सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार…

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सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार...
सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार...
राजू यादव
राजू यादव

दुनिया का अब एक बहुत बड़ा वर्ग सोशल मीडिया को ही अपनी जिंदगी मान चुका है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सोशल मीडिया हमारी जिंदगी में काफी हावी हो चुका है और जीवन को कई तरीके से प्रभावित भी कर रहा है। सोशल मीडिया लोग अपने जीवन का हर एक हिस्सा दिखाना चाहते है और शेयर करना चाहते है, कई बार हम अपने सोशल मीडिया की जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाते है कि अपनी असल जींदगी के लोगों से ही कटने लगते है। सोशल मीडिया जहां पुराने रिश्तों को जोड़ सकता है, तो वहीं नए रिश्तों को खत्म कर आपकी जिंदगी को नर्क बना सकता है। लोग जिस तरह से सोशल मीडिया के आदी हो रहे हैं। उससे लोगों के वैवाहिक जीवन में दरारें पडऩे लगी हैं। शहर में भी कई हंसता-खेलता परिवार सोशल मीडिया के कारण टूटने के कगार पर पहुंच चुका है।मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि सोशल साइट्स के ज्यादा इस्तेमाल से विवाहित दंपति की लाइफ पूरी तरह प्रभावित हो रही है। सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार…

देखा जाए तो सोशल मीडिया पर पिछले साल सवा साल से चल रहे ट्रेंड से आपसी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं सोशल मीडिया से जुड़ें लोगों में नकारात्मकता और डिप्रेशन का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। आपसी संबंधों में दरार का नया कारण सोशल मीडिया का नया चलन बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर कुछ समय से फ्लैगिंग का नया ट्रैंड चल पड़ा है। पहली बात तो यह कि लोगों का सोशल मीडिया पर रुझान तेजी से बढ़ा है और कोढ़ में खाज यह कि सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया का दौर भी तेजी से चल पड़ा है। मजे की बात यह कि सोशल मीडिया पर रिएक्शन नहीं आना भी डिप्रेशन का कारण बन रहा है तो सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का रिएक्शन भी तनाव का कारण बनती जा रही है। इन दिनों फ्लैगिंग का नया दौर चल पड़ा है पर इसमें भी अधिक तो यह कि बेज फ्लैगिंग का नया ट्रेंड साथी को अधिक प्रताड़ित करने लगा है। प्रताड़ना का मतलब तनाव का प्रमुख कारण होने से हैं।  सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार

देखा जाए तो सोशल मीडिया पर पिछले साल सवा साल से चल रहे ट्रेंड से आपसी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं सोशल मीडिया से जुड़ें लोगों में नकारात्मकता और डिप्रेशन का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। नए ट्रेंड को भले ही सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता गंभीरता से नहीं ले रहे हो पर जिस किसी पर नए ट्रेंड के अनुसार फ्लैगिंग के माध्यम से कमेंट्स किये जा रहे हैं उसका असर अंदर तक पहुच रहा है। दर असल पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में इशारों-इशारों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का नया चलन तेजी से चला है। एक और जहां इमोजी का प्रयोग आम है तो फ्लैगिंग का नया चलन उससे भी अधिक गंभीर है।

सोशल मीडिया के ज़्यादा इस्तेमाल से रिश्तों में दरार आ सकती है। सोशल मीडिया पर ज़्यादा समय बिताने से भावनात्मक समर्थन कम होता है और आत्म-सम्मान कम होता है। इस पर टेक्स्ट-आधारित संचार में आमने-सामने की बातचीत की बारीकियों का अभाव होता है। व्यक्तिगत विवरण साझा करने या अपनी शिकायतों को ऑनलाइन प्रकट करने से रिश्ते को नुकसान पहुंच सकता है। सोशल मीडिया पर चैटिंग करने की वजह से एक दूसरे को समय नहीं मिल पाता। सोशल मीडिया पर हर बात को शेयर करने से परिवारों में दूरी बढ़ती है।

सोशल मीडिया पर इन दिनों बेज फ्लैग का चलन कुछ ज्यादा ही चला है। बेज फ्लैग का सीधा सीधा मतलब यह निकाला जा रहा है कि इस तरह का व्यवहार जो ना तो अच्छा है और ना ही बुरा, लेकिन इस तरह की प्रतिक्रिया संबंधित को सोचने को मजबूर कर देती है। खासतौर से इसका चलन आपसी रिश्तों को लेकर किया जा रहा हैं और इससे संबंधित में एक तरह की हीन भावना आती है और उसका दुष्परिणाम हम सब जानते ही हैं। इससे पहले साथियों को रेड फ्लैग और ग्रीन फ्लैग का लेबल दिया जाता रहा है। हांलाकि यह भी नकारात्मक ही है। रेड फ्लैग जहां समस्या से ग्रसित व्यवहार को दर्शाता है तो ग्रीन फ्लैग को अच्छे व्यवहार के रुप में देखा जाता रहा है। यानी कि आप अपने साथी को लेबल दे रहे हैं और वह लेबल ही साथी का आपके प्रति और आपका साथी के प्रति व्यवहार को दर्शाता है।

  हालाकि यह नए नए ट्रेंड सोशल मीडिया पर अपने फालोअर्स बढ़ाने और इंफ्लूएसर मार्केटिंग के किये जाते हैं पर इनका असर काफी गहरा देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर साइबर बूलिंग आम होती जा रही है। साइबर बूलिंग में ड़राने धमकाने के मैसेजों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से टार्चर किया जाता है। संबंधित व्यक्ति अपने आत्म सम्मान पर ठेस समझता है और इसके कारण अत्यधिक सेंसेटिव व्यक्ति तो तनाव में चला जाता है। इससे उसकी दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित होने लगती है। देखा जाए तो सोशल मीडिया आपसी जुड़ाव का माध्यम होना चाहिए पर जिस तरह का ट्रेंड चल रहा है वह जुड़ाव के स्थान पर विलगाव का अधिक कारण बन रहा है। जाने अनजाने में सामने वाले को गहरी ठेस लगती है। 

भले ही हमारी प्रतिक्रिया मजाक में हो रही हो पर सोशल मीडिया पर हमारी प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रियाओें का सिलसिला किस दिशा और हद तक चल निकले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए हमें सामने वाले की भावनाओं का भी ध्यान रखना होगा। अन्यथा और कुछ नहीं तो संबंधों में अलगाव तो तय ही है। ऐसे में सोशल मीडिया को हमें सकारात्मक दिशा में ले जाना होगा। अनपेक्षित प्रतिक्रियाओं से बचना होगा। सोशल मीडिया दरअसल समय काटने या दूसरे को बुली करने का माध्यम नहीं है और ना ही होना चाहिए। बल्कि होना तो यह चाहिए कि सोशल मीडिया के माध्यम से सकारात्मकता का विस्तार और मोटिवेशन का माध्यम बनना चाहिए ताकि सामाजिक सरोकारों को मजबूती प्रदान की जा सके। इस भाग-दौड़, ईर्ष्या व प्रतिस्पर्धा की जिंदगी में लोगों को निराशा व तनाव से बाहर लाया जा सके। हमारी प्रतिक्रिया किसी को मोटिवेट करने का माध्यम बने तभी प्रतिक्रिया की सार्थकता है। ऐसे में सोशल मीडिया में नित नए प्रयोग करते समय कुछ अधिक ही गंभीर होना होगा। खासतौर से समाज विज्ञानियों और मनोविश्लेषकों को गंभीरता से ध्यान देना ही होगा।  सोशल मीडिया के कारण रिश्तों में आ रही दरार