
डा. हीरालाल यादव पीएचडी
क्या समाज का उत्थान हर किसी का अधिकार नहीं…? तो फिर कुछ विचारधाराएँ क्यों चाहती हैं कि ज्ञान, धर्म और सत्ता पर सिर्फ उनका अधिकार हो..? सदियों तक भारत में ब्राह्मणवाद ने वर्ण व्यवस्था के नाम पर समाज को बांटने का काम किया। शिक्षा, पूजा, और शासन – सब कुछ कुछ खास जातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया। लेकिन समाज कभी चुप नहीं रहा। कभी कबीर ने बोला – ‘जाति न पूछो साधु की’, तो कभी ज्योतिबा फुले, डॉ. आंबेडकर और पेरियार जैसे सुधारकों ने इस अन्याय के खिलाफ बिगुल बजाया।आज जब आरक्षण, शिक्षा और समानता की बात होती है, तो कुछ लोग इसे ‘ब्राह्मण विरोध’ कह देते हैं।पर ये लड़ाई किसी जाति के खिलाफ नहीं, बल्कि उस मानसिकता के खिलाफ है जो हजारों साल से समाज को नीचे-ऊपर में बांटती आई है। “समाज सुधार का मतलब है-हर किसी को समान अवसर, हर किसी को गरिमा, हर किसी को न्याय। ब्राह्मणवाद बनाम सामाजिक न्याय
“ब्राह्मणवाद नहीं, समाजवाद चाहिए। जाति नहीं, समानता चाहिए।”
“अंग्रेज़ आए तो ब्राह्मण क्रांति पर उतर आए… लेकिन मुग़ल, तुग़लक, खिलजी, लोधी – जब सब राज करते रहे… तब ये चुप क्यों थे..?” अंग्रेजों ने ब्राह्मणवाद की नींव हिला दी थी – जब शूद्रों को भी सम्पत्ति, शिक्षा और न्याय का अधिकार मिला।” “ब्राह्मणवाद चिल्लाया – धर्म खतरे में है! क्योंकि अब शूद्र कन्या ब्राह्मण की दासी नहीं रही… अब अपराध पर उन्हें भी सज़ा मिलने लगी!” “ये क्रांति धर्म के खिलाफ नहीं, जातीय अन्याय के खिलाफ थी। इतिहास को जानिए, आँखें खोलिए!”
ब्राह्मणवाद का नंगा सच -इसलिये हिन्दू-हिन्दू कर रहा है मूर्ख बना रहा है सबको ?
अंग्रेजों ने भारत पर 200 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया..? जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहमंद गौरी,चन्गेज खान ने हमला किये और फिर कुतुबदीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जीवंश, लोदि वंश फिर मुगल आदी वन्शोने भारत पर राज किया लेकिन ब्राह्मण ने कोई क्रांति या आंदोलन नही चलाया! फिर अंग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दी जानिये क्रांति और आंदोलन की वजह।
हजारों वर्षों से भारतीय समाज पर एक विशेष वर्ग का वर्चस्व रहा – जिसे आज हम “ब्राह्मणवाद” के नाम से जानते हैं। ब्राह्मणवाद कोई जाति नहीं, बल्कि वह सोच है जो सत्ता, शिक्षा, धर्म और संपत्ति को केवल अपने अधिकार में मानती है।
परंतु जब अंग्रेज भारत आए, तो यह व्यवस्था हिलने लगी। ऐसा क्या हुआ कि ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठा लिया, पर मुग़ल, तुर्क और अफगानों के खिलाफ कभी कोई आंदोलन नहीं चलाया…?
मुस्लिम शासनकाल में क्या हुआ..?
भारत पर सबसे पहले हमला 712 ई. में मीर क़ासिम ने किया। इसके बाद महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी, चंगेज़ खान, कुतुबुद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुगलक वंश, खिलजी, लोदी और फिर मुगल आए। इनमें से किसी के शासन के दौरान ब्राह्मणों ने कोई सामाजिक या सशस्त्र क्रांति नहीं चलाई। क्योंकि मुस्लिम शासकों ने सामाजिक व्यवस्था में दखल नहीं दिया – ब्राह्मणवाद चलता रहा, शूद्रों को वही अपमान, वही वंचना मिलती रही।
अंग्रेजों के शासन में क्या बदल गया..?
जब अंग्रेज आए, तो उन्होंने न केवल सत्ता संभाली, बल्कि सामाजिक व्यवस्था की सुधार की दिशा में कानून बनाए — जो ब्राह्मणवादी सोच के लिए खतरा बन गए।
ब्राह्मणवाद पर सीधा प्रहार करने वाले अंग्रेजी कानून
- 1795 – अधिनियम 11:-शूद्रों को संपत्ति का अधिकार मिला।
- 1773 – रेगुलेटिंग एक्ट:-सभी को न्याय में समानता। नंद कुमार नामक ब्राह्मण को बलात्कार के आरोप में फांसी दी गई – एक ऐतिहासिक घटना!
- 1804 – अधिनियम 3:-कन्या हत्या पर रोक। लड़कियों को अफीम, धतूरा या दूध में डुबोकर मारने की परंपरा पर अंग्रेजों ने कानूनी रोक लगाई।
- 1813:-शिक्षा सभी जातियों के लिए खुली। अब शूद्र भी पढ़ सकते थे।
- 1813 – दास प्रथा का अंत:– शूद्रों को खरीदा-बेचा नहीं जा सकता था।
- 1817 – समान नागरिक संहिता:– अब सजा जाति के आधार पर नहीं, अपराध के आधार पर होगी।
- 1819 – अधिनियम 7:– शूद्र स्त्रियों के तथाकथित ‘शुद्धिकरण’ पर रोक। पहले ब्राह्मणों को अधिकार था कि शादी के बाद शूद्र कन्या को तीन रात ‘सेवा’ करनी होगी। यह अमानवीय परंपरा खत्म हुई।
- 1830 – नरबलि प्रथा पर रोक:– मंदिरों में शूद्र स्त्री-पुरुषों को बलि चढ़ाने की राक्षसी परंपरा पर रोक लगाई गई।
ब्राह्मणवाद को क्या खलने लगा..?
अंग्रेजों के सुधारवादी कदम ब्राह्मणवादी वर्चस्व के लिए खतरा बन गए। धर्म की आड़ में जो वंचनाएं चलती थीं – वे खत्म हो रही थीं। यही कारण है कि ब्राह्मणवाद ने धर्म के नाम पर “स्वतंत्रता संग्राम” शुरू किया – ताकि अपनी खोई हुई सत्ता वापस पाई जा सके। अंग्रेजों की नीयत उपनिवेशवाद हो सकती है, पर उनके कई कानूनों ने ब्राह्मणवाद की नींव को हिलाया, और दलित-पिछड़ों को पहली बार इंसान समझा।
ब्राह्मणवाद क्या है..?
ब्राह्मणवाद कोई जाति नहीं, एक मानसिकता है। यह वह व्यवस्था है जो कहती है:-
- ज्ञान केवल ब्राह्मण के लिए।
- शासन क्षत्रिय के लिए।
- व्यापार वैश्य के लिए।
- और सेवा शूद्र के लिए।
शूद्रों, दलितों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को सदियों तक शिक्षा, सम्पत्ति और मंदिर तक से वंचित रखा गया।
सामाजिक न्याय क्या है..?
सामाजिक न्याय का अर्थ है — सभी नागरिकों को समान अधिकार, अवसर और सम्मान मिलना चाहिए, चाहे उनकी जाति, लिंग, धर्म या वर्ग कुछ भी हो।
जब ब्राह्मणवाद को चुनौती मिली
- ज्योतिबा फुले:– सत्यशोधक समाज की स्थापना की – ब्राह्मणों के एकाधिकार को खुली चुनौती।
- सावित्रीबाई फुले:– देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं – दलित बच्चियों को पढ़ाया।
- डॉ. आंबेडकर:– संविधान रचकर सामाजिक न्याय को कानून बना दिया।
- पेरियार:– दक्षिण में ब्राह्मण वर्चस्व को तोड़ने के लिए “द्रविड़ आंदोलन” की शुरुआत की।
“समाज सुधार देशभक्ति से बड़ा है और सत्य -किसी भी धर्म से बड़ा।” ब्राह्मणवाद बनाम सामाजिक न्याय
नोट:– यह लेख इतिहास के विश्लेषण पर आधारित है। किसी जाति विशेष नहीं, बल्कि ब्राह्मणवादी सोच की आलोचना है।