
डॉ.सत्यवान ‘सौरभ’
हिंदी है दिल की धड़कन, हिंदी है प्राण हमारा, हिंदी से ही जुड़ा हुआ, भारत देश प्यारा। हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा
नदियों सी बहती हिंदी, सागर सी गहराई, संस्कृति की पालकी बनकर, सबको रही लुभाई।
वेदों की वह वाणी है, संतों की यह बोली, मीरा, तुलसी, कबीर की, इसमें बसी ठिठोली।
गांधी के स्वप्नों की भाषा, अटल का अभिमान, से ही खिल उठता है, मेरा हिंदुस्तान।
दफ्तर की दीवारों पर अब, हिंदी मुस्काए, काग़ज़-कलम से लेकर कंप्यूटर तक जाए।
राजभाषा का गौरव पाकर, करे नया आगाज़, हर पख़वाड़े में हिंदी बोले, सारा हिन्द समाज।
कभी मत समझो कमजोर इसे, यह जन-जन की आवाज़, हर दिल में है बसी हुई, इसकी गूँजे राज़।
अंग्रेज़ी से बैर नहीं, बस अपनी पहचान रहे, दुनिया जाने भारत को, हिंदी की पहचान कहे।
बच्चों को पढ़ाओ इसे, खुद भी इसका मान करो, जिस मिट्टी में जन्मे हो तुम, उसका सम्मान करो।
कलम उठे जब भाव लिखो, हिंदी में मुस्कान हो, शब्दों में हो आत्मा ऐसी, जो भारत की जान हो।
—-“हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, यह भारत की आत्मा है। आइए, हिंदी पख़वाड़े में इसे और ऊँचाई दें।” हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा