राजू यादव
राम भक्त श्री हनुमान जन्मोत्सव। हनुमान जयंती एक हिन्दू पर्व है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन राम भक्तश्री हनुमानजी का जन्म हुआ था और वे चिरंजीवी हैं। मतलब त्रेता युग से अभी तक जीवित है और श्री राम जी का नाम जाप कर रहे हैं। हनुमान जी के जन्मदिन को हनुमान जयंती कहा जाता है, कुछ जगहों पर भ्रामक जानकारी दी जाती है कि है कि जयंती उसकी मनाई जाती है, जिसकी मृत्यु हो चुकी है (जो निराधार और असत्य है जयंती का जीवित या मृत से कोई संबंध नहीं है) परंतु हनुमान जी अमर है, युगों-युगों से जीते आ रहे है। इसीलिए आप सभी से निवेदन है कि हनुमान जी के जन्म दिन को हनुमान जयंती कहें। हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है। हनुमान जयंती का पर्व नेपाल व भारत में मनाया जाता है। इस दिन हनुमान जी की उपासना करने से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। राम भक्त श्री हनुमान जन्मोत्सव
हमारी धार्मिक एवं सनातन मान्यताओं के अनुसार सात देवता/महापुरूष अमर है।
अश्वत्थामा बलियासो हनुमानश्च विभीषणः। कृपाः परशुरामश्च सप्तैः ते चिरंजीविनाः।।
इस कलयुग में अनेक देवताओं की आराधना/पूजा की जाती है परन्तु सबसे ज्यादा आर्यावर्त क्षेत्र में श्री हनुमान जी की पूजा की जाती है। इनकी जयंती मान्यता के अनुसार साल में दो बार मनायी जाती है पहली जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को तथा दूसरी जयंती कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के चतुर्दशी यानी ठीक दीपावली के एक दिन पूर्व मनायी जाती है। अयोध्या धाम में भव्य दीपोत्सव भी इसी चर्तुदशी को मनाया जाता है। अयोध्या धाम का सातवां दीपोत्सव 11 नवम्बर 2023 को मनाया जायेगा। चैत्र पूर्णिमा 6 अप्रैल को पड़ रही है इसी दिन विश्व की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस भी मनाया जायेगा तथा संयोग से इस लेखक का जन्मदिवस भी 06 अप्रैल ही पड़ता है। विशेष रूप से इस लेख को आम वैष्णो भक्तों के लिए समर्पित किया जा रहा है। क्योंकि भगवान राम या कृष्ण का भक्त हनुमान जी के भक्ति/आर्शीवाद के बिना भक्त नही बन सकता क्योंकि भगवान जी स्वयं भगवान शंकर के रूद्रावतार है भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दशवे अध्याय में बताया है कि रूद्रो में शंकर मैं ही हूं। अर्थात मैं हनुमान ही हूं जो सभी भक्तों को जल्दी से जल्दी मनोकामना पूर्ण करते है।
विष्णु जी के राम अवतार के बाद रावण को दिव्य शक्ति प्रदान हो गई। जिससे रावण ने अपनी मोक्ष प्राप्ति हेतु शिवजी से वरदान माँगा की उन्हें मोक्ष प्रदान करने हेतु कोई उपाय बताए। तब शिवजी ने राम के हाथों मोक्ष प्रदान करने के लिए लीला रचि। शिवजी की लीला के अनुसार उन्होंने हनुमान के रूप में जन्म लिया ताकि रावण को मोक्ष दिलवा सके। इस कार्य में रामजी का साथ देने हेतु स्वयं शिवजी के अवतार हनुमान जी आये थे, जो की सदा के लिए अमर हो गए। रावण के वरदान के अनुसार उन्हे मृत्यु के साथ-साथ उसे मोक्ष भी दिलवाया।
करो कृपा मुझ पर हे हनुमान, जीवन-भर करूं मैं तुम्हे प्रणाम।
जग में सब तेरे ही गुण गाते हैं,हरदम चरणों में तेरे शीश नवाते हैं।बजरंगी तेरी पूजा से हर काम होता है,दर पर तेरे आते ही दूर अज्ञान होता है।
रामजी के चरणों में ध्यान होता है,आपके दर्शन से बिगड़ा हर काम होता है।
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आखिरकार हनुमान ने सुरसा की बात मान ली और उसका भोजन बनना स्वीकार कर लिया। सुरसा ने ज्यों ही मुंह खोला, पवन पुत्र ने अपना आकार विशाल कर लिया। यह देख सुरसा ने भी अपना आकार बड़ा कर लिया। जब हनुमान ने देखा कि सुरसा ने अपनी सीमा लांघ कर मुंह का आकार और भी बड़ा कर लिया तो वे तत्काल अपने विशाल रूप को समेटते हुये उसके मुंह के अंदर गये और बाहर वापस आ गये। हनुमान के बुद्वि कौशल से प्रसन्न होकर सुरसा ने उन्हें आर्शीर्वाद देते हुये कहा पुत्र तुम अपने कार्य में सफल हो। हनुमान ने अपने शरीर को पहले विशालकाय और फिर एक छोटे रूप से महिमा तथा लधिमा सिद्वि के बल पर किया था। हनुमान रूद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते है। संकटमोचक हनुमान अष्ट सिद्वि और नव निधि के दाता भी है। हनुमान अणिमा, लधिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, महिमा, इशित्व और वशित्व इन सभी आठ प्रकार की सिद्वियों के स्वामी है। राम जब लक्ष्मण के साथ सीता जी को वन-वन खोज रहे थे तो ब्राहा्रण वेश में हनुमानजी अपनी सरलता, वाणी और ज्ञान से रामजी को प्रभावित कर लेते है। वह वंशीकरण वशित्व सिद्वि है।
माता सीता को खोजने के क्रम में जब पवन पुत्र सागर को पार करने के लिए विराट रूप धारण करते है तो उनका यह कार्य महिमा सिद्वि का रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार जब हनुमान सागर पार कर लंका में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े तो अति सूक्ष्म रूप धर कर अणिमा सिद्वि को साकार किया। माता सीता को खोजते खोजते जब बजरंग बली अशोक वाटिका में पहुंचे तो उनके लघु रूप बनने में लधिमा सिद्वि काम आयी। इसी प्रकार पवन सुत की गरिमा सिद्वि के दर्शन करने के लिए महाभारत काल में जाना होगा, जब हनुमान महाबली भीम के बल के अंधकार को तोड़ने के लिए बूढ़े बानर का रूप धारण उनके मार्ग में लेट गये थे और भीम उनकी पूंछ को हिला भी नही पायें। इसी प्रकार बाल हनुमान के मन में उगते हुये सूर्य को पाने की अभिलाषा जागी तो उन्होंने उसे पकड़ कर मुंह में रख लिया तो अभिलाषा सिद्वि के दर्शन हुये। प्राकाम्य सिद्वि को समझने के लिए पवन पुत्र की राम के प्रति भक्ति को समझना होगा।
जिनके सीने में श्री राम हैं, जिनके चरणों में धाम हैं।
जिनके लिए सब कुछ दान हैं, अंजनी पुत्र वो हनुमान हैं।
दिल चाहे वो सब कुछ देते हैं हनुमान,करते हर भक्त के पूरे दिल के अरमान।
रहो सदा शरणागत तुम इनके चरण में,जब भी संकट आये आओ इनकी शरण में।
हनुमान जन्मोत्सव पर लोग हनुमान मन्दिर में दर्शन हेतु जाते है। कुछ लोग व्रत भी धारण कर बड़ी उत्सुकता और ऊर्जा के साथ समर्पित होकर इनकी पूजा करते है। अतः यह कहा जाता है कि ये बाल ब्रह्मचारी थे अतः इन्हे जनेऊ भी पहनाई जाती है। हनुमानजी की मूर्तियों पर सिन्दूर और चाँदी का वर्क चढ़ाने की परम्परा[2] है। कहा जाता है राम की लम्बी आयु के लिए एक बार हनुमान जी अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर चढ़ा लिया था और इसी कारण उन्हें और उनके भक्तो को सिन्दूर चढ़ाना बहुत अच्छा लगता है जिसे चोला कहते है। संध्या के समय दक्षिण मुखी हनुमान मूर्ति के सामने शुद्ध होकर मन्त्र जाप करने को अत्यन्त महत्त्व दिया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव पर रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड पाठ को पढना भी हनुमानजी को प्रसन्न करता है।”जब मनुष्य को संकट काल में सभी रास्ते बंद हो जाते हैं तो वह केवल उस परमपिता परमेश्वर को ही याद करता है जो संकट के इस काल में नास्तिक को भी आस्तिक बना देता है।”
रामभक्त हनुमान ने राम की भक्ति के अलावा और कुछ नही चाहा और वह उन्हें मिल गयी। इसलिए कहा जाता है कि हनुमान की कृपा पाए बिना राम की कृपा नही मिलती। पवन पुत्र की राम के प्रति अनन्य भक्ति का ही परिणाम था कि उन्हें प्रभुत्व और अधिकार की प्राप्ति स्वतः ही हो गयी इसे ही इंशित्व सिद्वि कहते है। इसी प्रकार नव रत्नों को ही नौ निधि कहा जाता है। ये है-पद्य महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्ब। सांसारिक जगत के लिए ये निधियां भले ही बहुत महत्व रखती हों, लेकिन भक्त हनुमान के लिए तो केवल राम नाम की मणि ही सबसे ज्यादा मूल्यवान है। इसे इस प्रसंग से समझा जा सकता है। रावध वध के पश्चात एक दिन श्रीराम सीताजी के साथ दरबार में बैठे थे। उन्होंने सभी को कुछ न कुछ उपहार दिय। श्रीराम ने हनुमान को भी उपहारस्वरूप मूल्यवान मोतियों की माला भेंट की। पवन पुत्र उस माला से मोती निकाल निकालकर दांतों से तोड़ तोड़कर देखने लगे। हनुमान के इस कार्य को देखकर भगवान राम ने हनुमान से पूछा, हे पवन पुत्र आप इन मोतियों में क्या ढूंढ रहे हो? पवन पुत्र ने कहा, प्रभु में आपको और माता को इन मोतियों में ढूंढ रहा हूं। लेकिन इसमें आप कही नही दिखाई दे रहे है और जिस वस्तु में आप नही, वह मेरे लिए व्यर्थ है। यह देख एक दरबारी ने उसने कहा पवन पुत्र क्या आपको लगता है कि आपके शरीर में भी भगवान है? अगर ऐसा है तो हमें दिखाइए। नही तो आपका यह शरीर भी व्यर्थ है। यह सुनकर हनुमान ने भरी सभा में अपना सीना चीरकर दिखा दिया। पूरी सभा यह देखकर हैरान थी कि भगवान राम माता जानकी के साथ हनुमान के हृदय में विराजमान है। राम भक्त श्री हनुमान जन्मोत्सव
(सात सनातन प्राणी हैं अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपा और परशुराम-यदि इन नामों का निरंतर ध्यान किया जाए, तो व्यक्ति मार्कंडेय की तरह प्राकृतिक या अप्राकृतिक मृत्यु से सौ साल मुक्त रह सकता है।)