राजेश कुमार पासी

जब मीडिया का पूरा ध्यान राहुल गांधी के विवादित बयानों पर लगा हुआ था तो एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया । देखा जाए तो राहुल के भाषणों की चर्चा अमेरिकी मीडिया में नहीं हुई थी लेकिन भारत के मीडिया ने उन्हें बहुत महत्व दिया गया क्योंकि राहुल गांधी अब विपक्ष के नेता बन चुके हैं । इसके विपरीत चीन और भारत के संबंधों में एक बड़ा परिवर्तन हुआ जिसकी भारत से भी ज्यादा वैश्विक मीडिया में चर्चा हो रही है । 2020 में चीन और भारत की सेनाओं की गलवान घाटी में झड़प हो गई थी जिसके बाद से भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों ने अपनी सेनाओं की भारी मात्रा में तैनाती कर दी थी । तब से लेकर आज तक दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हुई हैं । इस दौरान 21 बार कमांडर स्तर की दोनों देशों में बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला है । हालत ऐसी है कि कभी भी दोनों देशों की सेनाएं आपस में भिड़ सकती हैं । क्या भारत और चीन नजदीक आ रहे हैं..?

जब राहुल गांधी की यात्रा चल रही थी तो उसी समय जेनेवा में विदेश मंत्री एस. जयशंकर मौजूद थे । उन्होंने गुरुवार को वहां से घोषणा की कि दोनों देश सीमा पर अपनी सेनाओं को पीछे हटाने के लिए 75 प्रतिशत तक सहमत हो गए हैं । उनकी घोषणा से पहले ही चीनी मीडिया यह खबर दे चुका था कि भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने रूस के सैंट पीटर्सबर्ग में बात  की है और दोनों देश आपसी बातचीत के लिए सहमत हो गए हैं ताकि आपसी संबंधों को सुधारा जा सके । दूसरी तरफ भारत में चीन के राजदूत ने भी जानकारी दी कि दोनों देश सीमा विवाद पर बात करने को तैयार हो गए हैं । वैश्विक मीडिया इस खबर को लेकर सकते में है क्योंकि यह सब अचानक हो गया है । 

    यह सब कुछ इतना अचानक भी नहीं हुआ है । रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स देशों की एनएसए लेवल की समिट चल रही है । इस समिट के दौरान रूस के राष्ट्रपति पुतिन और एनएसए अजीत डोभाल की एक  मीटिंग हुई थी । देखा जाए तो डोभाल और  पुतिन का मिलना एक बड़ी घटना है । इससे पहले किसी देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से पुतिन को मिलते हुए दुनिया ने नहीं देखा है । डोभाल ने पुतिन से मिलकर बताया कि मोदी और जेलेंस्की में क्या बात हुई है । इसके अलावा दोनों नेताओं में क्या बात हुई, ये किसी को नहीं पता लेकिन इस मुलाकात के बाद एक बड़ी बात ये हुई कि डोभाल चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मिले । देखा जाए तो वांग वी चीनी सरकार में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बाद दूसरे बड़े नेता हैं । ऐसा लगता है कि डोभाल की पुतिन से मुलाकात का नतीजा डोभाल और वांग यी की मुलाकात है । इस मुलाकात के बाद ही चीन-भारत की सीमा पर सेनाओं की तैनाती से संबंधित खबरें आई हैं । ऐसा लग रहा है कि रूसी राष्ट्रपति भारत और चीन के संबंधों में आई हुई तल्खी को कम करना चाहते हैं । 

  यूक्रेन नाटो से लम्बी दूरी की मिसाइल मांग रहा है ताकि रूस में अंदर तक हमला कर सके । पुतिन ने धमकी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो वो नाटो के खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे । इसके बाद नाटो पीछे हट गया है लेकिन कब तक वो ऐसा  करेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. पुतिन इसे लेकर परेशान हैं । नाटो का गठन सोवियत संघ के खिलाफ हुआ था. जब सोवियत संघ टूट गया तो इसे भी खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन यह और भी ताकतवर होता जा रहा है और अब इसमें 32 देश  शामिल हो चुके हैं । यूक्रेन भी इसमें शामिल होना चाहता है, यूक्रेन पर रूसी हमले का आधार भी यही है । 

       पुतिन बहुत परेशान हैं और वो अपने खिलाफ हो रही लामबंदी को देख रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ वो खुद को अकेला पा रहे हैं । यूक्रेन से युद्ध के दौरान उन्हें भारत और चीन का साथ मिला है । जहां भारत ने रूसी तेल खरीद कर रूस की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया है तो दूसरी तरफ जरूरी साजो सामान और तेल खरीद कर चीन ने रूस की बड़ी मदद की है । रूस की बड़ी समस्या यह है कि उसके दोनों मित्रों के आपसी संबंध अच्छे नहीं है । चीन से बिगड़ते संबंधों के कारण ही अमेरिका भारत को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहा है । पुतिन अच्छी तरह जानते हैं कि भारत पूरी तरह से उनके साथ नहीं हैं और वो रूस और अमेरिका के बीच एक संतुलन साधकर चल रहा है । भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों की अनदेखी कर रहा है लेकिन चीन भारत की बड़ी समस्या है । चीन के कारण भारत कभी भी अमेरिकी खेमे में जा सकता है और अमेरिका इसकी पूरी कोशिश कर रहा है ।

भारत भी अमेरिकी दबाव को महसूस कर रहा है और इससे छुटकारा पाना चाहता है । चीन अच्छी तरह से जानता है कि अमेरिका उसे घेरने की कोशिश कर रहा है और अगर भारत अमेरिका के साथ चला जाता है तो उसके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है । बंग्लादेश में तख्तापलट ने भारत और चीन दोनों को परेशान कर दिया है । अब दुनिया अच्छी तरह जान चुकी है कि बांग्लादेश के सत्ता परिवर्तन में अमेरिका का बड़ा हाथ है । बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान से साफ हो गया है कि अमेरिका बांग्लादेश में एक सैनिक अड्डा बनाने के लिए जगह मांग रहा है । शेख हसीना के इनकार ने ही उनको सत्ता से बाहर करवाया है। चीन और भारत दोनों ही नहीं चाहते कि अमेरिका बांग्लादेश में उनके सिर पर आकर बैठ जाए। 

         चीन इस समय कई समस्याओं से घिरा हुआ है । अमेरिका जहां चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति से डरा हुआ है, वही दूसरी तरफ वो भारत को दूसरा चीन बनते हुए देख रहा है। वो नहीं चाहता कि चीन को रोकने के चक्कर में भारत को इतना ताकतवर बना दिया जाए कि भारत भी उसके लिए बड़ी समस्या बन जाए । यही कारण है कि भारत और चीन के आसपास के देशों में अशांति फैलती जा रही है । पाकिस्तान में चीनी निवेश बर्बाद हो रहा है, अफगानिस्तान से पाकिस्तान पर हमले बढ़ गये हैं और बलूचिस्तान अंशात हो गया है । म्यांमार और बांग्लादेश तो भारत-चीन के लिए समस्या बन रहे हैं । चीन और भारत के संबंधों में बहुत जटिलता है और इन्हें एक दो मुलाकातों से नहीं सुलझाया जा सकता,  दूसरी तरफ चीन एक अविश्वसनीय देश है । दोनों ही देशों में विश्वास की बड़ी कमी है ।

पुतिन अपने देश के हितों के लिए दोनों देशों के रिश्तों की जमी हुई बर्फ को पिघलाना चाहते हैं । इस दौरान उन्होंने मोदी को अगले महीने रूस के कजान में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन के लिए रूस आने का न्योता दिया है और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी वहां आने वाले हैं । जहां भारत चाहता है कि चीन के साथ अपने संबंधों को सामान्य करके अपने आर्थिक विकास की ओर ध्यान दे तो वहीं दूसरी तरफ चीन आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है और वो भी चाहता है कि भारत के साथ संबंधों को सामान्य करके अपनी मुसीबत का सामना करे । देखा जाए तो दोनों देशों का आपसी तनाव दोनों देशों को नुकसान पहुंचा रहा है । चीन कितनी भी दादागिरी करे लेकिन वो अच्छी तरह से जानता है कि भारत से टकराव उसको बर्बाद कर सकता है । जहां तक भारत की बात  है तो भारत किसी भी देश से टकराव नहीं चाहता है । रूस, चीन और भारत की दोस्ती वैश्विक राजनीति को बदल सकती है, ये बात पूरी दुनिया जानती है । पुतिन दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों का इस्तेमाल करके दोनों देशों को नजदीक लाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं । इसमें सिर्फ उनका फायदा नहीं है बल्कि भारत और चीन का भी फायदा है, इसलिए उम्मीद है कि दोनों देशों के रिश्ते कुछ बेहतर हो सकते हैं । क्या भारत और चीन नजदीक आ रहे हैं..?