एक पल का ठहराव

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एक पल का ठहराव
एक पल का ठहराव

—– कहानी —–

पढ़ने से पहले… एक पल का ठहराव ले… उन सभी के लिए अपने हृदय में कृतज्ञता महसूस करें, जिन्होंने जरूरत के समय आपके साथ अच्छा व्यवहार किया… अब पढ़ना जारी रखें… एक पल का ठहराव

धर्मेंद्र कुमार

पचास रुपये! एक दिन काम से घर वापस जाते समय, बिजली के खंभे से बंधे कागज के एक टुकड़े ने मेरा ध्यान खींचा। उस पर एक छोटी सी सूचना लिखी थी । मुझे यह जानने की जिज्ञासा हुई कि उस कागज पर क्या लिखा है? इसलिए मैं उस खंबे के करीब गया। सूचना में लिखा था, “कृपया, मदद करें! मैंने सड़क पर कहीं ₹50 खो दिए हैं। मेरी नज़र बहुत अच्छी नहीं है। अगर आपको यह राशि मिलती है तो कृपया मुझे इस पते पर वापस दे सकते हैं।” मैं उस पते तक पहुँचा। यह एक दयनीय हालत की झोपड़ी थी जिसकी छत और खिड़कियाँ टूटी हुई थीं। झोंपड़ी के बाहर एक कमज़ोर बुज़ुर्ग महिला बैठी थी। जैसे ही उसने मेरे कदमों की आहट सुनी, उसने पूछा, “कौन है?”

मैंने उत्तर दिया, “मैं पास से गुजर रहा था तो मुझे सड़क पर ₹50 मिले। मुझे बिजली के खंभे पर आपकी लिखी सूचना दिखाई दी, इसलिए मैं आपको पैसे सौंपने आया हूँ।” यह सुनकर उसके सूखे, झुर्रीदार गालों पर आंसू बहने लगे। उसने भारी मन से कहा, “मेरे पुत्र, मेरे पास कम से कम 30-40 लोग आए हैं और मुझे यह कहते हुए ₹50 दे गए हैं कि उन्हें वह रुपए सड़क पर मिले हैं। मैंने वह सूचना नहीं लिखी, मैं तो ठीक से देख भी नहीं पाती हूँ और न ही पढ़ना-लिखना जानती हूँ।”

इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, मुझे अपने आंसुओं को नियंत्रित करने के लिए एक सेकंड के लिए रुकना पड़ा।मैंने चहरे पर एक मुस्कान के साथ कहा, “कोई बात नहीं माताजी, आप कृपया इसे रख लें!” उसने मुझे वापस जाते समय उस सूचना को फाड़ने के लिए कहा। मुझे लगा कि बूढ़ी औरत ने पैसे लेकर उसके पास आने वाले सभी लोगों से उस सूचना को फाड़ने के लिए कहा होगा, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया! इसलिए, मैंने उसे आश्वस्त करते हुए उसके हाथों को थपथपाया और चला गया।

मैं अनगिनत विचारों के साथ वापस लौट आया कि खंबे पर वो सूचना किसने लिखी होगी ?

मैं उस व्यक्ति के लिए अपने दिल में गहरा सम्मान महसूस कर रहा था जिसने ऐसा कुछ करने की हिम्मत की, जिसके बारे में हममें से कई लोग सोच भी नहीं सकते! मुझे एहसास हुआ कि हममें बस मदद करने की इच्छा होनी चाहिए और बाकी चीजें काम करने का रास्ता खोज लेंगी! जब मैं अपने ख्यालों में मग्न था, किसी ने मेरे कंधे पर थपथपाया। मैंने मुड़कर देखा कि एक युवक मुझसे पूछ रहा है, “भाई, क्या आप इस पते को बताने में मेरी मदद कर सकते हैं? मुझे रास्ते में एक 50 रुपये का नोट मिला है और मैं इसे इसके मालिक को सौंपना चाहता हूँ!”

यह दुनिया रहने के लिए एक बेहतर जगह होगी, अगर हम न केवल अपने करीबी लोगों तक ही, बल्कि किसी ऐसे व्यक्ति तक भी पहुंच पाएंगे जिसे वास्तव में मदद की जरूरत है। शुरुआत करने की इच्छा और पहल करने का जज्बा ही कुछ अलग करने को काफी है। हम किसी और के सोचने के तरीके या काम करने के तरीके को नहीं बदल सकते हैं, लेकिन हम स्वयं निश्चित रूप से कुछ अलग कर सकते हैं।

जब भी मौका मिले किसी का बोझ हल्का करें। यह अटल सत्य है कि “जो लगातार देता रहता है, वह कभी खाली नहीं होता।” अपना वो सब उन लोगों के साथ साझा करें जो इसे वहन नहीं कर सकते क्योकि उदारता हमारा स्वाभाविक धर्म है। समाज तभी बदल सकता है जब हम उसे बदलना चाहते हैं, और जब हम बदलते हैं तो समाज पहले ही उस हद तक बदल चुका होगा। “अपने कार्यों में अपने हृदय की अच्छाई को प्रतिबिम्बित होने दें।”

“हम अपने संसाधनों का उपयोग कैसे करते हैं, यह हमारे चरित्र को परिभाषित करता है। हमारे संसाधन हमारे आंतरिक संकाय हैं जैसे मन, बुद्धि, अहंकार … फिर समय और बाहरी संसाधन जैसे धन, शक्ति आदि। हमें उनका उपयोग सही उद्देश्य के लिए बेहतर तरीके से करना चाहिए।” एक पल का ठहराव