हिंदुत्व की अवधारणा

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हिंदुत्व की अवधारणा
हिंदुत्व की अवधारणा
डॉ.बालमुकुंद पांडेय 
डॉ.बालमुकुंद पांडेय

     परंपरागत और सामान्य व्यावहारिक शब्दों में सिंधु प्रदेश के निवासी हिंदू कहलाते हैं। हिंदुत्व शब्द का सबसे पहले प्रयोग राष्ट्रवादी चिंतक ,1857 के स्वतंत्रता संग्राम को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और अपने लेखों के माध्यमों से सामान्यजन और स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अपनी जीवन की आहुति देने के विचारों में राष्ट्रवाद की भावना का लौ और अलख को अर्जित करने वाले महान स्वातंत्र्यवीर राष्ट्रवादी चिंतक वी डी सावरकर ने वर्ष 1923 में किया था। हिंदुत्व का शाब्दिक आशय  जीवन जीने का एक तरीका या आत्मा( शरीर पर मन का नियंत्रण) की स्थिति से है, जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रकृति की भावना पर आधारित है। हिंदुत्व उदारवाद ,समाजवाद, आदर्शवाद और गांधीवाद के समान एक दर्शन है जो संपूर्ण समाज के आनंद( सुख और दु:ख के सापेक्ष स्थिति) को प्रदान करने वाला गत्यात्मक अवधारणा हैं। हिंदुत्व में शासक (सरकार) और शासित( लोक) के अधिकार, कर्तव्य और आचार संहिता के अनुपालन पर संकेंद्रण किया गया है। हिंदुत्व की अवधारणा

हिंदुत्व जीवन जीने का एक तरीका ,राष्ट्रीय परंपरा एवं अनुशासन हैं जिसमें भौतिकवाद,सनातन धर्म, अस्पृश्यता विहीन समाज,उत्पीड़न विहीन समाज,शोषण विहीन समाज, देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति, और पंथनिरपेक्ष तत्वों की मौलिक विशेषता है। हिंदुत्व भारतीय संस्कृति और भारतीयता का जय घोष हैं ।हिंदुत्व का महानतम मौलिक विशेषता उदारवाद का संप्रेषण, सहिष्णुता, समाज को समायोजित करने वाले गुरुत्वीय शक्ति और वैश्विक स्तर की समस्त शक्तियों को आत्मसात करने वाले तत्वों से हैं।हिंदुत्व के अंतर्गत सभी धर्मों  का उन्नयन बिना किसी द्वेष,पूर्वाग्रह और भेदभाव के हुआ है।

     हिंदुत्व ईसाई धर्म और  इस्लाम धर्म की तरह कोई धर्म  नहीं है बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक ,सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का सार्थक समुच्चय है । इसके मुख्य प्रतिपाद्य विषय वस्तु में आध्यात्मिक स्वतंत्रता है । इन समस्त मार्गो या आध्यात्मिक दृष्टिकोण जो दूसरों की आध्यात्मिक स्वतंत्रता को स्वीकार करें और उन्नयन के लिए प्रोत्साहित करते हैं। सभी के सार्थक समुच्चय को हिंदुत्व कहते हैं। हिंदुत्व की अवधारणा भारत तक सीमित नहीं हैं बल्कि वैश्विक स्तर अमृतरूपी तत्व के रूप में समाहित है। यह हमारी मुख्य परंपराओं, संस्कृतियों, संस्कारों और अनुशासन के आंतरिक आत्मा (भारतमाता/ राष्ट्रमाता) के दिशा को प्रतिनिधित्व  करते हैं। इसके सार तत्व को अरविंदो जी ने कहा है कि सनातन धर्म भारतीय राष्ट्रीयता की आधारशिला है। ऐतिहासिक रूप में ऐसी सामंजस्य विरोधी शक्तियां बलवती होती गई जो सनातन धर्म को निस्तेज करना चाहती थी। उनके प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदुत्व समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए सेतुविचार का कार्य किया और समकालीन में सकारात्मक बदलाव के लिए वायुदेव के सदृश सक्रिय है। हिंदुवाद के समरूप संस्कृति हिंदुत्व हैं। हिंदुवाद का संहिताकरण ही हिंदुत्व है।

     हिंदुत्व ने चालीस  शताब्दियों तक शासन किया था। हिंदुत्व हिंदू लोगों की धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ उनके सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं और उनके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को संदर्भित करने के लिए किया जाता  हैं। मौलिक रूप से हिंदुत्व समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों को उन्नयन करता हैं। हिंदुत्व के एक छोटे उपसमुच्चय  के रूप में हिंदू धर्म मात्र एक शाखा हैं। हिंदुत्व की  अवधारणा को रेखांकित करते हुए वीडी सावरकर का कहना था कि हिंदुत्व हिंदू दर्शन की एक विशिष्ट तस्वीर पेश करता है। बदलते परिवेश में हिंदुत्व हिंदू धर्म का मार्गदर्शक सिद्धांत बन जाता है।

  हिंदू समाज सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का ही नहीं वरन गंभीर नैतिक और धार्मिक संकट का सामना कर रहा हैं ।  हिंदुत्व की विशालतम जड़ें  वेदों में निहित हैं । हिंदुत्व के लिए सभ्य नागरिक होना अति आवश्यक है। इस देश का स्थाई निवासी होना चाहिए, इसके अतिरिक्त उनके पूर्वज भी स्थाई नागरिकता की पात्रता धारण करते हों ।हिंदुत्व के लिए व्यक्ति को हिंदू धर्म की संस्कृति, रक्त संबंध और धर्म को अपनाना चाहिए।  विवेकानंद जी ने हिंदुत्व का प्रचार- प्रसार किया जिनके विचारों में कोई राजनीतिक तत्व नहीं था । विवेकानंद जी के अनुसार भारतीय राष्ट्र उन व्यक्तियों का एक संघ है जिनके दिलों में समान आध्यात्मिक भावना  हों ।

   स्व से पहले सर्व  का कल्याण की कामना हिंदुत्व हैं। हिंदुत्व एक प्रत्यय है, एक विचार है, एक दर्शन है,एक जीवन का पाठ है, जीवन की एक सकारात्मक दृष्टि है और जीवन जीने का एक अनुशासन है। यह  मानवीय समुदाय का शाश्वत नियम है। हिंदुत्व में शांति का,प्रेम का, दया का ,करुणा का, ममता -स्नेह का,एवं परोपकार के सार  का समुच्चय है। हिंदुत्व सर्व कल्याण की भावना का योजित शब्द है। यह मानवता ,परंपरा एवं संस्कृति के उन्नयन में प्रबल विश्वास करता हैं। हिंदुत्व वैश्विक समुदाय को एकाकार एवं मानवीय सहयोग पर जोड़ देता है! हिंदुत्व अपने ज्ञान,बुद्धि एवं विवेक के बल पर एक दिन विश्व में राज करेंगे! हिंदुत्व ने लौकिक जगत के उत्कर्ष और आध्यात्मिक उन्नति का सकारात्मक संयोजन है। हिंदुत्व आचरण की सुचिता और पवित्रता पर विशेष जोर देता है। यह “सर्वे भवन्तु सुखिन:” के दर्शन पर आधारित हैं। यह संसार के सभी जीवों  के कल्याण के लिए है। हिंदुत्व की अवधारणा

लेख़क–अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना दिल्ली,झंडेवालान केशवकुंज।