

बाबा साहब अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल पर विशेष…
दलितों के मसीहा के नाम से देश और दुनिया मे चर्चित बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की पहचान एक कानूनविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में रही हैं। बाबा साहेब अंबेडकर ने बतौर कानूनविद भारत के संविधान की रचना की तो दलित एवं वंचितों को उनके हक और हकूक दिलाने के लिए वह सामाजिक न्याय के पुरोधा भी बने। बाबा साहब अंबेडकर की सोच कितनी दूरगामी थी, इसका अंदाजा इस बात से लाया जा सकता है कि संविधान के लागू होने के 75 वर्षों के बाद भी संविधान की “मूल भावना” में परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं पड़ी है। भारत का संविधान आज भी शासन के संचालन से लेकर दलित एवं वंचितों के अधिकारों के संरक्षण का काम बखूबी कर रहा है। बाबा साहेब:संविधान के शिल्पकार,सामाजिक न्याय के पुरोधा
संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में स्थित सैनिक छावनी में हुआ था। वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार के पद पर तैनात थे। बाबासाहेब ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की। अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान वह अस्पृश्यता के अभिशाप से पीड़ित हुए। वर्ष 1907 में मैट्रिक तथा स्नातक की पढ़ाई एल्फिंस्टन कॉलेज बॉम्बे से की। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें बड़ौदा के महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक सहायता प्राप्त हुई थी। वर्ष 1913 में डॉ. अंबेडकर को उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने वाले एक विद्वान के रूप में चुना गया।
यह उनके शैक्षिक जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। सामाजिक सुधारों के पुरोधा के रूप में डॉ. अंबेडकर ने समान नागरिक संहिता विकसित करने एवं हिन्दू समाज में समानता लाने के लिए हिन्दू कोड बिल का समर्थन किया। इसके साथ ही आर्थिक सुधारों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्होंने कृषि व्यवस्था में सुधार के तहत भूमि के समान वितरण, कृषि श्रमिकों, कृषि कर तथा सम्पत्ति कर पर भी अपना उपयोगी मत दिया। बाबा साहेब का यह भी मानना था कि औद्योगिकरण के बिना भारत का विकास संभव नहीं है। इसलिए उन्होने औद्योगिकरण पर विशेष बल दिया। श्रमिकों की हालात को देखते हुये सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था, बीमा योजना, न्यूनतम मजदूरी निर्धारण, गरीबी, बेरोजगारी, बेगारी एवं नशाबन्दी आदि पर अपने विचार दिए।
कालांतर में इन्ही विचारों पर अमल करते हुए देश में अनेक कानून बने। इसके अलावा बाबा साहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। केंद्रीय बैंक का गठन हिल्टन यंग कमीशन को बाबासाहेब द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था। बाबा साहेब का मानना था कि मानव जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। विकास के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति केवल जनसाधारण की शिक्षा से ही संभव है। उन्होंने ‘शिक्षित करो, आंदोलन करो, संगठित करो’ का नारा दिया। वर्ष1945 में स्थापित पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी के सहयोग से वंचितों के उत्थान के लिए कई स्कूल, कॉलेज, छात्रावास और अन्य शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए गए। यह डॉ. साहब के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि शिक्षा के प्रसार की व्यवस्था संविधान व नीति निर्देशक तत्वों में की गई।
उधर,अपने राजनीतिक जीवन की यात्रा में भी बाबा साहेब ने “दलित उत्थान और संवर्धन” को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा। दलित वर्गों के हितों की रक्षा करने के लिए उन्होंने 15 अगस्त 1936 को “स्वतंत्र लेबर पार्टी” का गठन किया। जब वर्ष 1938 में कांग्रेस ने अछूतों के नाम में बदलाव करने वाला एक विधेयक प्रस्तुत किया, तब डा अंबेडकर ने इसकी आलोचना की। उनका दृष्टिकोण था कि नाम बदलने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इसी क्रम में वर्ष 1942 में वह भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त हुए। इसके बाद वर्ष 1946 में उन्हें बंगाल से संविधान सभा के लिए चुना गया। आजादी के बाद वर्ष 1947 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें कानून एवं न्याय मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया लेकिन वर्ष 1951 में कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के प्रति प्रधानमंत्री नेहरू की नीति पर अपना मतभेद प्रकट करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
यह सही है कि तत्कालीन भारतीय समाज और शिक्षा और जाति भेदभाव की वीडियो में जकड़ा हुआ था। राजाराम मोहन राय से लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द ओर महात्मा गाँधी जैसे प्रखर समाज सुधारक भी हुए किन्तु सदियों से अभिशप्त, अस्पृश्यों और दलितों के उद्वार के लिए दलितों में से ही नेतृत्व उभारने का मार्ग डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दिखाया।
उन्होंने सामंती असमानता और जाति व्यवस्था की सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़कर फेंक दिया। वह भारतीय समाज को जाति व्यवस्था की बुराइयों से भी मुक्त करना चाहते थे। डॉ. अंबेडकर का समूचा जीवन यह दर्शाता है कि वह विद्वान और कर्मशील व्यक्ति थे। बाबा साहेब ने अर्थशास्त्र,राजनीति, कानून, दर्शन और समाजशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। इस दौरान उन्हें कई सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपना जीवन समानता, भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित किया। वर्ष 1956 में 06 दिसंबर को उनकी मृत्यु हो गई। भले ही बाबासाहेब आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी शिक्षा, उनके विचार तथा दलित उत्थान के लिए किए गए उनके कार्य लोगों के हृदय में सालों साल तक एक मधुर स्मृति के रूप में चिरस्थाई रहेंगे। बाबा साहेब:संविधान के शिल्पकार,सामाजिक न्याय के पुरोधा