परिपक्वता क्या है..?

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परिपक्वता क्या है..?
परिपक्वता क्या है..?
राजू यादव

परिपक्वता तब आती है,जब आप यह समझ जाते हैं कि हर किसी को बदलना आपका काम नहीं है, बल्कि खुद को बेहतर बनाना आपकी जिम्मेदारी है। परिपक्व व्यक्ति हर बात पर प्रतिक्रिया नहीं देता, वह सोच-समझकर उत्तर देता है। वह जानता है कि हर तर्क के जवाब में चीखना ज़रूरी नहीं, कभी-कभी चुप रहना ही सबसे बड़ी समझदारी होती है।जब आप खुद को दूसरों से नहीं, अपने कल से तुलना करने लगते हैं, तब असली विकास होता है। परिपक्वता क्या है..?

परिपक्वता क्या है..?

  1. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दे, इसके बजाय स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करें।
  2. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को, जैसे हैं,वैसा ही स्वीकार करें।
  3. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी सोच अनुसार सही हैं।
  4. परिपक्वता वह है – जब आप “जाने दो” वाले सिद्धांत को सीख लें।
  5. परिपक्वता वह है – जब आप रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखें।
  6. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझ लें कि आप जो भी करते हैं, वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है।
  7. परिपक्वता वह है – जब आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने अधिक बुद्धिमान है।
  8. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बंद कर दे।
  9. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें।
  10. परिपक्वता वह है – जब आप स्वयं में शांत हैं।
  11. परिपक्वता वह है – जब आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतों को छोड़ने को तैयार हों।
  12. आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं – जब आप अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें।आप सभी को सुखी एव्ं परिपक्व जीवन की शुभकामना..।।

परिपक्वता एक अवस्था है-न उम्र की, न अनुभव की गिनती की, बल्कि जीवन को देखने की दृष्टि की। यह कोई प्रमाणपत्र नहीं, एक आंतरिक विकास है, जहाँ व्यक्ति परिस्थितियों को लेकर संयमित, संतुलित और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाता है। उम्र से नहीं, सोच से आती है हर बात पर प्रतिक्रिया नहीं, सोच-समझकर उत्तर देना।केवल बोलना नहीं, दूसरों को भी सुनना।गलती होने पर बचाव नहीं, स्वीकार और सुधार।रिश्ते में ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ को महत्व देना।पल भर की खुशी नहीं, दीर्घकालिक शांति चुनना।परिपक्वता कई बार छोटे बच्चे भी ऐसी बातें कह देते हैं, जो जीवन की गहरी समझ को दर्शाती हैं, और कई बार उम्रदराज लोग भी अहं और तर्क में उलझे रहते हैं। इसलिए परिपक्वता उम्र नहीं, अनुभव से उपजी समझ का नाम है।

बड़ा वही जो हृदय से बड़ा है..

भगवान् के भक्त बड़े-से-बड़े होने पर भी अपने को छोटा ही मानते हैं। सेवा के कार्य में भी जितनी नीची सेवा होती है, वह उतनी ही उत्तम मानी जाती है। भगवान् श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के चरण धोने का तथा लोगों की जूठी पत्तलें उठाने का काम किया तो यज्ञ में सबसे पहले उन्हीं का पूजन किया गया। शिशुपाल को बड़प्पन का अभिमान था, इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण की अग्रपूजा उससे सही नहीं गयी; क्योंकि वह उन्हें नीची दृष्टि से देखता था और उन्हें एक साधारण ग्वाला समझता था। पर अन्त में शिशुपाल की क्या दशा हुई..!

बड़ों का बड़प्पन छोटों का पालन करने के लिये ही है, उनका तिरस्कार करने के लिये कदापि नहीं। जो छोटों के भोजन-वस्त्रादि का ध्यान न रखे, वह बड़ा कैसा..? घरों में भी छोटे प्यार के पात्र होते हैं, उनकी रक्षा का भार बड़ों पर होता है। बड़प्पन का अभिमान आते ही मनुष्य छोटा हो जाता है। आप हृदय से बड़े बनें। बड़ा वही है, जो हृदय से बड़ा है। हृदय से बड़े होने का तात्पर्य है- भगवान् का आश्रय लें और अपने को छोटा मानें।

परिपक्वता एक लक्ष्य नहीं, एक यात्रा है-जो हमें हर दिन थोड़ा बेहतर बनाती है। यह आत्म-जागरूकता का वह स्तर है जहाँ हम स्वयं को समझकर दुनिया को समझने लगते हैं।जब आप जान जाते हैं कि हर लड़ाई लड़ना ज़रूरी नहीं होता, और हर जवाब ज़ुबान से नहीं… व्यवहार से दिया जाता है, तब आप परिपक्व हो रहे होते हैं।जब आप बातों में नहीं, व्यवहार में बदलाव लाते हैं, जब आप दूसरों को नहीं, खुद को सुधारते हैं, जब आप दोष नहीं, समाधान खोजते हैं, तब आप सचमुच परिपक्व हो जाते हैं।परिपक्वता, मौन में छिपी एक बुद्धिमत्ता है।परिपक्वता क्या है..?