लखनऊ। अर्थव्यवस्था पर वित्त मंत्री द्वारा जारी किया गया श्वेत पत्र सच्चाई का वो आईना है जिससे कांग्रेस पार्टी के एक परिवार ने देश के सामने नहीं आने दिया था। यह श्वेत पत्र यह भी सिद्ध करता है कि कैम्ब्रिज, ऑक्सफ़ोर्ड या हार्वर्ड से निकले हुए अर्थशास्त्री या रिजर्व बैंक के गवर्नर देश की अर्थव्यवस्था को भी उसी तरह ऊंचाई पर लेकर जा सकते हैं, सच नहीं है। सच्चाई यह है कि जब एक गरीब का बेटा जिसने गरीबी को जीया है, गरीबी में पला-बढ़ा है, जिसमें दृढ़ इच्छाशक्ति हो, जिसके शरीर का क्षण-क्षण और जीवन का पल-पल देश के विकास के काम करने में बीतता हो, जिसमें देश को दुनिया में सबसे आगे ले जाने का जूनून हो, वह जब देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचता है तो न केवल इस पद की गरिमा बढ़ती है बल्कि गरीब कल्याण के साथ-साथ देश अर्थव्यवस्था में भी नए आयाम गढ़ता है। ये श्वेत पत्र इस बात की साक्षी है कि 2004 और 2014 के बीच की कांग्रेस की यूपीए सरकार की अवधि की तुलना में 2014 से 2024 तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में देश की अर्थव्यवस्था में कैसे सुधार हुआ। श्वेत पत्र सच्चाई का आईना-वित्तमंत्री
यूपीए ने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया, बल्कि यूं कहिये कि देश को लूटा। श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी सरकार से एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था विरासत में मिलने के बावजूद यूपीए ने देश की अर्थव्यवस्था को कैसे गैर-निष्पादित अर्थव्यवस्था में बदल दिया, इसकी जानकारी हमें इस श्वेत पत्र में मिलती है। जब श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कार्यभार संभाला, तब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में जी एनपीए का अनुपात 16.0 प्रतिशत था। और, जब उन्होंने पद छोड़ा था, तब यह 7.8 प्रतिशत था। सितंबर 2013 में, यह अनुपात सरकारी बैंकों के कमर्शियल लोन निर्णयों में यूपीए सरकार द्वारा राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण 12.3 प्रतिशत तक चढ़ गया था।
वर्ष 2014 में बैंकिंग संकट काफी बड़ा था। मार्च 2004 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा सकल अग्रिम केवल 6.6 लाख करोड़ रुपये था जबकि मार्च 2012 में यह 39.0 लाख करोड़ रुपये था। कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान देश की जो बदहाल आर्थिक स्थिति थी, उसका जिम्मेदार कहीं न कहीं उस वक्त सरकार का नेतृत्व कर रहे लोग भी थे। पीएम से लेकर सुपर पीएम तक। तब जो प्रधानमंत्री थे, उनको कोई प्रधानमंत्री मानने को तैयार नहीं था और उस सरकार में सब के सब मंत्री, अपने आप को प्रधानमंत्री समझते थे जो सुपर पीएम के आदेश पर काम कर रहे थे। परिणाम यह हुआ कि घोटाले पर घोटाले होते रहे, प्रधानमंत्री सब कुछ जानते हुए भी आँख मूंदे बैठे रहे।
देश ने उस वक्त 2जी घोटाला देखा, कोयला घोटाला देखा, अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला देखा, सत्यम घोटाला देखा, ट्रक घोटाला देखा, कॉमनवेल्थ घोटाला देखा, कैश फॉर वोट घोटाला देखा, आदर्श घोटाला देखा, शारदा चिटफंट घोटाला देखा, आईएनएक्स मीडिया मामला देखा, एयरसेल-मैक्सिस घोटाला देखा, एंट्रिक्स-देवास घोटाला देखा, लैंड फॉर जॉब घोटाला देखा। 15 घोटाले कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान 2004 से 2014 के कालखंड में हुए। हमारी सरकार ने आने के साथ ही लोगों को अच्छे लगने वाले निर्णयों की जगह ऐसे निर्णय लिए जो लोगों के लिए अच्छे हों। इसका हमने प्रतिफल भी देखा। हमने देखा कि शौचालय बनने से भी देश की जीडीपी बढ़ सकती है, लोगों के लिए घर बनाने से भी देश की जीडीपी बढ़ सकती है, घर में बिजली, पानी, गैस कनेक्शन, आयुष्मान कार्ड देने से भी देश की आर्थिक विकास दर में इजाफा हो सकता है।
तब देश ने 2जी घोटाला देखा अब, हमारे पास सबसे कम दरों के साथ 4जी के तहत आबादी का व्यापक कवरेज है और 2023 में दुनिया में 5जी का सबसे तेज़ रोलआउट है। उस वक्त हमारे पास ‘नीति-पक्षाघात‘ था; बुनियादी ढॉचा प्राथमिकता नहीं थी; अब, ‘निवेश, विकास, रोजगार और उद्यमिता, और बचत‘ के पुण्य चक्र के पहिये, जिससे अधिक निवेश और उत्पादकता हो, शुरू हो गया है। यूपीए शासन में भारत में दोहरे अंक में मुद्रास्फीति थी, अब मुद्रास्फीति को 5 प्रतिशत से थोड़ा अधिक पर लाया गया है। तब, हमारी अर्थव्यवस्था ‘ट्विन बैलेंस शीट समस्या‘ का सामना कर रही थी; अब, हमने अर्थव्यवस्था को कंपनियों के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र के लिए ‘ट्विन बैलेंस शीट लाभ‘ में बदल दिया है, जिसमें निवेश और ऋण बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता है। और रोजगार पैदा करें। तब की तुलना में बजटीय पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 24 (आरई) तक पांच गुना से अधिक बढ़ गया है बिना इसके बेसिक structure में फेरबदल किये बिना।
FDI यानी फर्स्ट डेवलप इंडिया। 2014-23 के दौरान 596 अरब डॉलर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश FDI आया। यह 2005-2014 के दौरान आए FDI से दोगुना था। हम विदेशी पार्टनर्स से बाइलैट्रल इनवेस्टमेंट ट्रीटी (द्विपक्षीय निवेश के लिए समझौता) कर रहे है। बेलगाम राजकोषीय घाटे ने देश की अर्थव्यवस्था को एक आर्थिक संकट की ओर ढकेल दिया। अपने राजकोषीय कुप्रंधन की वजह से यूपीए सरकार का राजकोषीय घाटा अंत में अपेक्षा से कहीं ज्यादा हो गया, और बाद में यह 2011-12 में अपने बजट की तुलना में बाजार से 27 प्रतिशत अधिक उधार लेने लगी। आज राजकोषीय घाटे को हम तमाम चुनौतियों के बावजूद 5 प्रतिशत के आसपास रखने में सफल हुए हैं। आज जीएसटी व्यवस्था संघवाद का नायाब उदाहरण के रूप में स्थापित हुआ है क्योंकि अब तक जीएसटी काउंसिल में सभी निर्णय सर्व सहमति से लिए गए हैं, मतलब सभी राज्यों की सहमति से ही नीतियां बनी हैं और उसका implementation हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने पिछली सरकार द्वारा छोड़ी गई चुनौतियों पर सफलतापूर्वक काबू पाया है। जैसा कि श्वेत पत्र में कहा गया है-अभी मीलों चलना है और लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले चुनौतियों के कई पहाड़ों को पार करना है। अमृत काल अभी शुरू हुआ है और हमारी मंजिल 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। इसलिए यह हमारा कर्तव्य काल है। बजाय अर्थव्यवस्था की गति को तेज करने और इसके लिए सकारात्मक माहौल बनाने के, कांग्रेस की यूपीए सरकार ने बाधाएं उत्पन्न कीं, जिससे अर्थव्यवस्था अपनी उम्मीद से काफी पीछे रह गई। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद वित्त वर्ष 2009 और वित्त वर्ष 2014 के बीच छह वर्षों के लिए उच्च राजकोषीय घाटे ने सामान्य और गरीब परिवारों पर दुखों का अंबार लगा दिया। 2009 से 2014 के बीच महंगाई चरम पर रही और इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ा।
यूपीए सरकार में, विदेशी मुद्रा भंडार जुलाई 2011 में लगभग 294 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर अगस्त 2013 में लगभग 256 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई थी। आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार लगातार 600 अरब डॉलर से अधिक बना हुआ है। यूपीए सरकार के तहत निराशाजनक निवेश माहौल के कारण घरेलू निवेशक विदेश जाने लगे। यूपीए सरकार में बार-बार नेतृत्व का संकट पैदा होता रहा। सरकार द्वारा जारी एक अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से फाड़ने की शर्मनाक घटना सामने आई। यह तो स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह सरकार के दस साल का कार्यकाल आर्थिक कुप्रबंधन, वित्तीय अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार का कालखंड था। तब हमने खराब स्थिति पर श्वेत पत्र लाने से परहेज किया। अगर तब ऐसा किया होता तो निवेशकों समेत कई लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता और इससे आर्थिक व्यवस्था पर असर पड़ता।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गरीबी की समस्या का समाधान ढूंढने में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रतीक है। आज देश के वंचित तबके तक स्वच्छ जल, भोजन, बिजली और शैक्षिक अवसरों की पहुंच को सुगम बनाया गया है। इस सकारात्मक बदलाव का श्रेय माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता और अथक प्रयासों के साथ केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई पीएम आवास योजना, जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत अभियान और पीएम उज्ज्वला योजना के प्रभावी कार्यान्वयन को जाता है। श्वेत पत्र सच्चाई का आईना-वित्तमंत्री