भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव

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भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव
भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव

राजेन्द्र चौधरी

 अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्रविवादी पार्टी है। देश में जहां विवाद करना होता है वहां भाजपा के लोग सबसे आगे रहते हैं। भाजपा फूट डालो राज करो नीति पर चलती है। वंदे मातरम गाने से ज्यादा निभाना जरूरी है। वंदे मातरम सिर्फ गाने के लिए नहीं है निभाने के लिए होना चाहिए। पीछे मुड़कर देखना चाहिए कि कितना निभाया जा रहा है। वंदे मातरम ने आजादी के आंदोलन में सबको जोड़ा लेकिन आज के दरारवादी लोग उसी के देश को तोड़ना चाहते है। ऐसे लोगों ने पहले भी देश के साथ दगा किया आज भी दगा कर रहे हैं।
वंदे मातरम गीत के 150वर्ष पूरे होने पर संसद में हुई चर्चा में भाग लेते हुए सोमवार को श्री अखिलेश यादव ने कहा कि जब कोलकाता के कांग्रेस के अधिवेशन में गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने पहली बार वंदे मातरम गीत गया, उसके बाद वंदे मातरम की लोकप्रियता आम लोगों में पहुंच गयी। भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव

जब क्रांतिकारियों को अंग्रेजो से लड़ना होता था तब वंदे मातरम का नारा देकर लोगों को जोड़ने का काम करते थे। स्वतंत्रता आन्दोलन हो या स्वदेशी आंदोलन। क्रांतिकारी इसी नारे को लेकर आगे चले। वंदे मातरम के माध्यम से देश एकजुट हुआ। अंग्रेज घबरा गये। अंग्रेज जहां कहीं वंदे मातरम का नारा सुनते और देखते थे वे क्रांतिकारियों पर देशद्रोह का मुकदमा लगा देते थे। जेल भेज देते थे। बंगाल में बच्चों ने जब क्लास रूम में वंदे मातरम का गीत गया तब अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगा कर जेल भेज दिया। अंग्रेजों ने 1905 से लेकर 1908 तक बैन भी कर दिया था। बैन के बाद भी हमारे क्रांतिकारी नहीं माने वंदे मातरम को अपने दिल और दिमाग में रखा। जनता के बीच इस आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे। भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव


आज सत्ता पक्ष हर चीज को अपना दिखाना चाहता है। इस महान गीत को बंकिम चन्द चट्टोपाध्याय ने लिखा था। लेकिन देखा जा रहा है जो महान पुरुष और जो चीज सत्ता पक्ष की नहीं है वह उसे अपनाना चाहती है। जब भाजपा का गठन हो रहा था उस समय बीजेपी के चुने गए अध्यक्ष के भाषण पर चर्चा हो रही थी। चर्चा इस बात की थी कि भाजपा सेकुलर और सोशलिस्ट रास्ते पर जायेगी कि नहीं जायेगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को तमाम विरोध के बावजूद समाजवादी आन्दोलन, समाजवादी विचारधारा और सेकुलर रास्ता अपनाना पड़ा। यही नही भाजपा ने मंच पर जयप्रकाश जी की तस्वीर लगाकर भ्रम फैलाने की कोशिश की कि वह जेपी के रास्ते पर चलेगी। आज सरकार के मंत्री बताएं की वे कितने सेक्युलर और सोशलिस्ट हैं?

मातरम कोई दिखावा या राजनीति का विषय नहीं है। जब हम लोग बाहर सत्ता पक्ष के भाषणो और विचारों को सुनते है तो ऐसा लगता है वंदे मातरम इन्हीं का बनवाया गीत है, सच्चाई यह है कि जिन्होंने आजादी के आंदोलन में भाग ही नहीं लिया हैं वे वंदे मातरम का महत्व क्या जानेंगे? सच तो यह है कि सरफरोश लोग वंदे मातरम दिल से मानते थे। उन आजादी के दिवानों के खिलाफ कुछ लोग अंग्रेजो के खिलाफ जासूसी और मुखबिरी का काम करते थे। ये राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्रविवादी लोग हैं। कभी अंग्रेज विवाद करके, बांटकर राज किया करते थे। आज भी कुछ लोग वही बंटवारे का रास्ता अपना रहे हैं। इनका इतिहास खंगाला जाय तो पता चलता है कि इन्होंने आजादी के आंदोलन में और उसके बाद वंदे मातरम नहीं गाया। आखिर क्यों नहीं गाया? अंग्रेजों के मुखबिरों से पूछा जाना चाहिए की आजादी के बाद भी वंदे मातरम को अपना गीत क्यों नहीं बनाया? उनकी एक रंगी सोच ने तिरंगा क्यों नहीं फहराया?


    अखिलेश यादव ने कहा कि वंदे मातरम सियासत के झूठे राष्ट्रवादियों के लिए नहीं हैं। गलत लोगों की गलत मंशा पूरा देश समझता है। वंदे मातरम का भाव था कि साम्प्रदायिक राजनीति अब नहीं चलेगी। भाजपा ने जहां से कम्युनल पॉलिटिक्स शुरू की थी। 2024 में उत्तर प्रदेश के लोगों ने उसे वहीं खत्म किया। आजादी के आंदोलन में अगर बच्चे भी वंदे मातरम गा देते थे तो उन्हें देशद्रोह कानून लगाकर जेल भेज दिया जाता था। आज देश आजाद है। उत्तर प्रदेश में 26 हजार से ज्यादा प्राइमरी स्कूल बंद कर दिए गए। जब बच्चों को पढ़ाने के लिए पीडीए समाज के लोगों ने जिम्मेदारी उठायी तो भाजपा की सरकार ने पढ़ने वाले बच्चों और पढ़ाने वालों पर मुकदमें लगा दिए।
   

वंदे मातरम का जो भाव था उसी भाव से जुड़कर देश को मजबूत करना है। यह गीत हम सबको संविधान से मिला है। इसलिए इस गीत के माध्यम से किसी पर टिप्पणी नहीं होनी चाहिए। न किसी पर दबाव बनाने की कोशिश होनी चाहिए। वंदे मातरम एक भाव के रूप में हमारे अंदर बसा है। लोगों को चाहे वह शब्द न याद हो, अर्थ न मालूम हो लेकिन हर सच्चे भारतीय के अंदर देश प्रेम की भावना जगाने के लिए वंदे मातरम के दो शब्द ही काफी हैं। जो देश की एकता अखंण्डता चाहते हैं, भाईचारे को बुनियाद मानते है उनके लिए वंदेमातरम के दो शब्द ही पर्याप्त है। वंदे मातरम केवल गीत नहीं है। यह हमें ऊर्जा देता था। आजादी के आन्दोलन में एकजुटता का नारा था। सभी जाति-धर्म के लोगों ने मिलकर वंदे मातरम के नारे के साथ एकजुट होकर अंग्रेंजो को भगाने के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी के आंदोलन में जब देश जागा। वंदे मातरम के साथ जय हिन्द और इंक्लाब जिन्दाबाद का नारा लगाकर अंग्रेजों को भगाया। भाजपा राष्ट्रवादी नहीं:अखिलेश यादव