
आईजी जेल को गुमराह करने वाले बाबू की मुख्यालय में वापसी।सजा काटकर आए बाबू को एआईजी ने तोहफे में दिया निर्माण अनुभाग। एआईजी कारागार प्रशासन ने ध्वस्त की जेलों के साथ मुख्यालय की व्यवस्थाएं।
राकेश यादव
लखनऊ। कारागार मुख्यालय में नियमों को ताक पर रखकर ठेका देने और ड्राफ्टिंग में तत्कालीन आईजी जेल का गुमराह करने वाले बाबू की मुख्यालय में वापसी हो गई है। अनियमिताओं के चलते हटाए गए इस बाबू को वापसी के बाद निर्माण अनुभाग का प्रभार सौंपा गया है। यह मामला कारागार मुख्यालय के बाबुओं में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। चर्चा है कि अपर महानिरीक्षक (एआईजी) कारागार प्रशासन ने आधुनिकीकरण अनुभाग में अनियमिताएं करने वाले इस हटाए गए बाबू को तोहफे में निर्माण अनुभाग जैसे महत्वपूर्ण अनुभाग का प्रभार सौंप दिया है। उधर विभाग के आला अफसर इस गंभीर मसले पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश की जेलों पर निगरानी रखने के लिए शासन की ओर से व्यापक इंतजाम किए गए। इसके लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का बजट आवंटित किया जाता है। इस बजट की खपत के लिए मुख्यालय में आधुनिकीकरण अनुभाग बनाया गया। यह अनुभाग जेलों के लिए सीसीटीवी, मेटल डिक्टेटर, बॉडी स्कैनर, वॉकी टाकी सरीखे उपकरण खरीद कर लगवाता है।इन उपकरणों की देखभाल और मेंटिनेंस की जिम्मेदारी अधिकीकरण अनुभाग की होती है। यह अनुभाग एआईजी प्रशासन और बाबुओं की कमाई का जरिया बनकर रह गया है। यही वजह है जेलों में घटनाओं के समय यह आधुनिक उपकरण खराब ही मिलते हैं।
सूत्रों का कहना है करीब एक वर्ष पूर्व तत्कालीन आईजी जेल पीवी रामाशास्त्री ने उपकरणों के मेंटिनेंस (एएमसी) का बजट जेलों को आवंटित करने का निर्णय लिया था। जेलों को एएमसी का बजट आवंटित करने के लिए अनुभाग में तैनात बाबू शिवांशु गुप्ता को निर्देश दिया। बाबू ने पत्र में उपकरणों का मेंटिनेंस संस्था से कराए जाने की बात कही। इसे देखकर तत्कालीन आईजी जेल भड़क गए। उन्होंने बाबू को फटकार लगाते हुए निलंबन से लेकर बर्खास्त करने तक की धमकी दे डाली।
यह मामला अभी निपट भी नहीं पाया था कि बाबू की अनियमिताओं का एक और नया मामला सामने आ गया। बाबू ने बगैर औपचारिकताएं पूरी किए ही अपने चहेते ठेकेदार को एल वन बताते हुए ठेका आवंटित कर दिया। इसकी शिकायत होने पर तत्कालीन आईजी जेल रामा शास्त्री ने दो मामलों में दोषी पाए गए बाबू को मुख्यालय से हटाकर गोरखपुर जेल परिक्षेत्र कार्यालय में लगा दिया। अनियमिताओं और आईजी जेल को गुमराह करने वाले बाबू ने शासन और मुख्यालय में सेटिंग गेटिंग करके एक बार फिर अपनी वापसी कारागार मुख्यालय में करा ली।
भ्रष्टाचार के आरोपी बाबू पर एआईजी प्रशासन इस कदर मेहरबान हुए कि उन्होंने वापस आए बाबू को तोहफे में निर्माण अनुभाग का प्रभार सौंप दिया है। इस अनुभाग में करोड़ों का काम चल रहा है। दागदार बाबू की वापसी के संबंध में जब एआईजी प्रशासन धर्मेंद्र सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।
एआईजी प्रशासन के संरक्षण प्राप्त बाबुओं ने मचा रखी लूट
अपर महानिरीक्षक प्रशासन की खाऊं कमाऊं नीति के चलते कारागार मुख्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गई है। एआईजी प्रशासन ने स्टेनो की जगह बाबू और बाबुओं की जगह स्टेनो को तैनात कर रखा है। यही नहीं कई बाबुओं को उन महत्वपूर्ण अनुभागों में तैनात कर रखा है जिनकी उन्हें कोई जानकारी तक भी है।
बाबू सरवन वर्मा को वरिष्ठ अधीक्षक मुख्यालय शशिकांत सिंह यादव के साथ वरिष्ठ अधीक्षक रंग बहादुर पटेल के साथ लगा रखा। इन दोनों अधिकारियों के पास कई कमाऊं अनुभागों का प्रभार है। इसी प्रकार अधिकीकरण और उद्योग अनुभाग में भी उन बाबुओं को लगा रखा गया है जिन्हें अनुभागों की कोई जानकारी ही नहीं है। इन बाबुओं का काम दूसरे अनुभाग के बाबू निपटा रहे हैं। हकीकत यह है कि एआईजी का संरक्षण प्राप्त बाबुओं ने लूट मचा रखी है।
























