भारत-चीन को साथ लेकर क्या संदेश दे रहे पुतिन

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भारत-चीन को साथ लेकर क्या संदेश दे रहे पुतिन
भारत-चीन को साथ लेकर क्या संदेश दे रहे पुतिन

राजेश कुमार पासी

ग्लोबल राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले पांच सालों से भारत और चीन के बीच तनाव खत्म होता दिखाई नहीं दे रहा था। लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं पिछले पांच साल से आमने-सामने खड़ी हुई हैं। यह डर हमेशा सताता रहा है कि इन परिस्थितियों में कभी भी कोई अनहोनी घट सकती है। चीन और भारत के व्यापार संबंधों पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। भारत-चीन को साथ लेकर क्या संदेश दे रहे पुतिन

भारत-चीन व्यापार पर असर पड़ने के कारण चीन की कोशिश थी कि भारत सीमा विवाद को किनारे रखकर व्यापारिक संबंधों को सही करे लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से चीन को कह दिया था कि व्यापार सामान्य करने के लिए जरूरी है कि सीमा पर भी सामान्य हालात पैदा किये जायें। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ग्लोबल राजनीति बड़ी तेजी से बदल रही है। इस युद्ध के अभी खत्म होने के आसार दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ इजराइल और ईरान के प्रॉक्सी आतंकवादी संगठनों के बीच एक नया युद्ध शुरू हो गया है। इजराइल पर ईरान के बड़े हमले के बाद अब ईरान और इजराइल के बीच सीधा युद्ध होने की संभावना बहुत बढ़ गई है।

इन हालातों में ब्रिक्स देशों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ है। इस सम्मेलन के आयोजन से पहले एक बड़ी खबर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है और वो खबर है, भारत और चीन ने सीमा पर बढ़ रहे तनाव को खत्म करके अपनी सेनाओं को 2020 से पहले वाली जगहों पर भेजने का फैसला कर लिया है। ये अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से कई दौर की बातचीत के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने एक बयान में कहा है कि इतनी लंबी वार्ता के बाद हम कई बार निराश हो चुके थे लेकिन हमने धैर्य बनाये रखा। अमेरिका और पश्चिमी देश इससे बड़े अचंभित हैं कि अचानक चीन ने पीछे हटने का फैसला कैसे कर लिया। चीन का ये स्वभाव ही नहीं है, वो एक बार आगे कदम बढ़ा कर वापस पुरानी जगह पर नहीं जाता। भारत के मामले में चीन ने ऐसा दो बार किया है कि आगे बढ़ कर पीछे हट गया है।

      ब्रिक्स सम्मेलन में भारत और चीन नजदीक आते दिखाई दिए हैं और इसके पीछे रूस के राष्ट्रपति पुतिन का बड़ा हाथ है । रूस में ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हो रहा था और इस आयोजन के सफल होने में भारत और चीन के बीच चल रहा तनाव बड़ी रुकावट बन सकता था । पुतिन ने अपनी कूटनीति से इस तनाव को कम करके पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा दी है । पांच साल बाद भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व का बातचीत की टेबल पर आना पुतिन की बड़ी सफलता माना जा रहा है। वास्तव में भारत और चीन के बीच बढ़ता तनाव पुतिन के लिए चिंता का सबसे बड़ा विषय है । यही दोनों देश हैं जिनके कारण रूस अमेरिका और उसके साथी देशों के लगाये प्रतिबंधों का सफलतापूर्वक सामना कर रहा है । रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की कोशिश इसलिए कामयाब नहीं हो पाई है क्योंकि भारत-चीन जैसे दो बड़े देश रूस के साथ खड़े रहे हैं।

रूस की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की अमेरिकी कोशिश इसलिए बेकार चली गई है क्योंकि भारत और चीन ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया है। भारत ने तो रूस से तेल आयात इतना बढ़ा दिया है कि आज कई देशों को भारत से पेट्रोलियम उत्पादों को निर्यात किया जा रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देश जानते हैं कि चीन किसी की परवाह  नहीं करता इसलिए उस पर इन देशों ने दबाव बनाने की कोशिश कभी नहीं की लेकिन भारत पर इन देशों ने लगातार यह दबाव बनाया है कि वो रूस से तेल खरीदना बंद कर दे। भारत ने इसका कई बार सीधा जवाब दिया है कि रूस से तेल खरीद कर वो रूस की नहीं बल्कि अपनी मदद कर रहा है। भारत ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि उसका रूस से तेल खरीदना दुनिया के हित में है क्योंकि इससे तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगी है। वजह कुछ भी हो लेकिन ये देश जानते हैं कि भारत की वजह से रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध असफल हो गये हैं । 

  मोदी ने कहा था कि हम आँख से आँख मिलाकर बात करेंगे, आँख दिखाकर बात नहीं करेंगे।  यूरोप और अमेरिका भूल जाते हैं कि इस भारत को आंखें दिखाना बर्दाश्त  नहीं है. आंख मिलाकर ही बात की जा सकती है । जिस बात को अमेरिका और उसके साथी देश अभी तक समझ नहीं पाये हैं, उस बात को पुतिन चीन को समझाने में कामयाब रहे हैं । पुतिन बहुत परेशान हैं और वो अपने खिलाफ हो रही लामबंदी को देख रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ वो खुद को अकेला पा रहे हैं । यूक्रेन से युद्ध के दौरान उन्हें भारत और चीन का साथ मिला है।  रूस की बड़ी समस्या यह है कि उसके दोनों मित्रों के आपसी संबंध अच्छे नहीं है। चीन से बिगड़ते संबंधों के कारण ही अमेरिका भारत को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहा है। पुतिन अच्छी तरह जानते हैं कि भारत पूरी तरह से उसके साथ नहीं हैं और वो रूस और अमेरिका के बीच एक संतुलन साधकर चल रहा है।

भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों की अनदेखी कर रहा है लेकिन चीन भारत की बड़ी समस्या है। चीन के कारण भारत कभी भी अमेरिकी खेमे में जा सकता है और अमेरिका इसकी पूरी कोशिश कर रहा है । भारत भी अमेरिकी दबाव को महसूस कर रहा है और इससे छुटकारा पाना चाहता है । चीन अच्छी तरह से जानता है कि अमेरिका उसे घेरने की कोशिश कर रहा है और अगर भारत अमेरिका के साथ चला जाता है तो उसके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। बंग्लादेश में तख्तापलट ने भारत और चीन दोनों को परेशान कर दिया है । अब दुनिया अच्छी तरह जान चुकी है कि बांग्लादेश के सत्ता परिवर्तन में अमेरिका का बड़ा हाथ है।  पुतिन चीन को समझाने में कामयाब रहे हैं कि चीन के लिए भारत नहीं अमेरिका बड़ा खतरा है । अगर भारत अमेरिकी खेमे में चला गया तो चीन के लिए समस्या हो सकती है। 

    खालिस्तानी नेता पन्नू की हत्या की साजिश करने के नाम पर अमेरिका ने भारत के एक रॉ एजेंट विकास यादव के खिलाफ गिरफ्तारी आदेश जारी कर दिया है। इसके अलावा अमेरिका कनाडा की भारत विरोधी कार्यवाहियों में भी उसका साथ दे रहा है। देखा जाये तो भारत और चीन के बीच तनाव होने के कारण अमेरिका को ऐसा लगता है कि उसके साथ रहना भारत की मजबूरी है। इस मजबूरी के चलते भारत को दबाया जा सकता है। यही कारण है कि ये देश भारतीय हितों के खिलाफ जाकर भारत के दुश्मनों को शरण दे रहे हैं और उनका संरक्षण भी कर रहे हैं। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अपनी राजनीति से भारत ने इन देशों ने जवाब दिया है कि उसके पास और भी विकल्प है। अमेरिका और उसके साथी देशों का साथ उसकी मजबूरी नहीं बन सकता। भारत की इस ताकत को चीन को समझा कर पुतिन उसे भारत के नजदीक ले आये हैं।

चीन की अर्थव्यवस्था इस समय भारी दबाव में है और भारत के साथ सीमा विवाद उसकी अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है। यही बात भारत के लिए भी कही जा सकती है क्योंकि भारत का चीन के साथ व्यापार घाटे में है और इसे भारत बातचीत से सुधारना चाहता है। पुतिन जानते हैं कि इन दोनों देशों में दोस्ती न हो लेकिन दुश्मनी नहीं होनी चाहिए। ब्रिक्स संगठन को मजबूत बनाने के लिए इन दोनों देशों में तनाव खत्म करना जरूरी है। जिस माहौल में भारत-चीन की वार्ता हुई है उससे लगता है कि पुतिन अपनी कोशिश में कामयाब रहे हैं । भारत और चीन ने आगे वार्ता जारी रखने की बात कही है। देखा जाये तो ब्रिक्स का सफल आयोजन करके पुतिन ने अपनी कूटनीति की ताकत पूरी दुनिया को दिखा दी है।  भारत-चीन को साथ लेकर क्या संदेश दे रहे पुतिन