मानसिकता बदलाव की अति आवश्यकता

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मानसिकता बदलाव की अति आवश्यकता
मानसिकता बदलाव की अति आवश्यकता

डॉ.सुधाकर कुमार मिश्रा 

 वर्तमान में भारत में ऐसे वैदेशिक विश्वविद्यालय से अध्यनरत और आकर्षित व्यक्ति हैं जिनको  पाश्चात्य शैली ,पाश्चात्य  वातावरण और पाश्चात्य कार्य संस्कृति से अत्यधिक लगाव है. इसके पीछे का प्रबल कारक उनकी अपनी मानसिकता है जिसमें वह संस्कार और प्रशिक्षण प्राप्त किए है। व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके वंश( संस्कृति) और पर्यावरण( आसपास का माहौल) प्रभाव पड़ता है। मानसिकता बदलाव की अति आवश्यकता

ब्रिटिशराज  से पूर्व भारत वैश्विक स्तर की आर्थिक महाशक्ति था और ज्ञान परंपरा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शक था । भारत ज्ञान की शक्ति था। ज्ञान परंपरा रूपी शक्ति के उन्नयन में हमारे संत  समाज,मनीषी समुदाय और चिंतक आचार्य की महत्वपूर्ण  उपादेयता है। इसी की उपादेयता  हैं कि प्राचीन ग्रंथो का वृहद स्तर पर अनुवाद करवाया गया था। शासकीय कौशल के लिए विवेकीय प्रज्ञा (ज्ञान)का महत्वपूर्ण उपादेयता है। मुगलों की धार्मिक और  साहित्यिक अत्याचार,अंग्रेजों की औपनिवेशिक दासता और वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति से रंगे श्रृंगाल रूपी व्यक्तित्व के लोग अपनी इतिहास और संस्कृति पर गर्व करने के बजाय जॉर्ज  सोरोस के  कुप्रबंधन  और अंतर्किक चरित्र से प्रेरित हो रहे हैं।

 कांग्रेस के नेता और विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी और थकानभरी राजनीतिक पारी वाले श्रीमान खड़गे   लोकसभा, जो लोकतंत्र का मंदिर है और  जनप्रतिनिधियों का संगम है, में आक्षेप  और कुतर्क के साथ दोषारोपण कर चुके हैं कि संविधान पर कुठाराघात हो रहा है, लोकतंत्र पर खतरा है। उनको और कांग्रेस को विदित होना चाहिए कि  सन 1975 से सन 1977 तक उनकी दादी और तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने संविधान के कई अनुच्छेदों का बलात संशोधन करवाया और भारत जो लोकतंत्र के मातृका है ,पर आपातकाल लगाकर लोकतांत्रिक मूल्यों और आदर्शों पर कुठाराघात किया था। वैश्विक स्तर पर तत्कालीन लोकतंत्र को’ नियंत्रित लोकतंत्र’ और ‘ संरक्षित लोकतंत्र ‘ कहा गया था। वर्तमान में लोकतंत्र के मंदिर और वैश्विक स्तर पर श्री राहुल गांधी जी का घड़ियाली और बहरूपिया व्यक्तित्व है कि अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र-राज्यों से भारत के आंतरिक मामलों पर कुछ क्यों नहीं बोलते हैं?, का निवेदन कर रहे हैं।

जॉर्ज सोरोस  उस अधिनायक वादी और साम्राज्यवादी विचारधारा के प्रतीक हैं, जो अपने पूंजीवादी विचारधारा ,वैश्विक दृष्टिकोण और व्यापारिक-राजनीतिक हितों के लिए इतिहास, संस्कृति और राजनीतिक संस्कृति में बदलने के लिए आमदा है। इनकी कुंठित सोच भारत के राष्ट्रवादी तत्वों की आलोचना एवं विकासशील देशों के आंतरिक संबंधों में हस्तक्षेप करके विक्षोभ  करना है। भारत वैश्विक स्तर पर उभरता नेतृत्व के साथ वैश्विक स्तर पर औपनिवेशिक स्तर पर शोषित राष्ट्र-राज्यों का प्रबल समर्थक हैं, जिनको जलवायु,भूमंडलीय तापन ,वैश्विक दरोगा राष्ट्रों से सुरक्षा एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा करके उनको संगठित करके वैश्विक मंच प्रदान कर रहा है कि वह जलवायु न्याय, प्रदूषण कारक और वित्तीय समावेशन की दिशा में अग्रसर हो सके। 

 इन सभी का हथियार  संस्कृति,सामाजिक, मजहबी और आर्थिकी  पर गाढ़ा जाने वाला विमर्श है। विदेशी शक्तियां लक्षित  राष्ट्र- राज्यों में बिकाऊ,अपरिपक्व और अगंभीर लोगों (राजनीतिक व्यक्तियों, बौद्धिक व्यक्तियों और आध्यात्मिक व्यक्तियों का समूह) समूह खड़ा करती हैं जो लोग संकेत मिलते ही उनके बनाए विमर्श पर अपने राष्ट्र-राज्य को  विरूपित करना प्रारंभ कर देते हैं । इससे राज्य की राजनीतिक और  वैदेशिक परिदृश्य बदलने लगता है और निर्वाचित सरकारों (वैध सरकारें) विक्षोभित होने लगती है। इन सबको विक्षोभित  होने से  बचाने के लिए अपनी मानसिकता बदलने से ही संभव है।

किसी भी राष्ट्र – राज्य के नागरिकों के लिए इतिहास महत्वपूर्ण अव्यय होता है ।इतिहास को जानना मतलब अपने परंपराओं ,संस्कृति और मूल्यों को जीवटता प्रदान करना है। वैश्विक स्तर पर हमारा इतिहास मानवीय सहिष्णुता का मानवीय संप्रेषण करता है। परंपराएं सूखी हड्डियों पर मांस  चढ़ाती हैं और  संस्कृतियां मौलिक अवधारणाओं को ऊर्जावान मूल्य प्रदान करते हैं।

 भारतीय अर्थव्यवस्था को 1991 के आर्थिक सुधारो के पश्चात कायाकल्प हुआ और 2014 के पश्चात तेजी से विकास करने का अवसर प्राप्त हुआ है। वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने को अग्रसर है और 2047 में प्रथम शक्ति होने की संभावना है। वैश्विक स्तर की राजनीति में भारत राष्ट्र-राज्यों में अग्रिम पंक्ति में है । इस स्थिति में कुंठित औपनिवेशिक शक्तियों भारत के उभरते राष्ट्र- राज्य और आर्थिक महाशक्ति बनने में रोड़ा बन रही है  बड़े अफसोस की बात है कि भारत का एक वर्ग ऐसा है जिसने इतिहास और संस्कृति से कुछ नहीं सीखा और वह सत्तालोलुपता  के लिए पुरानी गलतियां ही दोहरा रहे हैं। वैश्विक गुरु, वैश्विक महाशक्ति और विकसित राष्ट्र बनाने के लिए इस वर्ग को अपनी कुंठित मानसिकता को बदलना होगा। मानसिकता बदलाव की अति आवश्यकता