भाजपा में वसुंधरा राजे ने तो बगावत नहीं की, लेकिन कांग्रेस में अशोक गहलोत ने हाईकमान को सीधे चुनौती दे दी है। राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
एस0 पी0 मित्तल
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही राजनीतिक क्षेत्रों में यह चर्चा रही कि राजे अब भाजपा में बगावत करेंगी। राजे के जन्मदिन पर होने वाले समारोहों को भी शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा गया। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी वसुंधरा राजे की गतिविधियों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। राजे की बगावत की खबरों को तब और बल मिला जब राजे समर्थक 20 विधायकों ने भाजपा विधायक दल के नेता गुलाब चंद कटारिया और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया पर गंभीर आरोप लगाए। हालांकि राजे ने कभी भी बगावत की बात नहीं की। लेकिन राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच चल रही खींचतान को कांग्रेस के नेताओं ने कई बार मुद्दा बनाया। आज राजे तो भाजपा के साथ जुड़ी हुई हैं, लेकिन कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कांग्रेस में बगावत का झंडा खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उठा लिया है। कुछ दिनों पहले तक जिन अशोक गहलोत के गांधी परिवार का सबसे वफादार नेता माना जाता था, उन्हीं अशोक गहलोत ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया। 25 सितंबर को जब विधायकों की राय जानने के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक जयपुर आए तो गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों की बैठक वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल के निवास पर आयोजित करवा ली। यही वजह रही कि केंद्रीय पर्यवेक्षकों को बैरंग ही दिल्ली लौटना पड़ा। गहलोत की बगावत से कांग्रेस का अब बुरा हाल है। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के समक्ष यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर किस नेता पर भरोसा किया जाए? जब मुख्यमंत्री पद की खातिर अशोक गहलोत जैसे नेता बागी हो सकते हैं तो फिर कांग्रेस में भरोसा करने लायक कोई नेता नहीं बचा है।
गहलोत ने जिस तरह बगावत की है, उससे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। गांधी परिवार का भरोसेमंद होने के कारण ही गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा था। गांधी परिवार चाहता था कि गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जाए। विधायकों की राय जानने के लिए ही पर्यवेक्षकों को जयपुर भेजा गया था। लेकिन गहलोत के समर्थकों ने समानांतर बैठक कर हालातों को बिगाड़ दिया। इतना ही नहीं सचिन पायलट को खुलेआम गद्दार तक कहा गया। अशोक गहलोत का कहना है कि विधायकों की मंशा हाईकमान का अपमान करने की नहीं थी। लेकिन सवाल उठता है कि हाईकमान जिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है उन पायलट के विरुद्ध इतना जहर क्यों उगला जा रहा है….?