अंतर्राष्ट्रीय फंड कहीं आतंकवाद का आर्थिक पुनर्जीवन तो नहीं..?

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अंतर्राष्ट्रीय फंड कहीं आतंकवाद का आर्थिक पुनर्जीवन तो नहीं..?
अंतर्राष्ट्रीय फंड कहीं आतंकवाद का आर्थिक पुनर्जीवन तो नहीं..?

IMF का ऋण या मानवता पर निवेशित बारूद..?
क्या पाकिस्तान को दिया गया अंतर्राष्ट्रीय फंड कहीं आतंकवाद का आर्थिक पुनर्जीवन तो नहीं..?

अशोक कुमार झा

जिस समय दुनियाँ आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट होने का दिखावा कर रही है, उसी समय एक ज़िम्मेदार अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आतंकवाद के सबसे बड़े पोषक को आर्थिक ऑक्सीजन दे रही हैं। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को जो $2.4 बिलियन का ऋण जो स्वीकृत किया  है, वह उस “राक्षस” को फिर से जीवित करने जैसा है जिसने न सिर्फ दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व की शांति को कई बार निगलने का प्रयास किया है क्योंकि हकीकत यह है कि पाकिस्तान को दिया गया 2.4 बिलियन डॉलर का ऋण महज़ एक आर्थिक पैकेज नहीं बल्कि आतंक को जिंदा रखने वाली ऑक्सीजन है। अभी पूरी दुनियाँ आतंकवाद से जूझ रही है. मासूम नागरिक आत्मघाती हमलों में मर रहे हैं, देश की सीमाएं अशांत हैं और सभ्यताएं घायल हैं. ऐसे समय में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने ऐसा निर्णय ले लिया है जो इतिहास के पन्नों में मानवता के सबसे खतरनाक फैसलों में गिना जाएगा।


पाकिस्तान: अब ‘देश’ नहीं, एक आतंकवादी प्रयोगशाला
जिसे दुनिया “पाकिस्तान” कहती है, अब वह इतना नापाक हो चुका है  कि अब पूरी दुनियाँ उसे  ‘आतंकिस्तान’ के नाम से जानने लगी है। साथ ही, यह उस कड़वी सच्चाई है कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, भारत, अफगानिस्तान, ईरान और स्वयं पाकिस्तान के नागरिक तक दशकों से यह भुगत रहे हैं।

·  यह वही पाकिस्तान है जहाँ अमरीका के वर्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करवाने बाला ओसामा बिन लादेन को सेना की छावनी से कुछ मीटर की दूरी पर शरण मिली थी।

·  जहाँ हाफिज सईद जैसे UN घोषित आतंकी को चुनावी दलों के मंच पर बुलाये जाते हैं।

·  जहाँ मसूद अजहर के आतंकी शिविर वहाँ की सरकार की सहमति से चलाए जाते हैं।

·  जहाँ ISI खुद एक आतंक को रणनीतिक साधन मानती है।

इस देश की सीमाओं के भीतर आतंकियों को आश्रय, प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग खुलेआम दिया जा रहा है। हाफिज सईद, मसूद अज़हर, दाऊद इब्राहिम, सैयद सलाउद्दीन जैसे कुख्यात आतंकी वहीं मौज कर रहे हैं जिसके आतंकी कारनामों से आज पूरी दुनियाँ जूझ रही है। यहाँ उसे न सिर्फ संरक्षण मिला हुआ है बल्कि सरकार समर्थित सारी सुविधाएं, सुरक्षा बल और संसाधन भी उपलब्ध कराये गये हैं।
यह वही मुल्क है जहाँ मस्जिदों और मदरसों की आड़ में आतंकी शिविर चलाए जाते हैं। जहाँ सीमा पार आतंकवाद को विदेश नीति का अंग बना दिया गया है। जहाँ से निकलने वाले आत्मघाती हमलावरों ने अफगानिस्तान, भारत, ईरान और यहाँ तक कि अमेरिका तक को लहूलुहान किया है। साथ ही, आज इस देश के अंदर राजनीति, सेना और धार्मिक उग्रवाद का ऐसा त्रिकोण बन चुका है जिसने इसे एक ‘आतंकी राष्ट्र’ के रूप में परिभाषित कर दिया है।


आज इस देश की नीतियों में यदि किसी शब्द की सबसे अधिक आवृत्ति हो रही है, तो वह है “जिहाद”। यह जिहाद शब्द आज न तो आत्मशुद्धि के लिए है और न ही सच्चाई के लिए, बल्कि यह निर्दोषों की हत्या, अल्पसंख्यकों के दमन, और लोकतांत्रिक मूल्यों के विनाश का सिर्फ एक औजार है।

·  कश्मीर घाटी में हो रहे सिलसिलेवार हमले,

·  अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जा,

·  भारत के खिलाफ दाऊद इब्राहिम के नेटवर्क का इस्तेमाल,

·  इज़राइल और ईरान के खिलाफ आतंकी योजनाएं,

इन सबकी जड़ें रावलपिंडी के सैन्य ठिकानों यानि देश की सेना मुख्यालय से जुड़ी हैं, जो पूरी दुनियाँ से आज छुपी नहीं है।
 IMF की मदद: आतंक के पुनर्जीवन का वैश्विक दस्तावेज़
IMF द्वारा पाकिस्तान को $7 बिलियन के कार्यक्रम के तहत दिए गए $1 बिलियन और जलवायु लचीलापन सुविधा (RSF) के तहत $1.4 बिलियन मिलाकर कुल $2.4 बिलियन की सहायता अब वैश्विक प्रश्न बन चुकी है क्योंकि IMF ने पाकिस्तान को यह राशि उस समय दे दी है जब उस देश की अर्थव्यवस्था पूर्णतः चरमरा चुकी है। वहाँ की सरकार किसी का कर्ज चुकाने में असमर्थ है, मुद्रास्फीति आसमान पर है और वहाँ के आम नागरिक दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है।
ऐसे में IMF द्वारा सहयोग किया गया आखिर यह धन कहां जाएगा, यह बड़ा प्रश्न है। क्या इस बात की कोई गारंटी है कि इस धन का उपयोग वहाँ की आम जनता की भूख, शिक्षा या स्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो IMF के सिद्धांतों के अनुकूल है ? इसका एक ही जवाब है, नहीं, क्योंकि इतिहास गवाह है – पिछली बार भी जब जब पाकिस्तान को IMF, वर्ल्ड बैंक या मित्र देशों से ऋण मिला, उसका उपयोग हुआ:

·  वहाँ का रक्षा बजट बढ़ाने में,

·  कश्मीर में आतंकवाद फैलाने में,

·  अफगान बॉर्डर पर तालिबान को सहायता देने में,

·  और आतंकी संगठनों को हथियार मुहैया कराने में।

·   

इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिया जा रहा यह ऋण ‘आर्थिक मदद’ नहीं, बल्कि ‘आतंक का पुनर्जीवन पत्र’ बन गया है क्योंकि ऐसे देश को किसी प्रकार की वित्तीय मदद देना उस शरीर को पुनर्जीवित करना है जिसकी नसों में खून नहीं, सिर्फ बारूद बहता है।


आज IMF का यह ऋण अब केवल आर्थिक नहीं, नैतिक और वैश्विक सुरक्षा का भी बड़ा प्रश्न बन चुका है क्योंकि इस तरह से खुलेआम आतंकियों को आपने घर में पालने बाले देश को आर्थिक सहायता पहुंचाना, आज ठीक उसी तरह है जैसे किसी आगजनी के आरोपी के हाथों में माचिस और पेट्रोल सौंप देना होता है।


क्या आतंकिस्तान के हाथों में परमाणु हथियारों का होना दुनियाँ के लिये सुरक्षित है?
यह प्रश्न अब तात्कालिक नहीं, बल्कि अनिवार्य हो गया है कि क्या एक ऐसे देश को परमाणु हथियार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए जिसने खुद को आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह बना रखा है? इस देश का परमाणु भंडार यदि कभी आतंकी हाथों में आ गया, तो यह मानवता के इतिहास में सबसे बड़ा विनाशक क्षण होगा। क्या संयुक्त राष्ट्र और G7 देशों की आँखें तब भी बंद ही रहेंगी?


आज यह परमाणु अस्त्र महज एक सैन्य हथियार  नहीं  बल्कि एक मानवता-विनाशक उपकरण हैं । पाकिस्तान आज दुनिया का सबसे अनिश्चित परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र है। जहां सरकार और सेना के बीच संघर्ष, सेना और मौलवियों के बीच गठबंधन, और ISI तथा आतंकवादियों के बीच तालमेल – यह सब किसी भी दिन एक बड़ी वैश्विक संकट को जन्म दे सकती है। साथ ही इस देश की राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरपंथी संगठनों की घुसपैठ और सैन्य-धार्मिक गठजोड़ को देखते हुए यह खतरा अत्यंत वास्तविक है।
एक बार सोच कर देखिये कि अगर कल पाकिस्तान का यह परमाणु हथियार गलती से भी किसी जेहादी गुट के हाथ लग जाए तो उसके बाद क्या होगा ?

·  क्या वॉशिंगटन, टोक्यो, लंदन, पेरिस सुरक्षित रहेंगे?

·  क्या संयुक्त राष्ट्र तब भी शांति के मंत्र को पढ़ता रहेगा?

·  क्या FATF अपनी “ग्रे लिस्ट” की सिर्फ औपचारिकताएं निभाता रहेगा?

ऐसे में आज नहीं तो कल, अगर पाकिस्तान को परमाणु अस्त्रों से विखंडित नहीं किया गया, तो यह मानवता के लिए कितना बड़ा घातक सिद्ध होगा, जिसकी अभी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
 हिंदुस्तान की आपत्ति: चेतावनी जिसे नज़रअंदाज़ किया गया
हिंदुस्तान ने IMF की वोटिंग से खुद को अलग रखते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि यह बेलआउट पैकेज आतंकवाद को आर्थिक संबल देने के समान है। भारतीय नीति निर्माताओं का तर्क है कि यह धनराशि आम नागरिकों की भलाई पर खर्च नहीं की जाएगी, बल्कि इसका उपयोग हथियार खरीदने, आतंकी संगठनों को प्रशिक्षित करने और सीमाओं पर अस्थिरता बढ़ाने में किया जाएगा, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया।  

 
वैश्विक मौन – एक आत्मघाती विरोधाभास
आज इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान को दिया गया कोई भी पैसा अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को सहयोग है। लेकिन दुःख की बात यह है कि अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान और ब्रिटेन जैसे देश, जो आतंक के विरुद्ध खड़े होने का हमेशा दावा करते रहते हैं, उन्होंने इस फंडिंग को अपना मूक समर्थन दे दिया।

·  क्या यह वैश्विक राजनीति की दोहरी मानसिकता नहीं?

·  क्या यह आतंकी संगठनों को अप्रत्यक्ष संरक्षण नहीं है?

·  क्या यह मानवता के साथ विश्वासघात नहीं है?

·   

दुनियाँ की चुप्पी या आतंक को मौन समर्थन?
पश्चिमी देशों की यह खामोशी अब चौंकाने वाली नहीं, बल्कि शर्मनाक बन चुकी है।

·  यह वही अमेरिका है जिसने 2011 में पाकिस्तान के अंदर घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था लेकिन फिर भी पाकिस्तान को “Non-NATO Ally” बनाए रखा।

·  यह जर्मनी और फ्रांस, जो युद्ध की विभीषिका के बाद शांति के लिए समर्पित होने का दावा करते हैं, वे भी IMF की फंडिंग पर चुप हैं।

·  संयुक्त राष्ट्र, जो हर वैश्विक मसले पर “deep concern” जताता है, वह भी पाकिस्तान की आतंकी राजनीति पर मौन साधे हुए है।

क्या यह मौन कूटनीतिक स्वार्थों का परिणाम है या पश्चिमी मूल्यों की गिरती हुई साख का संकेत?
अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और वैश्विक शांति के बड़े पैरोकार बने हुए हैं, आज पाकिस्तान की इस आतंकवादी नीतियों पर मौन क्यों हैं? क्या उनका आर्थिक या भू-राजनीतिक हित आज मानवता की कीमत पर ज्यादा भारी पड़ रहा है? कहीं यह अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को समर्थन तो नहीं?


अब नहीं जागे, तो फिर कोई नहीं बचेगा
यदि दुनियाँ अब भी नहीं जागी, तो वह दिन दूर नहीं जब लंदन, न्यूयॉर्क, पेरिस, टोक्यो और बर्लिन की सड़कों पर भी वही बारूद की गंध फैलेगी जो आज तक काबुल, श्रीनगर, गाज़ा और इस्लामाबाद में महसूस की जाती रही है क्योंकि IMF का यह ऋण कोई आर्थिक सहायता नहीं बल्कि मानवता के खिलाफ एक घातक निवेश है। यह निर्णय केवल एक ऋण समझौता नहीं, बल्कि एक आतंकी गठजोड़ को पुनर्जीवित करने वाला  दस्तावेज़ है क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म, राष्ट्र या भूगोल नहीं होता, इसका सिर्फ एक उद्देश्य होता है: विनाश


IMF, वर्ल्ड बैंक और G20 जैसे संस्थान अगर अब भी पाकिस्तान की आतंकी फंडिंग पर आँखें मूँदकर काम करेंगे तो इतिहास उन्हें आतंक के साझेदार के रूप में ही याद करेगा ।


 10 नीतिगत मांगें जो तुरंत लागू होनी चाहिए

1.  पाकिस्तान को IMF, वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थानों से सहायता देना तुरंत बंद हो।

2.  FATF उसे पुनः ‘ब्लैक लिस्ट’ में शामिल करे।

3.  संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान के परमाणु भंडार पर निगरानी रखे।

4.  सभी लोकतांत्रिक देश पाकिस्तान के साथ रक्षा और रणनीतिक सहयोग समाप्त करें।

5.  भारत, अमेरिका, इज़राइल और जापान जैसे देश ‘Anti-Terror Economic Coalition’ बनाएं।

6.  पाकिस्तान में आतंकी संगठनों के वित्तीय स्रोतों की वैश्विक निगरानी शुरू हो।

7.  संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान को एक आतंकवाद-प्रेरित राज्य घोषित करे।

8.  IMF के सहायता कार्यक्रम में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकी निरोध को शामिल किया जाए।

9.  पाकिस्तान में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत ध्वस्त किया जाए।

10.      पाकिस्तान के राजनयिक संबंधों पर पुनर्विचार किया जाए जब तक वह आतंक का परित्याग न करे।

IMF की नीतिगत भूल: आतंक को आर्थिक जीवनदान
IMF का मुख्य कार्य वैश्विक आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है लेकिन पाकिस्तान को बार-बार बेलआउट देने का निर्णय आज उसकी साख पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। यहाँ सवाल यह है कि IMF ने भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका, और फ्रांस की सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार क्यों कर दिया? साथ ही IMF ने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि इस धन का आखिर इस्तेमाल कहाँ होगा- सामाजिक विकास, स्वास्थ्य या शिक्षा के ऊपर या हथियारों की खरीद, आतंकी प्रशिक्षण शिविरों और जासूसी नेटवर्क के ऊपर? इससे तो यही लगता है कि यह आर्थिक मदद एक तरह से आतंकवाद का अप्रत्यक्ष बीमा है।


IMF का यह ऋण एक आर्थिक गलती नहीं, बल्कि वैश्विक विश्वासघात है
यह लेख किसी राष्ट्र के विरोध में नहीं है, बल्कि यह मानवता की रक्षा के लिए वैश्विक चेतावनी है। यदि अब भी IMF जैसे संस्थान अपने निर्णयों की समीक्षा नहीं करते तो यह न केवल आतंक को पुनर्जीवित करने जैसा होगा, बल्कि पूरी मानव सभ्यता को ही खतरे में डाल देगा।


IMF के इस ऋण से पाकिस्तान को नहीं, आतंकवाद को सीधा सीधा बल मिला है। और आतंकवाद को दी गई हर राहत, दुनियाँ के भविष्य को दी गई हर चुनौती है। IMF का यह ऋण अब एक आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि एक खामोश बम बन चुका है, जो न जाने कब, कहाँ और किस रूप में फट पड़ेगा। यह वक्त है कि दुनियाँ समझे कि “आतंकवाद तब तक नहीं रुकेगा जब तक वह आर्थिक रूप से ज़िंदा रहेगा। और जब तक पाकिस्तान को पैसा मिलता रहेगा, वह आतंक का पेट भरता रहेगा।”
अब वक्त आ गया है कि दुनियाँ आतंक के खिलाफ सिर्फ भाषण देना बंद करे और फैसला लेना शुरू करे। नहीं तो इतिहास हमें अपनी आँखें बंद कर महाभारत काल का धृष्टराष्ट्र बनने के लिये कभी माफ नहीं करेगा क्योंकि शांति सिर्फ शब्दों से नहीं, साहस से शांति आती है। साथ ही इतिहास का यह भी सबसे कड़वा सत्य है कि जब सभ्यताएं अन्याय पर चुप रहती हैं, तब वही चुप्पी अगली त्रासदी की नींव बन जाती है। अंतर्राष्ट्रीय फंड कहीं आतंकवाद का आर्थिक पुनर्जीवन तो नहीं..?