चुनाव कैसे जीतें..?

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चुनाव कैसे जीतें..?
चुनाव कैसे जीतें..?

गौरीशंकर दुबे

चुनाव जीतने के लिए हरदम किसी न किसी मुद्दे की जरूरत होती है । अलग-अलग राज्यों में अलग मुद्दे ह़ोते हैं। कहीं धर्म का मुद्दा मुख्य विषय होता है तो कहीं अन्य। वैसे अपने देश में मुद्दों की कोई कमी नहीं है। सबको अलग-अलग मुद्दे मिल जाते हैं। विकास का मुद्दा आज मुख्य है। कहीं कोई मुद्दा नहीं होता है। अपनी ईमानदार नीतियों से उन्हें सत्ता मिल जाती है। चुनाव कैसे जीतें..?

आज चुनाव कैसे जीते, यह प्रश्न नहीं रहता। चुनाव जीतने के अनेक आसान नुस्खे हैं। यदि आपको किसी बड़े दल की टिकट मिल गई है तो जीत निश्चित है। कुछ दल वाले टिकट वितरण को दलदल बनाने में पीछे नहीं रहते हैं। हर बार उनका मापदंड अलग-अलग होता है। चुनाव के पहले दल में लूट पाट, झंझट शुरू हो जाता है। कोई इसमें गया तो कोई उसमें। एक – दूसरे दलों में आवागमन शुरू हो जाता है। भाजपा वाले भाजपा का पटका पहनाकर स्वागत करते हैं, तो कांग्रेस वाले कांग्रेस का पटका पहनाकर फोटो खिंचवाते हैं। आयाराम- गया राम का दौर खत्म होते ही बैठकों मंत्रणाओं का दौर शुरू होता है।

अब अपनी पार्टी के किसी बड़े नेता की अपने पक्ष में रैली करवा दो । पन्द्रह बीस गांव के लोग आने को ऐसे ही तैयार हो जायेंगे। बाकी के लिए लंच पैकेट की तैयारी कर लो। जितना ज्यादा प्रचार – प्रसार, जीत की संभावना उतनी अधिक रैली में भीड़ इकट्ठा करने में वह उतना ही सफल। प्रचार में पीछे नहीं रहना। प्रचार ही जीत का आधार है। प्रचार प्रसार से आपके ही क्षेत्र से नहीं बल्कि दूसरे चुनाव क्षेत्र के प्रत्याशी दल-बल सहित आपके कार्यक्रम को सफल बनाने आ जायेंगे। इसलिए तो खर्च करने में और न प्रचार में पीछे नहीं रहना चाहिए।

इसी तरह चुनाव जीतने के लिए कोई न कोई नया नारा तैयार कर लो। आपको न मालूम हो तो अभी हाल में संपन्न विदेशी नारे का भारतीयकरण कर लो। समझो नैया पार है। न कोई छोटा,न बड़ा ,सब होंगे एक समान। न कोई गरीब न अमीर होंगे, सब एक समान। सुंदर राष्ट्र का है सपना, सबको गले लगाना। न कोई हिन्दू न मुसलमान ,सब होंगे एक समान। इसी तरह के नारे से बड़े बड़े चुनाव जीत जाते हैं।

नारा बना लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि नारों का भी प्रचार प्रसार में योगदान होना चाहिए। नारों का दीवारों पर लेखन करवा देना, बैनर पोस्टर, चारों ओर आप ही आप नजर आओ. यह आपकी सफलता की गारंटी है। दूसरा कोई प्रत्याशी नजर नही आवे। चाहे गांव हो या शहर, प्रचार में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए। शहरी मतदाता के साथ- साथ गांव का मतदाता भी सम्मानित है। सभी मतदाता समान हैं। जनसंपर्क के दौरान प्रत्येक गांव के मुखिया,प्रधान या मंडल से मिलकर उस गांव का वोट आपके पक्ष ही पड़े, यह निश्चित कर लेना चाहिए। गांव वालों के लिए वनभोज का आयोजन चुनाव के बाद या पहले करवा देना चाहिए। मतदाता का झुकाव आपके ही प्रति हो। चुनाव जीतने के लिए यह अति आवश्यक है।

जैसे शांत तालाब में एक पत्थर फेंकने से लहरें इस छोर से उस छोर पहुंच जाती है ,वैसे ही चुनाव शब्द सुनते ही पूरे देश – प्रदेश में हलचल मच जाती है। ठीक उसी तरह जैसे परीक्षा शब्द से बच्चों एवं छात्रों में होती है। कितनी भी अच्छी तैयारी की हो, बच्चे परीक्षा कैसे पास करें, प्रत्याशी चुनाव कैसे जीते। भले ही कितना भी प्रचार – प्रसार किया हो , चढ़ावा चढ़ाया हो, चुनाव क्षेत्र में बंटवाया हो लेकिन विजय श्री का विश्वास नहीं होता।

जैसे कितनी भी पढ़ाई या ट्यूशन करने के बाद परीक्षाफल के दिन एक छात्र की जो हालत होती है वैसे ही चुनाव परिणाम के दिन एक उम्मीदवार की होती है। परिणाम क्षण-क्षण में बदलते रहते हैं। चुनाव जीतना भी एक कला से कम नहीं है। जो प्रत्याशी एक-दो बार चुनाव जीत जाता है, वह इस कला में पारंगत हो जाता है। कुछ प्रत्याशी स्वयं चुनाव जीतते हैं और चुनाव संचालन के कार्यक्रम को अपने हाथ में लेकर औरों को चुनाव जीताते हैं। चुनाव कैसे जीतें..?