आज नारी की स्थिति का वर्णन अलग-अलग वर्गों में किया जा सकता है। कहीं पर वह सशक्त है, समर्थ है तो कहीं न तो समर्थ है न ही सशक्त परंतु सुखी है। शेष नारियाँ अधीन हैं। हाँ, पुरुषों के अधीन। उसे इस योग्य माना ही नहीं जाता। आज नारी की स्थिति का वर्णन अलग-अलग वर्गों में किया जा सकता है। कहीं पर वह सशक्त है, समर्थ है तो कहीं न तो समर्थ है न ही सशक्त परंतु सुखी है। शेष नारियाँ अधीन हैं।
आज की नारी का सफर चुनौतीभरा जरूर है, पर आज उसमें चुनौतियों से लड़ने का साहस आ गया है। अपने आत्मविश्वास के बल पर आज वह दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है।आज नारी की स्थिति का वर्णन अलग-अलग वर्गों में किया जा सकता है। कहीं पर वह सशक्त है, समर्थ है तो कहीं न तो समर्थ है न ही सशक्त परंतु सुखी है। शेष नारियाँ अधीन हैं। हाँ, पुरुषों के अधीन। वह स्वयं कोई निर्णय नहीं ले सकती या उसे इस योग्य माना ही नहीं जाता।अत: कहा जा सकता है कि वर्तमान में नारी तीन हिस्सों में बँटी हुई है। एक, उच्च वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे सशक्त नारी का दर्जा दिया जा सकता है। वह अपने हित, अपनी हैसियत, अपना लक्ष्य स्वयं तय करती है। यानी वह समर्थ है। उस पर पुरुष का कोई वश नहीं चलता। वह इरादों की पक्की है। आज जिस तरह से नारी की स्थिति को लेकर बताया जाता है वास्तव में ऐसा नहीं है। आज की नारी आर्थिक व मानसिक रूप से आत्मनिर्भर है। परिवार व अपने करियर दोनों में तालमेल बैठाती नारी का कौशल वाकई काबिले तारीफ है। किसी को शिकायत का मौका नहीं देने वाली नारी आज अपनी काबिलीयत व साहस के बूते पर कामयाबी के मुकाम तक पहुँची है। चुनौतियों का हँसकर स्वागत करने वाली महिलाएँ आज हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। कल तक भावनात्मक रूप से कमजोर महिलाएँ आज आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं तथा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले स्वयं कर रही हैं।
शादी के पहले आत्मनिर्भर रहने वाली नारी के जीवन में शादी के बाद अचानक बदलाव-सा आ जाता है। अब उसके लिए अपना करियर व परिवार दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। इस वक्त यदि करियर के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा तो भविष्य अंधकारमय हो सकता है और यदि परिवार की उपेक्षा की तो दांपत्य जीवन। नारी को अपने करियर संबंधी किसी भी निर्णय को लेने से पहले बहुत सोचना-समझना पड़ता है। परिवार के प्रति उसके द्वारा थोड़ी-सी भी कोताही बरतने पर परिवार के सदस्यों की शिकायतें शुरू हो जाती हैं और उस पर कटाक्ष किए जाने लगते हैं। ऐसे में परिवार और कार्यालय में स्वयं को बेहतर सिद्ध करने की वह हरसंभव कोशिश करती है और आदर्श बनकर सबका दिल जीत लेती है। नारी के साथ असुरक्षा की भावना हर जगह होती है। महानगरों में आए दिन होती छेड़छाड़, बलात्कार व हिंसा संबंधी घटनाएँ नारी को भयाक्रांत करने व अपने कदम पीछे लेने को मजबूर करती हैं परंतु उनका मजबूत मनोबल उसे हारने से रोकता है और उसका यही मनोबल निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। नारी के लिए लैंगिक के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक स्तर पर भी असुरक्षा की भावना होती है, सामाजिक स्तर पर परित्यक्ता व विधवा जैसे शब्द उसके मार्ग का रोड़ा बनकर उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं पर इतने पर भी वह अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का सही मौका तलाश ही लेती है और कामयाबी के नित नए कीर्तिमान रचती जाती है। चुनौतियों का हँसकर स्वागत करने वाली महिलाएँ आज हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। कल तक भावनात्मक रूप से कमजोर महिलाएँ आज आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं तथा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले स्वयं कर रही हैं। अपनी क्षमताओं से महिलाओं ने आज पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए परिवार व समाज में एक अलग पहचान बनाई है। आत्मनिर्भर बनकर आज महिलाएँ बाजार की हर चुनौतियों का सामना कर रही हैं।आज महिलायें हर क्षेत्र में पुरुषो से बढ़ कर स्थान प्राप्त कर रही है ।
आज नारी में काफी बदलाव आ गया है। अब नारी महज रसोई तक सिमटी नहीं है, न ही वह भोग्या है। अब वह पुरुष से कहीं आगे निकल चुकी है। नारी का एक वर्ग ऐसा भी है जो संभ्रांत वर्ग की तो है लेकिन वह है परतंत्र। ऊपर से वह स्वतंत्र नजर आती है लेकिन अंदर-अंदर घुटन भरी जिंदगी जीने को विवश है। उसे किचन से लेकर ऑफिस तक हर जगह खपना पड़ता है। सुबह से पति के लिए नाश्ता, टिफिन, फिर बच्चों के लिए और देवर, सास-ससुर के लिए, फिर स्वयं के ऑफिस जाने की तैयारी- क्या-क्या नहीं करना पड़ता है उसे। ऐसी जिंदगी पहले से ज्यादा जटिल हो गई है। पहले तो सिर्फ घर की चहारदीवारी में ही कैद होकर रहना पड़ता था परंतु अब तो घर में घरवालों की सुनो ऑफिस में बॉस की।ऐसा सिर्फ एक जगह नहीं है महानगरों की व्यस्तता भरी जिंदगी में नारी को हर कदम फटकना पड़ता है। प्रतिस्पर्धा के दौर में, आधुनिक एशोआराम की चीजें घर में लाने के चक्कर में नारी को भी उतना ही खपना पड़ता है जितना पुरुष को।किराए के घर में रहने वाला दंपति हो तो घर लेने के लिए, घर ले लिया तो किस्त भरने, घर में आधुनिक जरूरत की सभी चीजों को सहेजने, बच्चों की फीस का इंतजाम करने- कहाँ नहीं खपना पड़ता। एक सामान्य पुरुष का वेतन इतना नहीं होता वह जमाने के साथ तालमेल बिठा सके। इस बात को अच्छी तरह समझते हुए नारी को भी काम ढूँढना पड़ता है।
आज नारी की स्थिति का वर्णन अलग-अलग वर्गों में किया जा सकता है। कहीं पर वह सशक्त है, समर्थ है तो कहीं न तो समर्थ है न ही सशक्त परंतु सुखी है। शेष नारियाँ अधीन हैं। हाँ, पुरुषों के अधीन। उसे इस योग्य माना ही नहीं जाता। इसके बाद नारी का निम्न वर्ग तो आज भी बहुत उपेक्षित है। कामवाली बाई हो या रोजनदारी का कार्य करने वाली- नारी को दिनभर मेहनत-मजदूरी करना पड़ती है। ऐसे निम्न वर्ग में पुरुष अधिकांशत: शराबी, जुआरी ही रहते हैं। घर में मदद तो दूर एक गिलास पानी मटके में से भरकर स्वयं नहीं पीते। फिर ऊपर से नारी को प्रताडि़त करना। मारना-पीटना आम बात है। रोज-रोज झगड़ा करना तो जैसे शगल बन गया है। झुग्गी झोपड़ी में तो और भी भयावह स्थिति है। कहीं-कहीं तो तन ढँकने के कपड़े तक नहीं है। पेट भर खाना जहाँ मुश्किल से मिलता हो वहाँ ऐशोआराम की बात बेमानी है।दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है लेकिन अधिकांश नारी के लिए तो वही चूल्हा-चौका है। आधुनिकता की दौड़ में कहीं-कहीं वह गलत कदम भी उठा लेती है, जिसमें अंत में पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं रहता।नारी के प्रति अपराधों में भी कमी नहीं आ सकी है। वैसे घरेलू अपराध के लिए तो कहीं-कहीं वह स्वयं जिम्मेदार भी है। नारी ही नारी की दुश्मन बनी हुई है। उस पर अत्याचार नारी से शुरू होता है। यदि किसी एक घर में बहू प्रताडि़त होती है तो इसकी कहानी सास-ननद से शुरू होती है। यदि ये सास-ननद-बहू स्वयं समझें तो पुरुष की क्या मजाल जो इन पर अत्याचार कर सके। रहा सवाल घर में नारी के असुरक्षित रहने का तो नारियाँ पहले घर का वातावरण ऐसा मर्यादित बनाएँ कि पुरुष को हर समय अदब से रहने को मजबूर होना पड़े।