

स्कूली बच्चों में बढ़ती हुई टाइप 2 शुगर की बीमारी को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई ने विद्यालयों में बच्चों को मधुमेह से बचने की शिक्षा देने एवं शुगर हो जाने पर कैसे उसे नियंत्रित किया जा सकता है जैसे बिंदुओं पर शिक्षित करने का एक अच्छा कदम उठाया है। प्रायः माना जाता है कि मधुमेह बच्चों में नहीं होती लेकिन लंबे समय से देखने में आ रहा है कि किशोर अवस्था के बच्चों में भी अब मधुमेह के लक्षण बढ़ते जा रहे हैं यदि पाठ्यक्रम में इस तरह के अध्याय रखे जाएं जो बच्चों को मधुमेह के लक्षणों एवं कारणों के बारे में बता सकें तो यह निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ी के लिए एक लाभदायक कदम होगा। बच्चों को मधुमेह से बचाएंगे स्कूल
मधुमेह के कारणों की पृष्ठभूमि में जाएं तो दो कारण मुख्य रूप से उभर कर आते हैं इनमें से पहला कारण है आनुवंशिक रूप से मधुमेह का होना जो बच्चे में अपने पैतृक या माता के वंश से आता है। इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण है बच्चों में बढ़ता हुआ मोटापा । मोटापे का मूल कारण है शरीर में वसा का अधिक मात्रा में जमा होना। जितनी कैलोरी हम भोजन या अन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त करते हैं यदि उ
उसे पर्याप्त मात्रा में बर्न नहीं किया जाता है तो शरीर में ग्लूकोटिन की मात्रा बढ़ती चली जाती है जो अंततः शुगर का कारण बन जाती है। मधुमेह के बारे में एक गलत अवधारणा देखने में आती है कि मधुमेह मीठा खाने से होता है । यह एक मिथक है दरअसल मधुमेह मीठा खाने से नहीं होता लेकिन यदि मधुमेह हो जाए तो अधिक मीठा खाने से स्थिति बिगड़ने का भय ज़रूर रहता है। शुगर से बचने का आसान तरीका है उसके प्रारंभिक लक्षणों को जानकर उपयुक्त सावधानी बरतना।
सामान्य लक्षण–
मधुमेह के प्रारंभिक लक्ष्ण में बार-बार पेशाब आना, त्वचा में खुजली होना, धुंधला दिखना, थकान व कमजोरी महसूस करना, पैरों का सुन्न होना, प्यास अधिक लगना, घाव भरने में बहुत समय लगना, हमेशा भूख महसूस करना, वजन कम होना और त्वचा में संक्रमण होना प्रमुख हैं।यदि त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन दिखे, कोई चोट या फफोले ठीक होने में सामान्य से अधिक समय लगे, कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है या कोई न भरने वाला घाव हो तो रोगी को तुरंत चिकित्सक से संपर्क कर शुगर टेस्ट कराना चाहिए ।
विशेष लक्षण–
रोगी का मुँह सूखना,अत्यधिक प्यास व भूख लगना, दुर्बल होते जाना, बिना कारण भार कम होना, शरीर में थकावट के साथ-साथ मानसिक चिन्तन एवं एकाग्रता में कमी होना। मूत्र त्यागने के स्थान पर चीटियाँ लगना, पौरुष शक्ति में क्षीणता, स्त्रियों में मासिक स्राव में विकृति अथवा उसका बन्द होनाआदि मधुमेह के विशेष लक्ष्ण है।
कारण –
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट एक प्रमुख तत्त्व है, यही कैलोरी व ऊर्जा का स्रोत है। शरीर को 60 से 70 प्रतिशत कैलोरी इन्हीं से प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट पाचन तंत्र में पहुंचते ही ग्लूकोज के छोटे-छोटे कणों में बदल कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं इसलिए भोजन लेने के आधे घंटे भीतर ही रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा दो घंटे में अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। दूसरी ओर शरीर तथा मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं इस ग्लूकोज का उपयोग करने लगती हैं। ग्लूकोज छोटी रक्त नलिकाओं द्वारा प्रत्येक कोशिका में प्रवेश करता है, वहां इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे के भीतर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को घटा देती है। भोजन के पश्चात यह स्तर 120-140 मि.ग्रा.डे.ली. हो जाता है तथा धीरे-धीरे कम होता चला जाता है।
मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण कोशिकाएं ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पातीं क्योंकि इंसुलिन के अभाव में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश ही नहीं कर पाता। इंसुलिन एक रक्षक की तरह ग्लूकोज को कोशिकाओं में प्रवेश करवाता है ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके। यदि ऐसा न हो सके तो शरीर की कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य अंगों को भी रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर के कारण हानि होती है।
ख़तरे –
यदि रक्त में शर्करा का स्तर लंबे समय तक सामान्य से अधिक बना रहता है तो उच्च रक्त ग्लूकोज अधिक समय के बाद विषैला हो जाता है। अधिक समय के बाद उच्च ग्लूकोज, रक्त नलिकाओं, गुर्दे, आंखों और स्नायुओं को खराब कर देता है जिससे जटिलताएं पैदा होती है और शरीर के प्रमुख अंगों में स्थायी खराबी आ सकती है।
स्नायुतंत्र की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जा सकती है। रक्त नलिकाओं की बीमारी से हृदयाघात भी सकता है, पक्षाघात और संचरण की समस्याएं पैदा हो सकती हैं । ग्लूकोमा या मोतियाबिंद रोग हो सकते हैं।
इसके अतिरिक्त भी उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रोल व रक्त संचारण धीमा होने से दिल का दौऱा पड़ सकता है। मधुमेह में पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा 16 गुना बढ़ जाता है ।
मधुमेह मरीजों में हार्ट-अटैक होने पर भी छाती में दर्द नहीं होता, क्योंकि दर्द का अहसास दिलाने वाला इनका स्नायु क्षतिग्रस्त हो जाता है।
मधुमेह रोगियों को एन्जाइना भी होने का खतरा रहता है, यदि रक्त का ग्लूकोज स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है और रक्त में किरोन का स्तर भी बढ़ता है तो अचानक रक्त संचार की प्रणाली कार्य करना बंद कर देती है और उससे मौत भी हो सकती है ।
मधुमेह का घनिष्ठ संबंध जीवन-शैली से है ,अतः नियमित अंतराल में चिकित्सकीय परीक्षण करवायें, जिससे रोग का शुरुआती अवस्था में ही पता लग सके।
ऐसे रोकें मधुमेह –
मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा डाॅक्टर के सुझाव के अनुसार खाने वाली दवाइयों का सेवन करना जरुरी है ।
तनाव से बचें सुपाच्य खाएं–
चिन्ता, तनाव, व्यग्रता से मुक्त रहें। तीन माह में एक बार रक्त शर्करा की जाँच कराएं। भोजन कम करें, भोजन में रेशे युक्त द्रव्य, तरकारी, जौ, चने, गेहूँ, बाजरे की रोटी, हरी सब्जी एवं दही का प्रचुरमात्रा में सेवन करें। चना और गेहूँ मिलाकर उसके आटे की रोटी खाना बेहतर है। शारीरिक परिश्रम करें व प्रातः 4-5 कि.मी. घूमें । कोल्ड ड्रिंक व पैक्ड फूड से जितना परहेज करें उतना अच्छा है
नियमित रहें , पैदल चलें –
नियमित एवं संयमित जीवन के साथ मीठे का सेवन सीमित करें। वजन अधिक है तो कम करें। दवाओं का सेवन चिकित्सक के परामर्श से करें। प्राणायाम व योग अवश्य करें । जहाँ तक संभव हो कुछ समय नंगे पैर जमीन पर अवश्य चलें, और शुगर की नियमित जाँच ज़रुर कराते रहें। बच्चों को मधुमेह से बचाएंगे स्कूल