आखिर किसके इशारे पर निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की मेहनत पर पानी फेरा…?जोशी की सेमिनार से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी दूरी बनाई। समितियों की बैठक में उपस्थिति दर्ज करवाने के बाद भी कांग्रेस के विधायक सेमिनार में नहीं आए।
16 जुलाई को राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्थान शाखा की ओर से विधानसभा में महामारी और लोकतंत्र के समक्ष चुनौती विषय पर एक सेमिनार हुई। चूंकि राज्यों में संघ के अध्यक्ष विधानसभा के अध्यक्ष होते हैं, इसीलिए सेमिनार को सफल बनाने में विधानसभा सीपी जोशी ने कड़ी मेहनत की। जोशी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने सेमिनार के आरंभिक सत्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम को बुलाया तो समापन सत्र में भाजपा और संघ के विचारक विनय सहस्त्रबुद्धे का संबोधन करवाया।
चिदंबरम और सहस्त्रबुद्धे ने अपने अपने राजनीतिक नजरिए से विचार भी रखे, लेकिन कोई विवाद नहीं हुआ। लेकिन समापन सत्र की अंतिम कड़ी में जब संसदीय संघ की प्रदेश शाखा के सचिव की हैसियत से निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा को आभार प्रकट करने का अवसर मिला तो भाजपा विधायकों का हंगामा हो गया। असल में लोढ़ा ने अतिथियों का आभार प्रकट करने के बजाए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोल दिया। लोढ़ा ने आरोप लगाया कि गत वर्ष जनवरी-फरवरी में विदेश से आने वाली फ्लाइटों पर केन्द्र सरकार ने रोक लगाने में विलंब किया, इसलिए कोरोना वायरस देश भर में फैल गया। लोढ़ा ने जिस राजनीतिक अंदाज में यह बात कही उससे प्रतीत हो रहा था कि सेमिनार में हंगामा करना चाह रहे हैं।
जब भाजपा विधायकों ने खड़े होकर नाराजगी जताई तो लोढ़ा का मकसद पूरा हो गया। सवाल उठता है कि जिस सेमिनार की सफलता के लिए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इतनी मेहनत की उसे किसके इशारे पर बिगाड़ा गया? सब जानते हैं कि लोढ़ा प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्के समर्थक हैं। पिछले 12 निर्दलीय विधायकों की बैठक करवाने में भी लोढ़ा का ही नेतृत्व रहा। भले ही बैठक सीएमआर की पहल पर हुई, लेकिन बैठक का नेतृत्व लोढ़ा ने किया। संसदीय संघ की प्रदेश शाखा का सचिव भी लोढ़ा को ऊपर की सिफारिश पर ही बनाया गया है।
मुख्यमंत्री ने बनाई दूरी:-
सेमिनार के दोनों सत्रों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उपस्थित रहना था, लेकिन ऐन मौके पर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर गहलोत ने सेमिनार में शामिल होने से इंकार कर दिया। यह बात अलग है कि सीएम गहलोत ने वर्चुअल तकनीक से जोधपुर और अन्य स्थानों के कार्यक्रमों में भाग लिया। इन कार्यक्रमों में गहलोत का संबोधन भी हुआ। यदि सही मायने में स्वास्थ्य खराब होता तो सीएमआर में होने वाली बैठकों और वीडियो कॉन्फ्रेंस में भी मुख्यमंत्री भाग नहीं पाते। जानकार सूत्रों के अनुसार सेमिनार के दोनों प्रमुख वक्ताओं से वैचारिक मतभेदों के चलते सीएम ने सेमिनार से दूरी बनाई। चिदंबरम भले ही कांग्रेस के नेता हो, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर चिदंबरम सवाल उठाते रहे हैं, इसलिए चिदंबरम गांधी परिवार के विरोधी माने जाने वाले कांग्रेस के जी 23 समूह के सदस्य हैं। संभवत: यही वजह रही कि गहलोत ने चिदंबरम से मुलाकात तक नहीं की। सेमिनार के समापन सत्र में जिस तरह हंगामा हुआ उससे गहलोत के समर्थक खुश हो सकते हैं। ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सीपी जोशी में कोई मतभेद हो गए हों, लेकिन सब जानते हैं कि जोशी अपने मिजाज के राजनेता हैं और उन्हें काम बिगाडऩे या उनकी बात नहीं मानने वाले व्यक्ति कतई पसंद नहीं है। इस मिजाज की वजह से जोशी को राजनीति में काफी नुकसान भी उठाना पड़ा है।
सेमिनार में नहीं आए कांग्रेस के विधायक:-
सीपी जोशी की पहल पर आयोजित इस सेमिनार में अधिक से अधिक विधायक भाग ले सकें, इसलिए 16 जुलाई को विधानसभा की विभिन्न समितियों की बैठक भी रखी गई। इन बैठकों में भाग लेने पर विधायकों को हजारों रुपए का भत्ता मिलता है। विधायकों ने बैठक के उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर किए, लेकिन सेमिनार में भाग नहीं लिया। इससे ज्यादातर कांग्रेस के विधायक थे। सीएम गहलोत के नहीं आने से कांग्रेस के अधिकांश विधायकों की सेमिनार से रुचि खत्म हो गई। सचिन पायलट के समर्थक विधायकों की संख्या तो नहीं के बराबर थी। हालांकि सेमिनार में पूर्व विधायकों को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन पूर्व विधायकों ने भी रुचि नहीं दिखाई। गहलोत सरकार के प्रमुख मंत्री भी सेमिनार में उपस्थित नहीं हुए।