

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वोट चोरी के आरोपों को लेकर सियासी माहौल गरमा गया है। विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहा है और सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश कर रहा है। क्या वाकई यूपी में लोकतंत्र खतरे में है या ये सिर्फ सियासी बयानबाज़ी है…?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के 2022 चुनाव संबंधी आरोपों पर तीन जिलों के DM ने साफ कहा है कि वोट चोरी का दावा गलत है। सपा ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए 18 हजार हलफनामे दाखिल किए थे, जिनमें से 15 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है। कासगंज, जौनपुर और बाराबंकी के DM ने रिपोर्ट पेश की जिसमें साफ किया गया कि जिन नामों को मतदाता सूची से हटाया गया, वे या तो किसी और जगह दर्ज थे या फिर उनकी मृत्यु हो चुकी थी। UP की राजनीति चर्चा में वोट चोरी का आरोप
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर पुराना मुद्दा चर्चा में है—वोट चोरी का आरोप। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और उनके प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए थे। सपा ने दावा किया था कि वोट चोरी हुई है और इसके सबूत के तौर पर 18 हज़ार हलफनामे यानी शपथपत्र भी जमा किए गए थे।
लेकिन अब, तीन साल बाद तीन जिलों के जिलाधिकारियों— जौनपुर, कासगंज और बाराबंकी के DM ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जांच रिपोर्ट साझा की है। इनका कहना है कि जिन नामों को मतदाता सूची से हटाया गया था, वे या तो दूसरे स्थान पर पहले से दर्ज थे या फिर उन लोगों की मृत्यु हो चुकी थी।
इस रिपोर्ट के बाद अखिलेश यादव ने कड़ा पलटवार किया है। उनका कहना है कि इतने सालों बाद जवाब क्यों दिया गया? अखिलेश ने तो यहां तक कह दिया कि अब जनता ही इस ‘त्रिगुट’ को अदालत लगाएगी और इनकी संलिप्तता की भी जांच होनी चाहिए।

अखिलेश यादव बनाम DM त्रिगुट: वोटर लिस्ट विवाद गरमाया
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के दावों को तीन जिलों के DM ने गलत ठहराया है। सपा ने 2022 में चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया था। इसके लिए 18 हजार हलफनामे (शपथपत्र) जमा किए थे। अब तीन साल बाद इनमें से 15 हलफनामों की जांच पूरी हुई है।
कासगंज,जौनपुर और बाराबंकी के डीएम ने मंगलवार देर रात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर बताया कि जो शिकायतें उनके पास आई थीं, उनकी जांच कर ली गई हैं। जांच में पता चला है कि कुछ नाम मतदाता सूची से हटाए गए थे, क्योंकि वे दूसरे स्थान पर पहले से दर्ज थे। कुछ लोगों की पहले ही मौत हो चुकी है, इसलिए उनके नाम डिलीट कर दिए गए।
इसके बाद से अखिलेश यादव तीनों जिलाधिकारियों पर हमलावर हैं। कहा- क्यों इतने सालों बाद जवाब आया है..? जनता अब इस ‘त्रिगुट’ को अदालत लगाएगी। इनकी संलिप्तता की भी जांच होनी चाहिए।
17 अगस्त को दिल्ली में मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। वहां उनसे पूछा गया कि अखिलेश यादव ने 18 हजार नामों का हलफनामा दिया है, लेकिन आयोग ने अभी तक उसका जवाब क्यों नहीं दिया।
इस पर ज्ञानेश कुमार ने कहा था कि आयोग को ऐसा कोई हलफनामा नहीं मिला। सिर्फ पत्र लिखकर बूथ लेवल ऑफिसर, एसडीएम और डीएम पर सवाल उठाना गलत है। इसके बाद अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा था कि आयोग का दावा गलत है।
सपा ने हलफनामे दिए थे। इसकी डिजिटल रसीद आयोग ने खुद भेजी थी। उन्होंने चुनौती दी कि आयोग शपथपत्र देकर बताए कि दी गई डिजिटल रसीद असली है या नहीं। अखिलेश ने चार ईमेल रिसीविंग भी पोस्ट कीं और संसद सत्र के दौरान हलफनामों की कॉपी बांटकर आयोग को जवाब दिया।

कासगंज:- यहां 8 नाम काटने की शिकायत आई थी। जांच में पता चला कि 7 नाम मतदाता सूची में दो बार दर्ज थे, इसलिए एक नाम हटाया गया। एक मतदाता की मौत होने पर उसकी पत्नी ने फार्म-7 भरकर नाम हटवाया था।
जौनपुर:- यहां 5 नाम काटने की शिकायत मिली थी। जांच में सभी लोग 2022 से पहले ही मृत पाए गए। उनके परिवार और स्थानीय सभासद से पुष्टि के बाद नाम हटाए गए थे।
बाराबंकी:- यहां 2 नाम काटने की शिकायत आई थी। जांच में पाया गया कि दोनों नाम अभी भी मतदाता सूची में दर्ज हैं। बाराबंकी डीएम ने यह भी स्वीकार किया कि सपा से हलफनामे उन्हें मिले थे और उनकी जांच की गई। इस तरह मुख्य निर्वाचन आयुक्त के ‘हलफनामा नहीं मिला’ वाले बयान पर सवाल उठ गया।
तीनों जिलाधिकारियों के बयान पर अखिलेश यादव ने X पर लिखा- डीएम लोगों से जनता का एक मासूम सवाल है, क्यों इतने सालों बाद जवाब आया है? जिस तरह कासगंज, बाराबंकी, जौनपुर के DM हमारे 18000 शपथ पत्रों के बारे में अचानक अति सक्रिय हो गए। उसने एक बात तो साबित कर दी है कि जो चुनाव आयोग कह रहा था कि ‘एफिडेविट की बात गलत है। मतलब एफिडेविट नहीं मिले, उनकी वो बात झूठी निकली।
अगर कोई एफिडेविट मिला ही नहीं तो ये जिलाधिकारी लोग जवाब किस बात का दे रहे। अब सतही जवाब देकर खानापूर्ति करने वाले इन जिलाधिकारियों की संलिप्तता की भी जांच होनी चाहिए। कोर्ट संज्ञान ले, चुनाव आयोग या डीएम में से कोई एक तो गलत है ही न…?
जो सीसीटीवी पर पकड़े गए हों, उनके द्वारा अपने घपलों पर दी गई सफाई पर किसी को भी रत्तीभर विश्वास नहीं है। झूठ का गठजोड़ कितना भी ताकतवर दिखे, लेकिन आखिरकार झूठ हारता ही है, क्योंकि नकारात्मक लोगों का साझा-गोरखधंधा अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए होता है।
सपा प्रमुख ने कहा- देश के लोकतंत्र पर डाका डाला गया
ऐसे भ्रष्ट लोग न तो अपने ईमान के सगे होते हैं, न परिवार, न समाज के, तो फिर भला अपने साझेदारों के कैसे होंगे। ये बेईमान लोग देश और देशवासियों से ताउम्र दगा करते हैं। अंततः पकड़े जाने पर अपमान से भरी जिंदगी जीने की सजा काटते हैं।
भाजपा सरकार, चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत, वो ‘चुनावी तीन तिगाड़ा है, जिसने सारा काम बिगाड़ा है। देश के लोकतंत्र पर डाका डाला है। अब जनता इस ‘त्रिगुट’ को अदालत लगाएगी।
अखिलेश ने कहा था- एक डीएम सस्पेंड कर दो, सब ठीक हो जाएंगे
समाजवादी पार्टी ने ये हलफनामे 4 नवंबर 2022 को दिए थे। सोमवार को संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि एक जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई कर दो, सब ठीक हो जाएंगे। फिर कोई हिम्मत नहीं करेगा किसी का वोट डिलीट करने की। इस पर तीन जिलों के जिलाधिकारी ने 19 अगस्त को देर रात सोशल मीडिया पोस्ट करके जवाब दिया है।इस पर अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा—“इतने साल बाद रिपोर्ट क्यों आई? जनता इस ‘त्रिगुट’ को अदालत लगाएगी।” अब इस मुद्दे पर राजनीति और गरमा गई है।
दोस्तों, बड़ा सवाल यह है कि—
👉 क्या सचमुच 2022 के चुनाव में वोट चोरी हुई थी?
👉 या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक आरोप था?
👉 और आखिर इतने सालों बाद अब ये रिपोर्ट क्यों आई?
और अखिलेश यादव का कहना सही है कि ‘अब जनता ही इस त्रिगुट को अदालत लगाएगी’? अगर सब कुछ क्लियर था, तो फिर तीन साल तक रिपोर्ट दबाकर क्यों रखी गई?
दोस्तों, यह विवाद सिर्फ वोटर लिस्ट का नहीं है, बल्कि भरोसे का है… लोकतंत्र के विश्वास का है। आपकी नज़र में सच्चाई क्या है…? UP की राजनीति चर्चा में वोट चोरी का आरोप

























