

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 साल का हो गया है। इन सौ सालों में संघ ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। संघ की समाज के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता किसी से छिपी नहीं है,लेकिन संघ की विचारधारा पर अक्सर सवाल भी उठते रहते हैं। संघ पर कई बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है तो कई सरकारों ने समाज के प्रति उनके योगदान की सराहना भी की,लेकिन संघ ने कभी भी अपने ऊपर लगे आरोपों का खुलकर खंडन नहीं किया। ऐसा इस लिये है क्योंकि संघ कभी खुलकर समाज के सामने नहीं आता है। न ही अपने किये सामाजिक कार्यो की वाहवाही बटोरता है,लेकिन संघ को सबसे अधिक विचलित तब होना पड़ता है,जब उस पर देश की आधी आबादी यानि महिलाओं की अनदेखी का आरोप लगता है। संघ पर आरोप लगाया जाता है कि वह अपनी विचारधारा और संगठनात्मक ढांचे में महिलाओं को पुरुषों जितना सम्मान और स्थान नहीं देता। आलोचक कहते हैं कि संघ में महिलाओं को नेतृत्व भूमिका में जगह बहुत कम मिलती है। लेकिन संघ स्वयं इस धारणा का खंडन करता आया है। उसका कहना है कि महिलाओं की गरिमा और शक्ति के बिना राष्ट्र का अस्तित्व ही अधूरा है। यही कारण है कि संघ ने वर्षों से महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और संस्कार निर्माण की दिशा में कई कार्य योजनाएं चलायी हैं। संघ की प्रेरणा से आधी आबादी का बढ़ता आत्मविश्वास
संघ और उससे जुड़े संगठनों ने महिलाओं की उन्नति, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के लिये अब तक किस प्रकार के कार्य किए हैं, साथ ही कि किन क्षेत्रों में अभी भी और काम की आवश्यकता महसूस की जाती है। इस पर गौर किया जाये तो देखने में यही आता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं पुरुषों का संगठन है। परन्तु इसकी समानांतर शाखा महिलाओं के लिए ’’राष्ट्र सेविका समिति’’ के रूप में कार्यरत है। यह संगठन 1936 में डॉ. हेडगेवार के सुझाव से स्थापित हुआ। इसका उद्देश्य महिलाओं में आत्मविश्वास, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना जगाना था। समिति आज देशभर में हजारों शाखाएँ चला रही है। इन शाखाओं में युवतियों और महिलाओं को मानसिक व शारीरिक दृष्टि से सशक्त बनाने की दिशा में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। दंड, योग, गीत, व्याख्यान, साहित्य अध्ययन और विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं इनके नियमित आयोजन का हिस्सा हैं। इस समिति के माध्यम से अनेक महिला कार्यकर्ता समाज सेवा के क्षेत्र में आगे आयीं। ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी इलाकों और शहरी बस्तियों में समिति की सेविकाएँ शिक्षा का प्रसार कर रही हैं, महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं और संस्कार शिक्षा भी दे रही हैं।
संघ का मानना है कि भारत का स्वर्णिम भविष्य केवल शिक्षित और संस्कारित पीढ़ी के निर्माण से ही संभव है। इसी उद्देश्य से संघ के प्रेरणा से अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई, जिनमें लड़कियों की संख्या उल्लेखनीय है।विद्या भारती नामक शिक्षण संगठन आज भारत का सबसे बड़ा शैक्षिक नेटवर्क है। इसके विद्यालयों में बालिकाओं को संस्कारित शिक्षा प्रदान की जाती है। विज्ञान, गणित और कला जैसे विषयों के साथ नृत्य, संगीत व योग का अभ्यास भी कराया जाता है।आदिवासी बस्तियों में चलाए जा रहे ‘एकल विद्यालय’ योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां शिक्षा से जुड़ी हैं। इन विद्यालयों से दूर-दराज की पहाड़ी और वनवासी बालिकाओं तक शिक्षा पहुँच रही है। छात्राओं को छात्रवृत्ति और मार्गदर्शन देकर उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर करने पर भी बल दिया जाता रहा है। संघ से जुड़े संगठनों का प्रयास रहा है कि शिक्षा केवल पढ़ाई लिखाई तक सीमित न होकर चरित्र निर्माण और राष्ट्रप्रेम से भी जुड़ी हो।
महिलाओं के लिए स्वास्थ्य संबंधी अनेक योजनाएँ संघ व उसकी सहयोगी संस्थाएँ चला रही हैं। सेवा भारती संगठन देशभर में हजारों सेवा केंद्र चला रहा है। इनमें महिलाओं के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर लगाए जाते हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में बालिकाओं के लिए पोषण आहार वितरण, आयरन की गोलियाँ, स्वास्थ्य परामर्श और स्वास्थ्य शिक्षा का कार्य होता हैगर्भवती महिलाओं की मदद, प्रसव के समय सहयोग, और बच्चों की देखभाल से जुड़ी योजनाओं के पीछे संघ की स्वयंसेविकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महिला जागरूकता अभियान चलाकर मासिक धर्म स्वच्छता, पोषण और परिवार स्वास्थ्य जैसे विषयों पर ज्ञान फैलाया जाता है।
संघ का उद्देश्य केवल महिलाओं को शिक्षित करना भर नहीं है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाना भी है।अनेक सेवा प्रकल्पों में महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, हस्तशिल्प और भोजन प्रसंस्करण जैसी विधाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है।इसके माध्यम से महिलाएं परिवार के आर्थिक बोझ को साझा करती हैं और आत्मसम्मान के साथ समाज में योगदान देती हैं। स्वयं सहायता समूह बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को लघु उद्यम चलाने में सहायता दी जाती है। इससे उनमें नेतृत्व क्षमता और प्रबंधन कौशल का विकास हुआ है। आत्मनिर्भरता और महिला उद्यमिता ऐसे प्रयासों से महिलाएँ आर्थिक मजबूती के साथ आत्मसम्मान हासिल कर रही हैं। उनके अंदर प्रबंधन और निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास हो रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण यह है कि महिलाओं का योगदान केवल आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों तक सीमित न रहकर सांस्कृतिक और नैतिक निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण होना चाहिए।
सेविका समिति की शाखाओं और शिविरों में बालिकाओं को भारतीय शास्त्र, परंपरा और इतिहास से परिचित कराया जाता है। माँ भारती और नारी गरिमा की अवधारणा गीतों, नाटकों और व्याख्यानों के माध्यम से भावनात्मक रूप से जोड़ी जाती है। यह प्रशिक्षण उन्हें परिवार और समाज दोनों के प्रति जिम्मेदारी निभाने की दिशा में सजग बनाता है और उनमें नेतृत्व के साथ-साथ अनुशासन की भावना को भी प्रगाढ़ करता है। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आधुनिक काल की प्राकृतिक आपदाओं तक, संघ प्रेरित महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। सेविका समिति की महिलाएँ राहत कार्य, भोजन वितरण, आश्रय केंद्र संचालन और चिकित्सा सहयोग जैसे कार्यों में उल्लेखनीय योगदान देती रही हैं। यह उनकी सामाजिक जिम्मेदारी और सेवा भाव की जीवंत मिसाल है।
उधर, आलोचक कहते हैं कि यदि महिला और पुरुष समान हैं तो महिलाओं को संघ की मुख्य संरचना में सम्मिलित क्यों नहीं किया गया। उनका मत है कि महिला नेतृत्व को पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता। संघ का पक्ष बिल्कुल भिन्न है। उसका कहना है कि पुरुष और महिला की भूमिकाओं और प्रकृति में भिन्नता है। इसीलिए दोनों के लिए अलग-अलग मंच बनाना ही उचित है। ’राष्ट्र सेविका समिति’ इसी विचार पर संगठित है और वर्षों से स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही है। संघ का दावा है कि समिति की महिलाएँ सामाजिक उन्नति और सेवा कार्यों में कहीं अधिक सक्रिय है और यह विभाजन किसी बाधा के बजाय जिम्मेदारियों का स्वाभाविक बंटवारा है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठन महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा और आत्मनिर्भरता से जुड़े हजारों प्रकल्पों के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
लाखों महिलाएँ इन प्रयासों से आत्मबल और आत्मसम्मान प्राप्त कर रही हैं। हालांकि आलोचनाएँ यह कहती हैं कि संघ की केन्द्रीय नीति निर्धारण इकाई में महिला नेतृत्व का अभाव अब भी दिखता है। फिर भी यह वास्तविकता भी है कि महिला शक्ति को स्वतंत्र मंच देकर उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय किया गया है। आज गाँव-गाँव और शहर-शहर में संघ प्रेरित सेविकाएँ समाज सेवा, संस्कार शिक्षा और महिला उत्थान का दीप जला रही हैं। उनका योगदान शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति की मजबूत नींव रख रहा है और यह सिद्ध कर रहा है कि राष्ट्र की शक्ति स्त्री और पुरुष दोनों की साझेदारी से ही संपूर्ण होती है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर राष्ट्र के संकट काल तक, महिलाओं ने बहादुरी से भूमिका निभाई। संघ मानता है कि मातृशक्ति ही राष्ट्र की जननी है। इतिहास में क्रांति और जागरण के क्षणों में महिलाओं का योगदान सबसे अधिक रहा है। आज भी राष्ट्रीय संकट या प्राकृतिक आपदा के समय संघ व सेविका समिति की महिलाएं राहत और सेवा कार्यों में सक्रिय दिखाई देती हैं। बाढ़, भूकम्प, महामारी और दंगों के समय स्वयंसेविकाओं ने राहत शिविर चलाये, भोजन बाँटा और पीड़ित बहनों की सहायता की है।
संघ पर महिला नेतृत्व को संगठनात्मक ढांचे में कम स्थान देने का आरोप लगता है। इसका कारण यह है कि संघ की मूल शाखा में केवल पुरुष सदस्य होते हैं। आलोचकों का कहना है कि यदि महिलाएं वास्तव में बराबर की भागीदार हैं, तो उन्हें इसी संरचना में सम्मिलित क्यों नहीं किया गया। संघ इस पर स्पष्ट जवाब देता है कि पुरुष और महिला दोनों की प्रकृति में अंतर है। इसलिए उनके विकास के लिये अलग-अलग मंच बनाना अधिक उपयुक्त है। राष्ट्र सेविका समिति इसी सिद्धांत पर कार्य करती है। संघ का कहना है कि समिति स्वतंत्र रही है और उसको अपने कार्यक्रम और दिशा तय करने की पूरी स्वतंत्रता दी गयी है। संघ का यह दावा भी है कि यदि महिला कार्यकर्ताओं को देखा जाए, तो वे सामाजिक उत्थान में पुरुषों से कहीं अधिक सक्रिय और प्रभावशाली ढंग से कार्य करती हैं।
संघ ने महिला सशक्तिकरण के लिये क्या काम किया,इसके उदाहरण भी मौजूद हैं। संघ प्रेरित अनेक महिला कार्यकर्ताओं ने समाज में उल्लेखनीय काम किया है। आदिवासी क्षेत्रों में सैकड़ों संघ सेविकाएँ शिक्षा का दीपक जलाने का कार्य कर रही हैं। शहरी झुग्गियों में बालिकाओं के लिए चलाये जा रहे संस्कार केंद्र वहाँ की पीढ़ी को नयी दिशा दे रहे हैं। अनेक महिलाएं ग्राम विकास योजनाओं की अगुआई कर रही हैं। संघ साफ कहता है कि राष्ट्र निर्माण में महिला और पुरुष दोनों की बराबर भागीदारी आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बात पर जोर देता रहा है कि महिला ’शक्ति’ और ’संस्कार’ राष्ट्र की धुरी है। यही कारण है कि संघ ने शिक्षण, स्वास्थ्य, सेवा और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में महिलाओं के लिए हजारों योजनाएं चलाईं। हालांकि, आलोचनाएँ भी कम नहीं हैं। बहरहाल, यह सच है कि संघ की केन्द्रीय नेतृत्व संरचना में महिलाओं की औपचारिक भागीदारी नहीं है। लेकिन संघ यह मानता है कि अलग मंच बनाकर महिलाओं को राष्ट्र सेवा के लिए स्वतंत्र अवसर देना ही वास्तविक सम्मान है। अंततः यह कहना उचित होगा कि महिलाएं आज संघ प्रेरित प्रयासों से गाँव-गाँव और शहर-शहर में आत्मविश्वास और सम्मान के साथ खड़ी हो रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान राष्ट्र निर्माण की मजबूत नींव रख रहा है। संघ की प्रेरणा से आधी आबादी का बढ़ता आत्मविश्वास