राजेश कुमार पासी

राहुल गांधी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान जो बयान दिए, उन पर भारत में जबरदस्त राजनीति हो रही है। जहां उनके बयान काफी विवादास्पद हैं, वहीं दूसरी ओर इसके विरोध में दिए गए कुछ नेताओं के बयान भी विवादस्पद हैं। राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं इसलिये सत्ताधारी भाजपा के नेता उनके बयानों पर नजर रखते हैं और उन्हें राजनीति का मुद्दा भी बनाते हैं। ऐसा दोनों तरफ से होता है और इसमें कुछ गलत नहीं है । ये राजनीति का एक हिस्सा है। मेरा मानना है कि हर मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए । आज देश में ऐसे सामाजिक,धार्मिक और आर्थिक मुद्दों पर भी राजनीति होने लगी है, जिस पर पहले राजनीतिक दल राजनीति करने से बचते थे । विदेश नीति पर राजनीति से हमेशा राजनीतिक दल राजनीति करने से बचते रहे हैं लेकिन अब राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही विदेश नीति पर भी राजनीति करने लगे हैं। जहां सत्ता पक्ष विदेश नीति का राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष उसे ये फायदा उठाने से रोकना चाहता है। इन दोनों की कोशिश से देश का नुकसान हो रहा है । सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं है राहुल का बयान

मेरा मानना है कि सत्ता पक्ष को ऐसी कोशिश से बचना चाहिए क्योंकि अगर विदेश नीति बढ़िया है और देश को फायदा हो रहा है तो उसके बिना कहे ही उसका राजनीतिक लाभ मिलेगा । जहां तक विपक्ष की बात है, वो सरकार की नीतियों का विरोध करते-करते देश विरोध तक पहुंच जाता है । अगर विपक्ष के कारण देश का नुकसान होता है तो विपक्ष को नुकसान उठाना पड़ेगा और उसकी छवि देश विरोधी की बनेगी । विपक्ष को तो ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि अगर सरकार अच्छी नीतियां बना रही है तो उसे सहयोग करना चाहिए। नकारात्मक राजनीति के दौर में ऐसा सोचना भी व्यर्थ है। 

      राहुल गांधी के अमेरिका में दिए गए बयानों पर भाजपा राजनीति कर रही है तो इसमें कोई नई बात नहीं है लेकिन भाजपा अगर राजनीति न करे तो क्या ये मुद्दा खत्म हो जाता है। राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर जो बयान दिए हैं, उनके बारे में कहा जा रहा है कि आज डिजिटल दुनिया मे कहीं भी कुछ भी कहा जाए वो सब जगह पहुँच जाता है, इसलिये राहुल समर्थक कहते हैं कि राहुल देश में बोले या विदेश में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनका यह तर्क सही है कि आज की दुनिया में कहीं भी कुछ बोला जाए तो वो कुछ ही मिनटों में पूरी दुनिया में फैल जाता है। मेरा कहना है कि यह सही है कि दुनिया के एक कोने में बोली गई बात बहुत जल्दी दूसरे कोने में चली जाती है लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि किस व्यक्ति ने, क्या बोला है और कहां बोला है, ये बहुत महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, उनकी आवाज कांग्रेस की आवाज है।

वो जो भी बोलते हैं, उसे दुनिया ध्यान से सुनती है, बेशक उस पर वो चर्चा करे या न करे । आज वो विपक्ष के नेता हैं और एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष के नेता का पद प्रधानमंत्री के बाद दूसरे नेता का पद माना जाता है। राहुल गांधी जब देश में बोलते हैं तो वो कांग्रेस के नेता के रुप में बोल रहे होते हैं लेकिन जब वो विदेशी धरती पर चले जाते हैं तो वो भारत की तरफ से बोल रहे होते हैं। भारत की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का नेता विदेश में एक तरह से भारत का प्रतिनिधि होता है। वो जो भी बोलता है, उसे भारत की आवाज माना जायेगा । जब राहुल गांधी विपक्ष के नेता नहीं थे, तब भी वो अनौपचारिक रूप से विपक्ष के ही नेता थे । कांग्रेस को ये बात समझनी होगी कि देश में राहुल बिना सोचे समझे जो बोलते हैं, वो देश तक तो फिर भी ठीक है लेकिन विदेश में इस तरह से बोलना देश के लिए घातक साबित हो सकता है। 

       राहुल अपनी जिम्मेदारियों को समझ नहीं रहे हैं या जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। वो जो बोलते हैं, उसके लिए कोई तथ्य और तर्क नहीं रखते । उनकी आदत है कि वो कुछ भी बोलकर निकल जाते हैं । वो अपने दिए गए बयानों पर कभी स्पष्टीकरण नहीं देते । उनका ये रवैया विदेश में भी जारी रहता है। सिक्खों को लेकर दिए गए उनके बयान की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा कि वो ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं जिससे सिक्खों के पगड़ी और कड़ा पहनने की आज़ादी को छीना नहीं जा सके । उन्होंने कहा कि वो नहीं चाहते हैं कि सिक्खों को गुरुद्वारे जाने से रोका जाए ।

उन्होंने किसी एक भी ऐसी घटना का जिक्र नहीं किया, जहां सिक्खों के साथ ऐसा कुछ हुआ हो । उनके बयान से यह संदेश जा रहा है कि भारत में सिखों को अपने धर्म के अनुसार जीने नहीं दिया जा रहा है। भारत में कांग्रेस नेता अब उनके बयान का बचाव करने पर उतर आए हैं। वो कह रहे हैं कि राहुल गांधी सही कह रहे हैं कि सिखों के साथ गलत हो रहा है । देखा जाए तो अब कांग्रेस राहुल के बयान को दायें-बायें करके सही सिद्ध करने में लग गयी है । अमेरिका में भारत विरोधी गतिविधियों में लगा हुआ खालिस्तान समर्थक नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू कहता है कि राहुल गांधी सही कह रहे हैं. भारत में 1947 से सिक्खों के साथ गलत व्यवहार हो रहा है और हम उसके खिलाफ ही लड़ रहे हैं। अब देखा जाए तो मोदी तो सिर्फ दस साल से सत्ता में है, इसका मतलब है कि इससे पहले 67 साल तक कांग्रेस के शासन के दौरान सिक्खों के उत्पीड़न के लिए गांधी परिवार जिम्मेदार है। दिल्ली दंगो में हज़ारों सिक्खों की मौत के लिए तो सीधे ही गांधी परिवार की जिम्मेदारी बनती है।  अगर पन्नू राहुल गांधी के बयान का फायदा उठाकर अपनी भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ाने में कामयाब होता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। 

         राहुल गांधी एक जिम्मेदार पद पर हैं, इसलिये उन्हें सोच समझ कर बोलना चाहिए । जब उन्हें पता चल गया है कि उनके बयान का फायदा देश विरोधी शक्तियां उठा रही हैं तो उन्हें अपने बयान पर सफाई देनी चाहिए थी कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है ।  उनकी चुप्पी बता रही है कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि उनके बयान से देश विरोधी शक्तियों को मदद मिल रही है। अडानी के खिलाफ उनकी मुहिम का असर केन्या में देखने को मिला है। वहां अडानी को मिले एक एयरपोर्ट रखरखाव के ठेके के खिलाफ मजदूर यूनियन उतर आई हैं और कह रही हैं कि जो अपने देश में फ्रॉड कर रहा है उस पर हम क्यों विश्वास करें।  इसका फायदा वहां चीनी कंपनियां उठा रही हैं। देखा जाए तो राहुल के बेसिरपैर के आरोपों की कीमत विदेश में हमारे एक उद्योगपति को चुकानी पड़ रही है और फायदा दूसरे देश को हो रहा है।

मुस्लिम देशों को अंतरराष्ट्रीय मंचो पर विपक्ष के मुस्लिम उत्पीड़न के शोर के कारण भारत को घेरने का मौका मिलता है। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ भेजे गए अपने एक डोजियर में राहुल के बयानों का जिक्र किया था। मेरा मानना है कि राहुल गांधी को अपने पद के अनुरूप सोच समझ कर बोलने की जरूरत है । अगर उनके बयानों से देश को नुकसान होता है तो उन्हें भी उसका राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ेगा। विदेशी धरती पर उन्हें विशेष ध्यान रखने की जरूरत है क्योंकि वो वहां देश के प्रतिनिधि होते हैं। सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं है राहुल का बयान