मंत्री-अफसरों की कमीशनखोरी से लागू नहीं हुई क्रय नीति..!

116
मोटी रकम देकर कमाऊ जेल पहुंचे अधीक्षकों पर नहीं होती कार्रवाई!
मोटी रकम देकर कमाऊ जेल पहुंचे अधीक्षकों पर नहीं होती कार्रवाई!

मंत्री-अफसरों की कमीशनखोरी से लागू नहीं हुई क्रय नीति..! कैदियों के लिए खरीदे जा रहे गेहूं-चावल में कमिशन का मोटा खेल । क्रय नीति होने के बाद भी कल्याण निगम से हो रही खरीद खरीद फरोख्त। कमिशन की खातिर चहेते ठेकेदारों से कराई जा रही अनाज व दालों की आपूर्ति। मंत्री-अफसरों की कमीशनखोरी से लागू नहीं हुई क्रय नीति..!

राकेश यादव
राकेश यादव

लखनऊ। कारागार विभाग में कैदियों का भोजन भी विभाग के मंत्री समेत अन्य आला अफसरों की कमाई का जरिया बन गया है। जेलों में गेहूं-चावल की आपूर्ति में कमिशन लेकर मोटी कमाई की जा रही है। कमिशन की खातिर विभागीय अधिकारियों की क्रय नीति बनने के बावजूद गेहूं-चावल की आपूर्ति कल्याण निगम से ही कराई जा रही है। जेलों में बाजार से अधिक दाम पर आपूर्ति किए जाने वाले गेहूं-चावल का यह मामला विभागीय अधिकारियों और कर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है। चर्चा है कि अपरोक्ष रूप से मोटे कमिशन और चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए क्रय नीति तैयार होने के बाद भी जेलों में गेहूं और चावल कल्याण निगम के माध्यम से कराकर सरकार को प्रतिमाह करोड़ों रुपए के राजस्व का चुना लगाया जा रहा है। इस खरीद फरोख्त की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी सामने आ जाएगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश की जेलों में निरुद्ध कैदियों के भोजन के लिए गेहूं-चावल की आपूर्ति कल्याण निगम से कराई जा रही है। सूत्रों का कहना है कि बाजार में गेहूं और चावल का दाम अधिक होने पर कल्याण निगम इसकी आपूर्ति करने में आनाकानी करता है। गेहूं-चावल की आपूर्ति का कार्य बाधित होने से जेल अधिकारियों को तमाम तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। कल्याण निगम से गेहूं-चावल नहीं मिलने पर जेल प्रशासन के अधिकारियों को गेहूं-चावल की आपूर्ति स्थानीय ठेकेदारों से करानी पड़ती है। इससे जेल अधिकारियों को अनाप-शनाप दामों पर गेहूं चावल खरीदने के विवश होना पड़ता है। इससे खासे राजस्व का नुकसान होता है।

सूत्र बताते है कि इस समस्या के निदान के लिए कारागार मुख्यालय ने गेहूं-चावल की खरीद खुद करने का निर्णय लिया। विभाग ने गेहूं-चावल की खरीद के लिए दर्जनों बैठके कर क्रय नीति तैयार करवाई। इसको तैयार कराने में विभाग की ओर से लाखों रुपए व्यय किया गए। मैराथन बैठकों में विचार विमर्श के बाद गेहूं-चावल की खरीद फरोख्त के तैयार की गई क्रय नीति को अनुमोदन के लिए शासन को भेजा गया।

सूत्र बताते है कि शासन ने मुख्यालय की तैयार क्रय नीति को मंजूरी के लिए विभागीय कारागार मंत्री को भेजा। सूत्रों का कहना है कि कारागार मंत्री ने दर्जनों मैराथन बैठके कर तैयार की गई क्रय नीति को नामंजूर करते हुए गेहूं- चावल की आपूर्ति कल्याण निगम से ही कराए जाने का निर्देश देकर कमीशनखोरी पर लगाम लगाए जाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। सूत्रों की माने तो इस खरीद फरोख्त में मंत्री और विभाग के आला अफसरों को मोटा कमिशन मिलता है।

सूत्रों की माने तो कारागार मंत्री, विभाग से जुड़े पूर्व मंत्रियों और कई आला अफसरों के दर्जनों की संख्या में चहेते ठेकेदार प्रदेश की जेलों में गेहूं-चावल के साथ दाल व अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कर रहे है। बताया गया है कारागार विभाग के पूर्व राज्यमंत्री का एक ठेकेदार कन्नौज की एक फर्म से आज भी लखनऊ की जिला जेल में दाल, मस्टर्ड और रिफाइंड ऑयल की मनमाने दामों पर आपूर्ति कर रहा है। सूत्रों की माने तो इनकी कमीशनखोरी बंद न हो जाए इसलिए तैयार क्रय नीति को लागू नहीं किया जा रहा है।

उधर जब प्रदेश के कारागार मंत्री दारा सिंह चौहान से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो कई प्रयासों के बाद भी उनका फोन नहीं उठा। कारागार मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गेहूं चावल की खरीद के लिए क्रय नीति तैयार कर शासन को भेजे जाने की पुष्टि तो की लेकिन इसके अलावा और कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया।

निगम से खरीद के लिए तीन-तीन माह की बढ़ाई जा रही समयावधि!

कारागार विभाग में प्रदेश की जेलों में गेहूं चावल की आपूर्ति मनमाफिक दामों पर करके सरकार का मोटे राजस्व का चुना लगाया जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक विभाग की क्रय नीति बनने के बाद कारागार मंत्री ने निर्देश दिया फिलहाल तीन माह कल्याण निगम से खरीद को जारी रखा जाए। इसके बाद से इसको लगातार तीन-तीन माह के लिए बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान समय में बाजार में जो गेहूं खुलेआम 22 से 25 रुपए और चावल 25 से 30 रुपए में बेचा जा रहा है। वहीं गेहूं प्रदेश की जेलों में 32 से 35 रुपए में और चावल 35 से 37 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदा जा रहा है। इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए तैयार की गई क्रय नीति को मंजूरी न देकर गेहूं चावल की आपूर्ति कल्याण निगम से कराकर प्रतिमाह सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का चुना लगाया जा रहा है। मंत्री-अफसरों की कमीशनखोरी से लागू नहीं हुई क्रय नीति..!