—– खत्म हुई अठखेलियाँ —–
दुनिया मतलब की हुई, रहा नहीं संकोच। हो कैसे बस फायदा, यही लगी है सोच॥
औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल। बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल॥
मतलब हो तो प्यार से, पूछ रहे वह हाल। लेकिन बातें काम की, झट से जाते टाल॥
लगी धर्म के नाम पर, बेमतलब की आग। इक दूजे को डस रहे, अब जहरीले नाग॥
नंगों से नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार। बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार॥
हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग। अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥
बचे कहाँ अब शेष हैं, रिश्ते थे जो ख़ास। बस मतलब के वास्ते, डाल रहे सब घास॥
‘सौरभ’ डीoसीo रेट से, रिश्तों के अनुबंध। मतलब पूरा जो हुआ, टूट गए सम्बन्ध॥
तेरी खातिर हों बुरे, नहीं बचे वे लोग। समझ अरे तू बावरे, मतलब का संयोग॥
रिश्तों में है बेड़ियाँ, मतलब भरे लगाव। खत्म हुई अठखेलियाँ, गायब मन से चाव॥ दुनिया मतलब की हुई
—— डॉo सत्यवान ‘सौरभ’