न्यायालय में जाति विशेष का वर्चस्व

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न्यायालय को 341 व 342 में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं ,कॉलेजियम के कारण उच्च न्यायपालिका बना है जाति विशेष के वर्चस्व का अड्डा।

लौटनराम निषाद

लखनऊ। सर्वोच्च न्यायालय की 7 सदस्यीय संविधान पीठ का 6:1 के बहुत से एससी/एसटी आरक्षण उपवर्गीकरण के सम्बंध में दिया गया निर्णय पूरी तरह असंवैधानिक व न्यायालय के दायरे.के बाहर है।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने सर्वोच्च न्यायालय के 1 अगस्त के निर्णय को संविधान विरोधी बताते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद संख्या-341(1),(2) और 342(1),342(2) में किसी भी प्रकार का संशोधन करने का न्यायालय को अधिकार ही नहीं है।यही नहीं केन्द्र सरकार की कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद) को भी बिना संसद की मंजूरी के कोई संशोधन का अधिकार नहीं है।

भारतीय संसद (लोकसभा व राज्यसभा) में पारित विधेयक को राष्ट्रपति ही कर सकते हैं।उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम के कारण उच्च न्यायपालिका कुछ जाति विशेष व कुछ परिवारों के वर्चस्व का अड्डा बन गया है।उन्होंने बताया कि 70 साल में अनुसूचित जाति के श्री के.रामास्वामी,श्री के.जी. बालकृष्णन,श्री बी. सी.रे, श्री ए.वर्धराजन सिर्फ चार ही लोग सुप्रीम कोर्ट में जज बन पाए हैं और ओबीसी के जज भी केवल 2 ही हुये हैं। 70 साल में अनुसूचित जनजाति का एक भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं बन पाया है।उन्होने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में आखिर एक ही जाति का वर्चस्व क्यों है?

निषाद ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 12 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को राज्य माना जाना चाहिए। आरक्षण का प्रावधान सुप्रीम कोर्ट में राज्य की भांति होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में जब एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट पर फैसला दिया जा रहा था, उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में एससी,एसटी का एक भी जज नहीं था, क्या यह न्याय के मूल सिद्धांतों के अनुरूप था?संविधान के आर्टिकल 312 (1) के अनुसार जजों की भर्ती के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन होना चाहिए, ऐसा क्यों नहीं किया जाता है ?

संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के 42 वें संशोधन के अनुसार जजों की भर्ती के लिए ऑल इंडिया जुडिशरी सर्विस का गठन किया जाना चाहिए।यह बिल संसद में कभी पेश ही नहीं किया गया। संविधान के आर्टिकल 229 के अनुसार कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मामले में उच्च न्यायालय अपने आप को राज्य मानता है और राज्य के अनुसार आर्टिकल 15(4), 16(4) और 16(4 )(क) का पालन क्यों नहीं किया जाता है? जब केशवानंद भारती मामले में भी आर्टिकल-12 के अनुसार उच्च एवं उच्चतम न्यायालय को राज्य माना गया है, तो राज्यों के लिए लागू आरक्षण का प्रोविजन उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में लागू क्यों नहीं किया गया?

निषाद ने कहा कि जब ओबीसी,एससी-एसटी आईएएस बन सकता है,आईपीएस बन सकता है राष्ट्रपति,मुख्यमंत्री,राज्यपाल आदि बन सकता है तो सुप्रीम कोर्ट में जज बनने के लिए कौन सी अनोखी प्रतिभा होनी चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट में जज बनने के लिए मेरिट ही आवश्यक है तो ऑल इंडिया जुडिशरी सर्विस कमीशन का गठन करके यूपीएससी,पीएसी के पैटर्न की खुली प्रतियोगिता के माध्यम से चयन क्यों नहीं किया जाता?जब हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का वेतन केन्द्रीय व राज्य लोकसेवक की भांति राज्य व केंद्र सरकार करती है तो इनका कॉलेजियम से मनोनयन नहीं,बल्कि राज्य व केंद्रीय लोकसेवकों के चयन के लिए करायी जाने वाली खुली प्रतियोगिता के माध्यम से चयन होना चाहिए।