खाकी के खिलाफ कुछ ज्यादा ही सख्त हैं-योगी

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भ्रष्ट नौकरशाही और कामचोर पुलिस वालों पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से फेल नजर आ रही है। जिस वजह से कई मोर्चो पर सरकार की फजीहत हो रही है। एक तरफ सरकारी सिस्टम में खामियों के चलते जनता प्रलाप कर रही है तो दूसरी ओर प्रदेश में  बढ़ते अपराध और बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष योगी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। यह स्थिति तब है जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ बिगड़ती कानून व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरों टॉलरेंस की राह पर चलते हुए बीते करीब साढ़े 3 साल में कई बड़े अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुके हैं। चाहे नौकरशाह हों या पुलिस वाले अथवा डाक्टर-इंजीनियर, भ्रष्टाचार सामने आने पर सभी कार्रवाई की चपेट में आ रहे हैं।

आज की तारीख में ऐसे लोगों की संख्या 800 के करीब तक पहुंच गई है। योगी सरकार द्वारा पूर्ववर्ती सरकारों के समय  सत्ता के रसूख में दबा दिए गए पुराने मामलों को तो खंगाला ही गया, घोटाले में शामिल रहे लोगों की पेंशन तक रोकी गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ चैतरफा वार कर रहे हैं। यह अहसास तब और मजबूत हो गया जब उन्होंने भ्रष्टाचार के चलते निलंबित किए गए प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित और महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार की सम्पति की विजलेंस जांच के आदेश दे दिए। दोनों अधिकारियों पर जिलों में थानेदारों की तैनाती में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर धन उगाही के आरोप हैं।इसी प्रकार कोरोना काल में कुछ जिलों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाए बेहतर बनाने के नाम पर ऑक्सीमीटर और इंफ्रारेड थर्मामीटर की अनाप-शनाप कीमत पर खरीददारी में भ्रष्टाचार की बू आते ही सीएम ने जांच बैठाने में देरी नहीं की। एसआईटी  गठित करके दस दिन में दोषियों के बारे में रिपोर्ट देने को कहा गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को अमली जामा पहनाने हुए शाहजहांपरु में डिप्टी आरटीओ के कार्यालय में छापा मारकर चर लाख रूपए नकद बरामद किए गए साथ ही 15 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी भी की गई।

राज्य सरकार विकास प्राधिकरणों में होने वाली धांधली को रोकने के लिए जल्द ही कुछ नई व्यवस्था लागू करने जा रही है। इसमें विकास प्राधिकरणों और आवास विकास परिषद में होने वाले बड़े कामों की ‘थर्ड पार्टी’ से जांच की तैयारी की जा रही है। वैसे सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के निलंबन और जांच का सिलसिला कोई नया नहीं है। पिछले साढ़े तीन वर्षों में योगी सरकार अलग-अलग विभागों के 325 से ज्यादा अफसरों और कर्मचारियों को निलंबन और डिमोशन जैसे दंड दिए। इसमें ऊर्जा, गृह, परिवहन, राजस्व, बेसिक, शिक्षा, पंचायतीराज, पीडब्ल्यूडी, श्रम, संस्थागत वित्त, कमर्शियल टैक्स, मनोरंजन कर, ग्राम्य विकास विभाग और वन विभाग के तमाम अधिकारी शामिल हैं। इसी प्रकार कुछ दिनों पूर्व योगी सरकार ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए सात पीपीएस अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई की थी। सभी पीपीएस अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी। ग्राम विकास अधिकारी पद पर नियुक्ति में नियमों की अवहेलना करने वाले बदांयू, शाहजहांपुर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी एवं कासगंज के जिला विकास अधिकारियों को निलंबित किया गया है।

यही नहीं, 44 करोड़ की वित्तीय अनियमितता के आरोपी लोकनिर्माण विभाग के बस्ती में तैनात रहे अधिशासी अभियंता को बर्खास्त कर दिया गया है। पर्यटन विभाग, आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने पर लखनऊ के पूर्व मुख्य लेखाधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया है। वहीं परफार्मेंस ग्रांट मामले में भी सख्त कदम उठाते हुए योगी सरकार ने पूर्व निदेशक पंचायतीराज को पद पर रहते हुए भारत सरकार की गाइडलाइन व शासनादेशों की अनदेखी कर आपात्र ग्राम पंचायतों को परफॉर्मेंस ग्रांट प्रदान करने के प्रकरण में केस दर्ज करने के निर्देश दिए। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में कार्यरत सहायक निदेशक स्तर के एक अधिकारी को अनुशासिक जांच में दोषी पाए जाने पर सेवा के मूल पर पदावनत कर दिया गया।  बात उन दो निलंबिब आईपीएस  अधिकारियों की कि जाए जिनकी सम्पति की जांच विजिलेंस से कराने का आदेश योगी सरकार द्वारा दिया गया हैं तो, विजलेंस जांच की बात सामने आने से पुलिस महकमें में खलबली मच गई है। उक्त दोनों आईपीएस अधिकारियों को पहले ही मुख्यमंत्री के निर्देश पर अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था में ढिलाई बरतने के अलावा भ्रष्टाचार के आरोप में एसएसपी प्रयागराज को निलंबित कर दिया गया था। इसी प्रकार महोबा के पुलिस अधीक्षक को भी भ्रष्टाचार के चलते निलंबित कर दिया गया है।

निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी सरकार की सख्त कार्रवाई प्रशंसनीय है।  खैर, एक तरफ योगी सरकार अधिकारियों को निलंबित कर रही है तो दूसरी तरफ इन अधिकारियों के सबूत नहीं मिल पाने के कारण बहाल होने में भी देरी नहीं लगती है। सहरानपुर में हुई हिंसा के मामले में तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे को निलंबित किया गया था। वर्तमान में वह डीआईजी आजमगढ़ के पद पर तैनात हैं। एसपी बाराबंकी रहें डॉ सतीश कुमार को एक निजी फर्म के संचालक से उनके यहां तैनात दारोगा द्वारा 65 लाख रूपये रिश्वत लेने के मामले में निलंबित किया गया था। क्लीनचिट मिलने के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया है। एसएसपी बुलंदशहर एन कोलांची व एसएसपी प्रयागराज रहे अतुल शर्मा को भी भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया था। हालांकि, बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया। उक्त दो आईपीएस और अन्य कुछ बड़े अधिकाकरियों के साथ करीब आधा दर्जन अन्य आईपीएस अधिकारियों पर भी निलंबन की ‘तलवार’ चली है। मणिलाल समेत वर्तमान में सात आईपीएस अफसर निलंबित चल रहे है। एडीजी जसबीर सिंह को मीडिया को दिए इंटरव्यूू में सरकार को लेकर टिप्पणी के बाद 14 फरवरी 2019 को निलंबित किया गया था।

डीआईजी दिनेश चंद्र दुबे को पशुपालन घोटाले के मुख्य आरोपित को ठेके दिलवाने में मदद के आरोप में निलंबित किया गया हैं।आईपीएस वैभव कृष्ण का एसएसपी नोएडा रहने के दौरान आपत्तिजनक विडियोंं वायरल हुआ था। इसके साथ ही उन पर गोपनीय चि_ी को लीक करने का आरोप लगा था। आईपीएस अपर्णा गुप्ता कानपुर में संजीत यादव अपहरण कांड में लापरवाही बरतने केे आरोप में निलंबित हुई हैं। आईपीएस अभिषेक दीक्षित को एसएसपी प्रयागराज रहते निलंबित किया गया। उन पर भी भ्रष्टाचार व लापरवाही के आरोप लगे थे।  बहरहाल, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं हैं जो योगी की जीरो टालरेंस पॉलिसी की नीति पर सवाल खड़ा करते हुए कह रहे हैं कि भ्रष्ट आईपीएस एवं अन्य अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है, यह अच्छी बात है,लेकिन दामन तो नौकरशाहों का भी कम दागदार नहीं है,परंतु उनके खिलाफ वैसी कार्रवाई नहीं हो रही है जिस तरह से आईपीएस बिरादरी को निशाना बनया जा रहा हैं।