लखनऊ जेल अफसरों का अजब गज़ब कारनामा।रिहाई आदेश आने के बाद 17 दिन रखा जेल में।खामियों को छिपाने के लिए अफसरों ने की बाजीगरी।
लखनऊ। बंगलादेशी कैदी की गलत रिहाई के मामले में अभी कार्रवाई तय नहीं हो पाई कि राजधानी की जिला जेल में अफसरों की लापरवाही का एक और अजब-गजब कारनामा सामने आया है। जेल अफसरों ने एक बंदी का रिहाई आदेश आने के बाद बगैर अभिरक्षा वारंट 16 दिन तक जेल में कैद रखा गया। बंदी के अधिवक्ता की शिकायत पर न्यायालय ने मामले में जवाब तलब किया है। उधर, जेल अधिकारी इस गंभीर मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं।आबकारी अधिनियम के उल्लघंन के आरोप में इंदिरानगर पुलिस ने कुलवंत सिंह पुत्र बलविंदर सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। कुलवंत सिंह 11 फरवरी 2021 से लखनऊ जिला जेल में बंद है। बीती 14 दिसंबर 2021 को अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय ने विचाराधीन बंदी कुलवंत सिंह का रिहाई आदेश जेल भेजा। सूत्रों का कहना है कि जेल प्रशासन के अधिकारियो को बंदी कुलवंत सिंह की रिहाई आदेश की जानकारी ही नहीं हुई। बंदी जेल में होने के बाद अधिकारियों ने बताया कि उक्त नाम का कोई बंदी जेल में ही नहीं है। इस वजह से बंदी कुलवंत सिंह का रिहाई आदेश फाइलों में कैद होकर रह गया।बताया गया है कि जब इसकी जानकारी बंदी के अधिवक्ता को हुई तो उसने इसकी शिकायत न्यायालय में की। इस पर जब बंदी की पड़ताल की तो पता चला कि बंदी जेल में ही बंद है।
दोषी अफसरों पर नहीं होती कोई कार्रवाई –
वरिष्ठ अधीक्षक लखनऊ जेल के नेतृत्व में आदर्श कारागार से दो खुंखार कैदियों की फरारी, डीजी से एक बंदी की मारपीट कर वसूली किये जाने की शिकायत, वसूली व उत्पीडऩ से आजित आकर आधा दर्जन बंदियों के आत्महत्या करने, ढाका से बंग्लादेशी बंदियों की फंडिग, बंग्लादेशी कैदी की गलत रिहाई जैसे तमाम मामले होने के बाद भी आज तक शासन व जेल मुख्यालय ने इस जेल के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी कहते हैं कि जांच रिपोर्ट सौंप दी गई है। कार्रवाई उच्चाधिकारियों को करनी है।
न्यायालय के जबाव तलब के बाद जेल प्रशासन के अधिकारियों में खलबली मच गई। आनन फानन में अफसरों ने अपने बचाव के लिए रिहाई आदेश का वारंट से मिलान नहीं होने की बात कहकर रिहाई में विलंब होने की बात कहकर 31 दिसम्बर 2021 को रिहा किया। जेल अफसरों की लापरवाही के इस मामले को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है। जेल के कायदा-कानून में यह साफ तौर पर कहा गया कि बगैर अभिरक्षा वारंट, किसी भी बंदी को जेल में रखा जाना अपराध की श्रेणी में आता है। इसके लिए दोषियों पर कार्रवाई किये जाने का प्रावधान है।इससे पहले भी बीते दिसंबर माह में एक घुसपैठिये बंगलादेशी कैदी को गलत रिहा कर दिया गया था। इस घटना का खुलासा होने पर विभाग के मुखिया ने इसकी जांच परिक्षेत्र के डीआईजी से कराई। दो स्तर पर हुई डीआईजी की जांच में पहली जांच में डिप्टी जेलर की भूलवंश गलती से कैदी को रिहा कर दिया गया। दूसरी जांच में गलत रिहाई के लिए जेलर को दोषी ठहराया गया। जबकि हकीकत यह है कि कैदी के रिहाई की जिम्मेदारी अधीक्षक की होती है। दिलचस्प बात यह है कि दो जांच के बाद भी किसी दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।