

बदलता परिवेश हमें लगातार नए अनुभव और नई चुनौतियाँ देता है। समाज, संस्कृति और तकनीक के इस बदलाव के बीच इंसान के भीतर विश्वास और उम्मीद ही वह ताक़त है, जो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यही विश्वास रिश्तों को मज़बूती देता है और यही उम्मीद नई राह बनाने का साहस। बदलते परिवेश की यह कहानी दरअसल हर उस इंसान की कहानी है, जो कठिनाइयों के बीच भी अपने सपनों को संजोकर जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।
हम जिस समाज में रहते हैं, उसमें एक आम लड़की के सामने प्रश्न आता है- आप अपने लिए क्या खोज रही हैं। बिना एक पल गंवाए उत्तर आता है- सच्चा प्यार… अदरक वाली चाय… एक ऐसा साथी, जो बीच सफर में छोड़ के न जाए। इसे देखा-समझा और महसूस भी किया जा सकता है कि यह चाह और विश्वास है एक लड़की का… स्वयं के होने का । यह भाव नया नहीं है । यह तो सदियों से हर लड़की के मन में उस समय से रहता है, जब उसकी आंखों में नई कल्पनाएं जन्म लेती हैं और तब तक नहीं मरता, जब तक उसकी सांस टूट नहीं जाती । यह भाव एक लड़की का महिला बनने तक के सफर का विश्वास होता है, जो उसे सोच देता है, समझ देता है। जीने की लालसा देता है और अपने पड़ाव को सुदृढ़ बनाने की क्षमता तथा हौसला देता है। बदलता परिवेश:विश्वास और उम्मीदों की कहानी
हम याद कर सकते हैं अपनी उस पीढ़ी को जो हमारी दादी और नानी की थी। फिर हमारी मां की थी और अब हमारी और हमारे बच्चों की। इन चार पीढ़ियों ने ही जीवन के फैसले लेने के न जाने कितने आधार बनाए । दादी-नानी ने अपनी उम्र बीतने के बाद अपने फैसले लेने शुरू किए तो मां ने हम बच्चों के बड़े होने पर। इस नई पीढ़ी के पहले वाले माता- पिता ने दोनों के बीच का रास्ता चुना, पर आज के बच्चे स्वयं अपना निर्णय ले रहे । शायद इसीलिए वे एक नया इतिहास बनाते हुए खुद को देख रहे हैं, जिसे समय समझा रहा है कि देखो, एक नई लहर आ रही है… एक नए युग का संकेत प्रारंभ हो चुका है।
कई वैसी कहानियां आज की लड़कियां गढ़ रही हैं, जिसकी कल्पना कभी हमारी दादी-नानी ने की भी नहीं होगी। अगर कभी की भी होगी, तो हासिल शायद ही कुछ हुआ हो। मगर पहले का वह हारा हुआ हौसला, जो पितृसत्तात्मक सोच, पुरानी पीढ़ी केबंधन में घुट रहा था, आज बेबाकी से उस सोच, बंधन को पीछे छोड़ती-काटती आज की लड़कियां आगे बढ़ रही हैं। उच्च शिक्षित या ऊंचे पद काम करती लड़कियों ने अपनी मेहनत और बुद्धि से यह सिद्ध कर दिया है कि समाज चाहे जितना भी आगे बढ़ने का रास्ता रोके, हम आगे बढ़ेंगे। समय के हर पुराने अनुबंध को तोड़ कर । मगर समय की उन्नति का प्रवाह तब और सामर्थ्यवान बन जाता है, जब लड़कियां तिपहिया और कैब में सवारियों को बैठा कर उनके गंतव्य तक पहुंचाती हैं। कुछ लोग इसे मजबूरी मानेंगे, पर यह मानसिक शक्ति और धैर्य का रूपक है । समाज से लड़ने का साहस है।
लड़कियों को समूह से अलग करने का दुस्साहस । चुनौतियां उनके दोनों ओर हैं । उनके साहस और सफलता पर फांस-सी अंगुलियां दोनों ओर हैं, पर अब लड़कियों का विश्वास पीढ़ियां पार करता उनकी हथेली में भर चुका है। वे चल पड़ी हैं अपने-अपने रास्ते उस कलाकार की तरह जो एक रस्सी पर अपने पैर को विश्वास से जमाए जमीन में गड़ी बल्ली के इस पार से उस पार चली जाती है । यह साहस और विश्वास किसी लड़की के लिए उसके परिवार का होता है, वह चाहे किसी भी श्रेणी का हो।
समाज की जड़ता या संकीर्णता वहां हारती है, जहां परिवार लड़कियों की हर सफलता-असफलता, जीत-हार में एक स्तंभ की तरह साथ खड़ा होता है, क्योंकि नकारात्मकता और अतिशयोक्ति हर जगह होती है, पर विश्वास हर जगह अपनी जमीन बना लेता है। बाईस वर्ष की एक लड़की ने ‘मिग 21 बाइसन’ लड़ाकू विमान को अपनी क्षमता और विश्वास के साथ उड़ा कर यह दिखा दिया कि क्षमताएं किसी की बंधक नहीं हैं। समझा दिया कि हमारे भीतर भी दक्षता और आत्मबल है । दूसरी ओर, पिछले दो दशकों से दिल्ली में तिपहिया या आटोरिक्शा चलाने वाली एक महिला को पहले लोगों ने कहा था कि लड़कियों का आटो चलाना सम्मान की बात नहीं होती… यह काम पुरुषों का है। मगर इस महिला को उस समय यही एक रास्ता दिख रहा था अपना परिवार चलाने के लिए, इसलिए उसने किसी की नहीं सुनी। बहुत दिनों तक लोगों ने परेशान भी किया, बदतमीजी की, पर कुछ लोग बहुत अच्छे भी मिले, जिन्होंने प्यार और आशीर्वाद दिया तथा सहायता भी की। यही थोड़े- से अच्छे लोग शक्ति बन गए और वह पूरी तरह आटो ड्राइवर बन गई। लड़ती भिड़ती, अपनी जगह बनाती ।
इस तरह हम देखते हैं कि यह परिवर्तन एक दिन, एक दशक का नहीं है, न ही किसी आंदोलन के नारों से जन्मा है और न किसी सरकारी सूत्र का आग्रह है। यह परिवर्तन समय के साथ बदलते पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का है। टूटती पुरानी रूढ़ियों का है, जिसे शिक्षा, आधुनिक परिवेश और प्रौद्योगिकीकरण ने निर्मित किया। समस्याएं खत्म हो गईं हों, ऐसा नहीं है। न ही आज तक पुरुष-महिला के बीच समानता का कोई निश्चित मापदंड बन सका है। फिर भी पहले की तरह न अब कड़े प्रतिबंध हैं, न ही कोई बाधा, लेकिन कई नई चुनौतियां नए रूप में आज भी खड़ी हैं। यह साफ है कि इन सबके बीच आज लड़कियों को जीना आ गया है। अपना रास्ता, अपने लिए जगह बनाना आ गया है। बदलता परिवेश:विश्वास और उम्मीदों की कहानी