SIR पर अखिलेश अलर्ट क्या बोली पूजा शुक्ला

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SIR पर अखिलेश अलर्ट क्या बोली पूजा शुक्ला
SIR पर अखिलेश अलर्ट क्या बोली पूजा शुक्ला

यूपी में SIR पर चल रही राजनीति,अब देखना ये होगा कि क्या SIR लोकतांत्रिक सुधार साबित होगा या फिर एक चुनावी चाल के तौर पर देखा जाएगा। एक बात तय है, मतदाता सूची की ये जंग, यूपी की सियासत में नई हलचल जरूर मचाने वाली है।“उत्तर प्रदेश में इन दिनों एक नया शब्द राजनीति के केंद्र में है — SIR! यानी ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’। सुनने में तो यह सिर्फ मतदाता सूची सुधार की प्रक्रिया लगती है, लेकिन अब यही SIR, सियासत का सबसे गर्म मुद्दा बन चुका है। अखिलेश यादव अलर्ट हैं, समाजवादी पार्टी सड़क पर उतरने को तैयार है और सरकार इसे ‘पारदर्शी प्रक्रिया’ बता रही है। तो आइए जानते हैं-SIR क्या है, विवाद क्या है और इसका चुनावी महत्व इतना बढ़ क्यों गया है?”

SIR की शुरुआत और उसका चुनावी महत्व

उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया लागू की है। यह प्रक्रिया मतदाता सूची (voter list) को अपडेट करने, नामों की शुद्धता सुनिश्चित करने और “योग्य मतदाता” को सही से पहचान दिलाने का लक्ष्य है। SIR का चुनावी महत्व इसलिए बढ़ा है क्योंकि यह आगामी पंचायत चुनावों (2026) पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकता है।

सपा की शिकायतें — नियुक्ति में भेदभाव का आरोप

समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि SIR प्रक्रिया में BLOs (बूथ-लेवल अधिकारी), EROs (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन अधिकारी), और अन्य चुनाव अधिकारी जाति और धर्म के आधार पर नियुक्त किए गए हैं।सपा का कहना है कि इस तरह की “पक्षपाती नियुक्ति” SIR की निष्पक्षता को कमजोर कर सकती है, और यह वोटर सूची में हेरफेर का मार्ग खोल सकती है।उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEO) यूपी को ज्ञापन भी सौंपा है। ऐसे आरोपों से यह सवाल उठता है कि क्या SIR सिर्फ चुनावी “टैक्टिकल” कदम है, या इसके पीछे पूरी तरह से लोकतांत्रिक सुधार है।

राजनीतिक निहितार्थ / विश्लेषण

SIR को लेकर सपा का हमला यह दर्शाता है कि विपक्ष इसे लोकतांत्रिक परीक्षा के तौर पर देख रहा है — यदि BLO/ERO नियुक्ति में पक्षपात हुआ, तो वोटर लिस्ट में हेरफेर संभावित है। सरकार के लिए यह मौका है कि वह अपने औद्योगिक विकास एजेंडे को जोड़ते हुए कहे कि SIR सिर्फ मतदाता सूची सुधार का नहीं, बल्कि विकास और प्रतिनिधित्व का भी मुद्दा है।

यदि SIR सफल रहा और बहुत बड़े हिस्से के नए/नवीनीकृत मतदाता शामिल हुए, तो यह सरकार को चुनावों में बड़ा लाभ दे सकता है — खासकर उन इलाकों में जहां अब तक वोटर सूची कम अपडेटेड थी। दूसरी ओर, यदि विपक्ष की शिकायतों में वज़न है और गलत नियुक्तियाँ साबित हुईं, तो SIR प्रक्रिया पर सवाल उठ सकते हैं और उसे “निष्पक्षता का संकट” कहा जा सकता है।

समाजवादी पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक बड़ा कदम उठाते हुए हर बूथ पर PDA प्रहरी नियुक्त करने की घोषणा की है। इस फैसले के साथ पार्टी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनाव आयोग के एसआईआर के खिलाफ पूरी तरह से सड़कों पर उतरने के लिए तैयार है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले भी कहा था कि मतदाता सूची, मतदान बूथ और ईवीएम मशीनों की रक्षा करना अब पार्टी की प्राथमिकता है।

पार्टी ने यह कदम विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में हो रहे एसआईआर (स्पेशल इंस्पेक्शन रजिस्टर) के संदर्भ में उठाया है, जिसे लेकर समाजवादी पार्टी पहले से ही अलर्ट मोड में थी। जब बिहार में एसआईआर का आयोजन किया गया था, तभी से अखिलेश यादव ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि उत्तर प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर उनकी तैयारियां पूरी हैं और वे हर बूथ पर इस प्रक्रिया को मापने के लिए काम कर रहे हैं।


चुनाव आयोग ने यूपी में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR प्रक्रिया शुरू की है। इसका मकसद है मतदाता सूची को अपडेट करना — गलत नाम हटाना, नए योग्य मतदाताओं को जोड़ना और वोटर लिस्ट को बिल्कुल पारदर्शी बनाना। अब आप सोचिए — मतदाता सूची ही चुनाव की नींव होती है, और अगर वही सूची बदली तो राजनीति का पूरा समीकरण बदल सकता है। यही वजह है कि SIR का असर सीधे 2026 के पंचायत चुनावों और 2027 के विधानसभा चुनावों पर माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी ने SIR प्रक्रिया को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। सपा का कहना है कि BLOs और EROs की नियुक्ति जाति और धर्म के आधार पर की गई है। पार्टी का दावा है कि यह पक्षपात वोटर लिस्ट में हेरफेर का रास्ता खोल सकता है।

अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपा है और साफ कहा है — अब हमारी प्राथमिकता है, मतदाता सूची, बूथ और ईवीएम की रक्षा।’ इसी के तहत सपा ने हर बूथ पर PDA प्रहरी नियुक्त करने का ऐलान किया है। यानि, पार्टी अब SIR के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है। राजनीतिक तौर पर SIR एक बड़ा परीक्षण बन गया है। अगर यह प्रक्रिया निष्पक्ष रही, तो सरकार को उन इलाकों में फायदा मिल सकता है। जहां वोटर लिस्ट पुरानी और अधूरी थी। लेकिन अगर सपा के आरोपों में सच्चाई मिली, तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल उठ सकता है।