाद की पीठ ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय, वित्त कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को नोटिस जारी किया। 

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