रिश्वत के आरोपी दो एसडीएम की गिरफ्तारी के बाद दौसा जिले प्रशासन के कामकाज की भी जांच होनी चाहिए।पीडि़त व्यक्ति आमतौर पर जिला मुख्यालय पर ही शिकायत करता है। जब जिला मुख्यालय पर समाधान नहीं होता तो अधीनस्थ अधिकारियों को रिश्वत देनी ही पड़ती है।एसीबी की ताजा कार्यवाही सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक होगी।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने प्रभावी कार्यवाही करते हुए राजस्थान के दौसा जिले के एसडीएम पुष्कर मित्तल और बांदीकुंई उपखंड की एसडीएम पिंकी मीणा को रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। मित्तल को पांच लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा, जबकि पिंकी मीणा अपने दलाल के माध्यम से 10 लाख रुपए की रिश्वत ले रही थी। यह दौसा क्षेत्र में अने वाले दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस हाइवे के निर्माण में लगी कंपनियों से ली जा रही थी।
भ्रष्टाचार के इस गंभीर मामले में एसीबी ने दौसा के पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल के दलाल नीरज मीणा को भी गिरफ्तार किया है तथा अग्रवाल के मोबाइल जब्त कर जांच की जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एसीबी की कार्यवाही सराहनीय है। बीएल सोनी ने जब से एसीबी के डीजी का पद संभाला है, तब से बड़े अधिकारियों पर भी कार्यवाही हो रही है। इसमें एडीजी दिनेश एमएन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
सब जानते हैं कि जिले में जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब उपखंड स्तर पर किसी व्यक्ति को परेशानी होती है तो वह सबसे पहले जिला मुख्यालय पर शिकायत करता है। जिला मुख्यालय पर बैठै कलेक्टर, अतिरिक्त कलेक्टर आदि को परेशानी बताई जाती है। लेकिन जब जिला मुख्यालय पर समस्या का समाधान नहीं होता है तो पीडि़त व्यक्ति को एसडीएम अथवा अधीनस्थ अधिकारियों को रिश्वत देनी ही पड़ती है।
दौसा जिले के प्रकरण में एसीबी के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि जिला कलेक्टर के अधीन काम करने वाले एसडीएम पुष्कर मित्तल और पिंकी मीणा ने स्वयं रिश्वत ली या फिर अपने दलाल को देने के निर्देश दिए। यानि दौसा में एसडीएम स्तर के अधिकारी स्वयं ही रिश्वत की डील कर रहे थे, इससे दौसा के प्रशासनिक क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। हाईवे निर्माण में लगी कंपनी के अधिकारियों ने जिला मुख्यालय पर भी शिकायत की होगी।
एसीबी को अब ऐसी शिकायतों और उस पर हुई कार्यवाही की भी जांच करनी चाहिए। यदि एसीबी अपनी जांच में जिला मुख्यालय के काम काज को भी शामिल करती है तो दौसा प्रशासन के कई अधिकारी इस मामले में आरोपी बन सकते हैं। एसीबी जिस प्रकार दौसा के पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल के काम काज की जांच कर रही है उसी प्रकार दौसा के जिला प्रशासन के काम काज की भी जांच होनी चाहिए। क्या नाक के नीचे बेठे दो-दो एसडीएम के भ्रष्टाचार की जानकारी जिला मुख्यालय पर बैठे अधिकारियों को नहीं हुई?
हाइवे निर्माण कंपनी के जिन अधिकारियों ने एसडीएम की शिकायत की वो ही अधिकारी जिला मुख्यालय के अधिकारियों के बारे में भी जानकारी देंगे। कंपनी के अधिकारियों को जिला प्रशासन अपने अनुभव एसीबी से सांझा करने चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार का प्रतिनिधि जिला कलेक्टर होता है। किसी भी जिला प्रशासन का केन्द्र कलेक्टर का कक्ष ही होता है।
सरकार के सारे दिशा निर्देश कलेक्टर के माध्यम से ही जिले में उपखंड, तहसील स्तर तक पहुंचते हैं। एसडीएम को भी कलेक्टर के अधीन ही काम करना होता है। एसीबी को दौसा के जिला मुख्यालय के काम को जांच के दायरे में लेने के साथ साथ यह भी पता लगाना चाहिए कि पिंकी मीणा और पुष्कर मित्तल की एसडीएम पद पर नियुक्ति किस राजनेता की सिफारिश से हुई है।