बच्चों के स्वस्थ विकास और वृद्धि के लिए एक सुरक्षित और सुखी परिवार के माहौल की आवश्यकता होती है।
आज के अभिभावकों की प्राथमिकताओं तथा शिक्षा के बदलते आयामों के अलावा बहुत कुछ ऐसा है जो बच्चों की एकाग्रता में बाधक है। ऐसे में घर में ऐसा माहौल बनाना बेहद जरूरी है कि वे ध्यान लगाकर पढ़ सकें। यह एक गंभीर मसला है और माता-पिता का विशेष ध्यान मांगता है। काम में उलझे पिता और मां की प्राथमिकता अब बच्चे की पढ़ाई से अधिक उनका खुद का मनोरंजन बन चुका है। इसीलिए अब घरों में पढ़ाई का माहौल बना कर रख पाना इन आधुनिक अभिभावकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। वैसे अभिभावकों की बदलती प्राथमिकताओं के अलावा शिक्षा के बदलते आयाम और बच्चों की बिगड़ी दिनचर्या भी काफी हद तक घरों में शिक्षा का माहौल न बना पाने में दोषी है।
बच्चों के स्वस्थ विकास और वृद्धि के लिए एक सुरक्षित और सुखी परिवार के माहौल की आवश्यकता होती है। भारत में, बच्चों पर शिक्षा और शिक्षकों द्वारा डाला गया दबाव पारंपरिक तनाव का एक प्रमुख कारण है। पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए माता-पिता द्वारा बच्चों पर डाला गया असामान्य दबाव अधिकांशता अधिक रहा है। अन्य देशों के विपरीत,भारतीय छात्र के संकट में साथियों द्वारा दबाव नहीं डाला जाता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि परिवार से आने वाले शिक्षकों में विशिष्टता की जरूरत है, क्योंकि बच्चों से किया गया खराब व्यवहार उनके मनोबल को कमजोर कर देता है और यह उनके विफल होने का एक प्रमुख कारण बनता है।
आज की बढ़ती महंगाई और बेलगाम होते खर्चों ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है। ऐसे में जहां वह हर चीज में कटौती कर रहा है, वहीं उसके रहने के स्थान में भी कटौती साफ नजर आ रही है। इस कटौती का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ता है क्योंकि एक कमरे में ही मनोरंजन के लिए टीवी भी होता है और मेहमानों का आना-जाना भी। कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो बच्चे की पढ़ाई के लिए एक अच्छा माहौल बनाया जा सकता है। आपका घर यदि 1 या 2 कमरे का है तो आपको सबसे पहले जरूरी है कि आप अपने बच्चे की पढ़ाई का समय निर्धारित करें। पढ़ाई के लिए वह समय चुनें। बच्चे को एकांत और एकाग्रता के साथ पढ़ने का मौका मिलेगा।
बच्चों की पढ़ाई में सबसे अधिक विघ्न तब पड़ता है जब कोई मेहमान घर आ जाता है। और जब घर छोटा हो तो इस वक्त मेहमान का आना आपको अखर भी सकता है। बेहतर है कि अपने बच्चे की पढ़ाई के वक्त आप किसी भी मेहमान को न्योता न दें और अगर मेहमान आ जाएं तो उनके जाने के बाद बच्चे की अधूरी पढ़ाई को पूरा करें। किसी भी प्रकार के काम से घर के बाहर जाना हो तो कोशिश करें कि बच्चे के स्कूल से घर आने के पहले ही आप बाहर के काम निपटा लें या फिर बच्चे की पढ़ाई खत्म होने के बाद आप वह काम करने जाएं। बच्चे की पढ़ाई का वक्त हो रहा हो तो आप भी उसके साथ कोई अच्छी पुस्तक पढ़ें या फिर समाचारपत्र या पत्रिकाएं पढ़ें। इससे बच्चे का पढ़ाई में और भी अधिक मन लगेगा।
निःसंदेह घर का कामकाज निपटाते-निपटाते आप थक जाते-जाती होंगी, लेकिन जब बच्चा पढ़ रहा हो तो कतई न सोएं। आपके ऐसा करने से उस में आलस्य आएगा। कोई प्रलोभन देकर बच्चे को पढ़ने को न बैठाएं। ऐसा करने से बच्चा पढ़ाई के दौरान दिए गए प्रलोभन के बारे में ही सोचता रहता है। आप पार्टी की शौकीन हैं तो अपने शौक से आपको समझौता करने की जरूरत नहीं लेकिन जिस वक्त बच्चे का पढ़ने का समय हो, उस वक्त घर में किसी भी प्रकार का आयोजन न करें। बच्चा जिस कमरे में बैठ कर पढ़ रहा हो, उस कमरे में किसी को भी न जाने दें। हां, आप 1-2 बार बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए वहां जरूर जाएं।
बच्चे के पढ़ने का समय हो रहा हो तो आप उसे ऐसी कोई भी चीज न खिलाएं जिससे उसे सुस्ती आए। बच्चे के कमरे में पानी की एक बोतल जरूर रखें ताकि जब उसे प्यास लगे तो उसे किचन तक न आना पड़े। बच्चे को पढ़ाई करने के दौरान हर 45 मिनट के बाद 15 मिनट का रेस्ट दें। इस दौरान उससे इधर-उधर की बातों की जगह सिर्फ पढ़ाई की ही बातें करें ताकि उसका फोकस न बिगड़े। बच्चों को यदि वीकेंड पर बाहर घुमाने ले जाते हैं तो कोशिश करें कि उन्हें खासतौर से एजुकेशन पर डिजाइन किए गए सैंटर्स पर ले जाएं। वहां उन्हें क्विज खेलने और अपना एप्टीट्यूड टैस्ट करने का मौका मिलेगा।
अधिक कमाई वाले कारोबार के रूप में खेल और मनोरंजन के उदय के साथ,अधिकांश भारतीय लोगों का पारंपरिक कैरियर के रूप में इन क्षेत्रों में ध्यान आकर्षित हुआ है। हालांकि, अधिकांश भारतीय माता-पिता,बच्चों के लिए शिक्षक की आवश्यकता को दूर करने में असमर्थ हैं। भारत के सबसे प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने, कई माता-पिता को यह बताकर सोंचने पर मजबूर कर दिया कि उनके माता-पिता ने उनके शिक्षकों को अभ्यास के दौरान होने वाली गलतियों पर पिटाई करने की अनुमति दी थी और अब, किसी भी खेल या मनोरंजक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रतिस्पर्धा आवश्यक है, माता-पिता अपने बच्चों को ऑल राउंडर्स बनने के लिए प्रेरित करते हैं, इसमें बच्चों की कहानी अक्सर सफल कहानी के बजाय एक पीड़ित कहानी के रूप में खत्म होती है।
तनाव के लक्षण
उदासीनता तनावपूर्ण बच्चे के सबसे बड़े लक्षणों में से एक है।अध्ययन, खेलने का समय, टेलीविजन और मनोरंजन या बाहरी गतिविधियों में दिलचस्पी का अभाव आदि इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि कुछ सही नहीं है। जब आप इन कारणों की जाँच करें तो असाधारण थकान, भूख की कमी, नींद के अशान्त तरीके आदि पर भी ध्यान दें।बच्चों के बार-बार बीमार होने पर भी ध्यान दें यह तनाव का एक आम लक्षण है। अक्सर सिरदर्द, पेट में दर्द और जी मिचलाना आदि आने के कुछ मायनों में एक बच्चा सामान्यतः किसी विशेष गतिविधि के संबंध में भय या चिंता से निपट सकता है।जब बच्चों की मानसिक स्थिति की बात आती है तो नकारात्मकता और नकारात्मक व्यवहार उनकी गतिविधियों से स्पष्ट होता है। नकारात्मक व्यवहार में अस्थिर मनोदशा, आक्रामकता, सामाजिक अलगाव या साथियों से बातचीत न करना और घबराहट आदि शामिल हैं।किशोरों के मामले में अभिभावकों द्वारा डाले गये अत्यधिक दबाव से तनाव में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जब छात्र अभिभावक के अनुचित दबाव से निपटने में असमर्थ हो जाते हैं तब वह धूम्रपान, नशीली दवाओं का सेवन और विद्यालयों में बेकार घूमने आदि जैसी अनदेखी गतिविधियों का अभ्यास करने लगते हैं।जिन गतिविधियों में बच्चे आमतौर पर भाग लेना अधिक पसंद करते हैं, वह कार्य करने के लिए रोकर जिद कर सकते हैं। बच्चों पर शिक्षकों या अभिभावकों द्वारा डाला गया अत्यधिक दबाव उनके उस क्षेत्र में भी प्रदर्शन को खराब कर देता है जिसमें वह स्वाभाविक रूप से निपुण होते हैं।
अभिभावकों की सकारात्मकता
आत्मनिरीक्षण – आत्मनिरीक्षण माता-पिता का एक महत्वपूर्ण तत्व है। लंबे दिन के बाद अपने माता-पिता को अपने बच्चों से बातचीत करनी चाहिए। क्या आपने पारस्परिक प्रभावों पर ध्यान दिया है या आपके बच्चे को असहमति का अधिकार है? क्या आपके व्यवहार में उसको समझाने और प्रेरणा देने की बजाय मजबूर किया जा रहा है….?
प्रोत्साहित करें – माता-पिता द्वारा बच्चे को प्रोत्साहित करना, उसकी सफलता का एक मूल मंत्र हो सकता है। आप अपने बच्चे के जीवन में एक प्रमुख खिलाड़ी हैं उसको आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उत्कृष्टता सिखाना आप पर निर्भर करता है। यह भी आपकी ही जिम्मेदारी है कि आपका बच्चा आपकी हर बात को दिल से स्वीकार करे। विफलता नए अवसरों की तलाश करने और शोक का एक अवसर नहीं है।
बातचीत करें – आपके बच्चे के साथ बिताए जाने वाले कुछ सबसे अच्छे पल वह होते हैं जब आप खेल रहे हों और मस्ती या मनोरंजन की गतिविधियों में खुशी से भाग ले रहे हों। इन पलों को गहरी मित्रता और दोस्ती बनाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करें। आपके द्वारा दी गयी कोई भी वह सलाह जो उसको आज्ञा या दबाव न लगे, बच्चे के व्यक्तित्व को मजबूत करने में बहुत सहायता करेगी।
सहायता प्राप्त करें – आपको और आपके बच्चे के लिए लगातार सहायता मांगना वर्जित नहीं है। वास्तव में परिवार परामर्श के लिए जीवन का एक जरूरी हिस्सा है, जिससे हम आगे बढ़ रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं को नकारात्मक व्यवहार संबंधी गतिविधियों की पहचान करने और उन्हें अलग करने में आपकी सहायता करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
अभिभावक कैसे करे अपने बच्चे की पढ़ाई में मदद –
आपके बच्चे को पढ़ाई में मन ना लगने का उपरोक्त जो भी कारण परेशान कर रहा है सबसे पहले उसे दूर कीजिए।
बचपन से बच्चों को अच्छी आदतें व शिष्टाचार के संस्कार दें । उनकी दिनचर्या व्यवस्थित बनाए ताकि बच्चे अपना कार्य समय पर करने के आदी हो जाए। इस तरह से बच्चा समय की कद्र करना सीखेगा। यह कभी ना भूले आप अपने बच्चे के प्रथम शिक्षक है और आप ही बच्चे के जीवन के पहले मार्गदर्शक कहलाएँगे। आपके द्वारा सिखाई गई इन्हीं गुणों की परछाई सदैव उनका साथ देगी, तब भी जब आपका भी साथ ना होगा।
अपने घर का माहौल पॉजिटिव रखें, यानी की ना टेंशन देनी है और ना ही लेनी हैं। इससे आपके बच्चे के दिल और दिमाग पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
बच्चों को यह अहसास दिलाए की आप उनके साथ हर परिस्थिति में हो, इससे बच्चे को कभी अकेलापन नहीं खलेगा।
आजकल माहौल बहुत बदल गया है, बड़े होते बच्चों के साथ एक पेरेंट्स की तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह पेश आए। इससे बच्चे अपनी समस्या सबसे पहले आपसे शेयर करेंगे। बच्चे के मन में आपके प्रति डर होगा तो बच्चा फ़्रस्टेड फील करेगा, फिर ऐसे मूड से भला पढ़ाई अच्छी कैसे होगी।
बच्चों को अपना समय दे, इसके लिए अगर आपको घूमना-फिरना, बातें, मूवी, मार्केट आदि छोड़नी भी पड़े तो बिना सोचे छोड़ दे क्योंकि पहली प्राथमिकता आपके बच्चे है। पढ़ाई से पहले अगर बच्चे किसी चीज की जिद्ध करे तो पहले उनकी डिमांड सुने अगर उचित डिमांड हो तो जरूर पूरी करे या फिर आश्वासन दें । लेकिन गलत डिमांड को पूरी ना करने का उचित कारण भी बच्चे को समझाए।
बच्चे को जब भी पढ़ाई में मदद की जरूरत हो तो सब काम छोड़कर पहले उसकी मदद करिए इससे बच्चे का मनोबल बढ़ेगा। बच्चों को यह विश्वास जताए की आप उनकी मदद के लिए हर वक्त फ्री है। कभी भी पढ़ाई के लिए डांटें-फटकारें या मारे नहीं। आखिर बच्चा ही है अपने प्यार का इस्तेमाल करे। बच्चों का मन बहुत नाजुक होता है वो आपकी जरूर सुनेगा। अब बच्चे को कैसे मनाना है यह आपसे बेहतर भला और कौन जान सकता हैं।
बच्चों के खाने-पीने का पूरा ध्यान रखे। उनके पढ़ने का कमरा बिल्कुल साफ और रोशनीदार हो। हो सके तो बच्चों की स्टडी टेबल ईशान कोण या उत्तर दिशा की ओर हो जिससे इनका मुख भी इसी दिशा में रहेगा। इससे बच्चों में पॉजिटीविटी और मेमोरी में वृद्धि होती है।
वास्तुनुसार पढ़ाई का कमरा शौचालय के नीचे ना हो। कमरे में आईना भी ऐसी जगह ना हो जिससे बच्चों को अपनी किताबों का प्रतिबिम्ब दिखाई दे, ऐसी स्थिति में बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ता है। कमरे में खिड़की जरूर हो जिससे हवा और रोशनी की समस्या ना रहे। सूर्य की रोशनी आने से नकारात्मक ऊर्जा का भी नाश होता है। कमरा अस्त-व्यस्त ना हो। अध्ययन कक्ष का रंग हल्का पीला, सफेद और वायलेट हो। ऐसे रंग आँखों को चुभते नहीं है और रोशनी भी सही रहती है। लैपटॉप को दक्षिण-पूर्वी दिशा में रखे। बच्चे को प्रेरणा देने हेतु उनके कमरे में उगते सूर्य या घोड़े या ऊँचे पहाड़ का चित्र लगाए। कोई भी चित्र या वस्तु हिंसाजनक ना हो। रूम में सर्टिफिकेट और ट्राफी सजाए, इससे बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
कभी-कभी बच्चों के लिए अनुशासन जरूरी होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की बच्चे की तुलना किसी ओर से की जाए। इससे बच्चे हीनभावना से ग्रस्त हो जाते है और अपना आत्मविश्वास खो बैठते है। हर बच्चे में अपनी काबिलियत होती है उन्हें किसी ओर जैसा बनने के लिए विवश ना करे। अति दबाव दुर्घटना का कारण हो सकता है। बच्चे के कुछ अच्छे प्रदर्शन पर उनकी तारीफ करना ना भूले इससे बच्चे पढ़ाई के प्रति उत्साह और रूचि दिखाएँगे।
अगर बच्चा पढ़ाई में कमजोर है तो काऊँसलर या टीचर से विचार-विमर्श करे। पढ़ाई में बच्चे की मदद करे। आपके साथ से उसकी पढ़ाई में सुधार आएगा और उसका खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौटेगा। अगर बच्चा कोई बुरी संगत या आदतों का शिकार हो गया है तो उसे समझाए। अपने प्यार और साथ का उसे विश्वास दिलाइए और उज्ज्वल भविष्य की और उसे प्रोत्साहित करे।
बच्चों में सुबह जल्दी उठकर पढ़ने की आदत शुरू से डालें, शांति होने के कारण यह समय पढ़ाई का सबसे उत्तम समय माना जाता है, इस समय में पढ़ा हुआ सब याद रहता है। बच्चों की अच्छी मेमोरी के लिए सुबह दूध के साथ भीगे हुए बादाम दे। इसके अलावा जूस, सूप, दूध, हरी सब्जियाँ आदि को भी आहार में शामिल करे।
अभिभावक बच्चों को प्रोत्साहित करे नाकि उनपर दबाव बनाए बल्कि ऐसा माहौल बनाए की वे खुद पढ़ाई की कीमत समझे। बच्चों की अगर कोई समस्या है तो उसे दूर करने का प्रयास करें डराए नहीं। जब बच्चे का मन हल्का होगा तभी तो वो पढ़ाई में मन लगा पाएँगे।आजकल कॉम्पीटिशन बहुत है बच्चे को पहले से ही बहुत दबाव है ऐसे में आप उनके हेल्पर बने। बच्चे को यकीन में ले की आप उनपर गुस्सा नहीं करेंगे बल्कि उन्हें समझेंगे।
कई बार माता-पिता बच्चों की पढ़ाई को लेकर ओवर कौन्शस हो जाते हैं। यह व्यवहार ठीक नहीं। इससे आपके बर्ताव पर असर पड़ता है। आप अपनी और अपने बच्चे की भावनाओं को दुख पहुंचाते हैं और कुछ भी नहीं।
इन बातों का ध्यान रखें—-
बच्चे के स्कूल से आते ही उससे क्लास और टीचर की बातें न करें। उसे खाना खिलाएं, टीवी देखने दें और यदि वह सोना चाहे तो उसे सुला भी दें।
बच्चे के साथ जबरदस्ती न करें। पढ़ाई के मामले में तो बिल्कुल भी नहीं। जिस वक्त वह खेलने के मूड में है, उसे खेलने दें।बच्चे यदि आपसे इंटरनेट पर बैठने की जिद करें तो उन्हें मना न करें बल्कि उन्हें इंटरनेट पर सर्च करने का सही तरीका समझाएं।
कई माता-पिता बच्चों को आउटडोर गेम्स नहीं खेलने देते। उन्हें डर रहता है कि दूसरे बच्चे उसे गंदी हरकत करना सिखा देंगे या फिर उसे चोट पहुंचा देंगे। ऐसे बच्चे जो सिर्फ घर में ही खेलते हैं, उनका आईक्यू लैवल कम होता है। बच्चों को घर से बाहर खेलने जरूर भेजें। हो सके तो आप खुद भी उनके साथ जाएं।
आजकल के माता-पिता बच्चों को मूवी दिखाने ले जाते हैं लेकिन कभी प्रदर्शनी या फिर बुकफेयर नहीं ले जाते। यहां ले जाना उन्हें समय और पैसे की बर्बादी लगता है। जबकि यह गलत है। बच्चों को बुकफेयर और दूसरी प्रदर्शनियों में जरूर ले जाएं। यहां पहुंच कर बच्चों को बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। हो सकता है कि वे आप से कुछ सवाल भी करें।