

कृषि पर जलवायु परिवर्तन के असर किस हद तक खतरनाक होने वाला है, इसको लेकर सरकार भी सचेत है। ग्रामीण विकास और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि आईसीएआर ने मिट्टी के क्षरण, वर्षा पैटर्न प्रक्षेपण और फसल की पैदावार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए सिमुलेशन मॉडलिंग अध्ययन किया है। बारिश में होने वाली इस वृद्धि के चलते 2050 तक फसल भूमि से 10 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष की मिट्टी का नुकसान होगा। वहीं अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लवणता प्रभावित क्षेत्र भी 2030 तक 6.7 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 11 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है। देश में इस समय कुल 67.30 लाख हैक्टेयर क्षारीय व लवणीय भूमि है। इसमें ज्यादा 37.70 क्षारीय है और 29.60 लवणीय भूमि है। 20 लाख हैक्टेयर क्षारीय व 70 हजार लवणीय भूमि में सुधार किया है। बचे हुए क्षेत्रफल को सुधारना चुनौती है। क्षारीय भूमि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और बिहार राज्य के काफी क्षेत्र में फैली हुई है। पिछले तीन-चार दशकों में लगभग 1.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र का सुधार होने के बावजूद 2.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में इनका विस्तार एक चिंता का विषय है। बचे हुए क्षारीय क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र केवल उत्तर प्रदेश में ही स्थित है। भारत में बढ़ती खारी जमीन की समस्या
बिना समाधान खाद्यान आत्मनिर्भरता संभव नहीं
जानकारी के अनुसार 20 लाख हेक्टेयर क्षारीय व 70 हजार हेक्टेयर लवणीय भूमि को सुधार कर उपजाऊ बनाया गया है लेकिन बची हुई जमीन को सुधारना चुनौती बड़ी चुनौती है। यदि बंजर भूमि की इस समस्या को खत्म कर लिया गया तो खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अन्य देशों को अनाज निर्यात करके अपनी झोली भर सकेगा। क्षारीय भूमि की समस्या हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और बिहार के काफी क्षेत्र में है। इसका विस्तार होना चिंता का विषय है। देश की कुल बंजर जमीन से यदि उत्पादन का आकलन किया जाए तो हर साल करीब 111.83 लाख टन खाद्यान्न का नुकसान हो रहा है। दलहन, तिलहन व नकदी फसलें इस बंजर भूमि पर उगाई जाएं तो यह नुकसान हर वर्ष करीब 15018 करोड़ रुपये का बनता है। बंजर भूमि में सुधार के लिए करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, पश्चिम बंगाल के कैनिंग टाउन, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गुजरात के भरूच में स्थापित अपने केंद्रों के जरिये कार्य कर रहा है लेकिन किसानों की जागरूकता के बिना इसमें सफलता मिलना संभव नहीं है।
पानी और नमक का प्रबंधन न करना बना रहा जमीन को बंजर
वर्ष 1996-97 के सर्वे के मुताबिक देश में 67.30 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि है। पानी और साल्ट मैनेजमेंट पर ध्यान नहीं देने के कारण हमारे सामने यह स्थिति बनी है। 1966-67 में देश में हरित क्रांति के दौरान किसानों ने फसल में जब पहला पानी लगाया तो पहले के मुकाबले डेढ़ गुना फसल अधिक हुई। फसल में दूसरी बार पानी की मात्रा बढ़ाई तो दो गुनी और तीसरी बार तीन गुनी अधिक फसल हुई। इससे किसानों ने समझ लिया कि जितना अधिक पानी लगाएंगे,फसल अच्छी होगी। जिन क्षेत्रों में भूजल स्तर अधिक था, वहां पर भी किसानों ने फसलों में पानी अधिक लगाया। इससे जहां पर जल स्तर 20 फीट पर था, वहां अब दो से पांच फीट तक आ गया। किसान इसी ढर्रे पर चलते गए और पानी जमा होने की समस्या खड़ी हो गई। ड्रेनेज की तरफ ध्यान न देने और जल प्रबंधन न होना जमीन बंजर होने का प्रमुख कारण है।
एक साल में जमा हो जाता है एक टन नमक
सीएसएसआरआइ के विज्ञानियों के अनुसार धान की फसल में जो सिंचाई हम करते हैं उस पानी के साथ एक साल में एक टन नमक जमीन में जमा हो जाता है। इसी प्रकार गेहूं में आधा टन, कपास में 1.2 टन और गन्ने में दो टन नमक एकत्रित हो जाता है। यदि बरसात अच्छी हो जाती है तो यह नमक जमीन में दो मीटर नीचे चला जाता है और कम बारिश होने पर यह जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करता है और धीरे.धीरे जमीन बंजर बननी शुरू हो जाती है। इसलिए शुरुआत से ही पानी और नमक के प्रबंधन की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए।
क्या है क्षारीय भूमि
इस भूमि में सोडियम कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट तथा सिलीकेट लवणों की अधिकता होती है। विनिमय योग्य सोडियम 15 प्रतिशत से अधिक और पीएच मान 8.2 से अधिक हो तो वह क्षारीय भूमि होती है। इन भूमियों में घुलनशील लवण भूमि की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर के रूप में एकत्रित हो जाते हैं जिस कारण भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।
क्या है लवणीय भूमि
लवणीय भूमि में नमक की मात्रा अधिक होती है। इसमें भी पानी को सोखने की क्षमता कम होती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक हर साल भूजल स्तर एक मीटर नीचे चला जाता है। ट्यूबवेल से कृषि के लिए पानी इसका बड़ा कारण है। जब पानी नीचे चला जाता है तो उस तरफ का पानी जहां भूमि लवणीय प्रभावित है वह निकाले गए पानी की जगह ले लेता है। उस पानी को सिंचाई करते हैं तो भूमि लवणीय हो जाती है।
देश में कब शुरू हुआ था क्षारीय भूमि सुधार कार्यक्रम
क्षारीय भूमि सुधार कार्यक्रम की शुरूआत 1970 के दशक में देश में पंजाब एवं हरियाणा में हुई थी। इसके बाद विश्व बैंक वित्तपोषित योजना के अंर्तगत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित तकनीक के प्रयोग से उत्तर प्रदेश में क्षारीय भूमि सुधार कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया। भूमि सुधार परियोजनाओं का क्रियान्वयन संबंधित राज्यों के भूमि सुधार निगमों एवं दूसरे सरकारी विभागों द्वारा किया जाता है। अभी तक लगभग 1.95 लाख हैक्टेयर क्षारीय भूमि का सुधार किया जा चुका है। जिससे कुल राष्ट्रीय खाद्य उत्पादन में 1.6 करोड़ टन अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन का योगदान संभव हुआ है। भारत में बढ़ती खारी जमीन की समस्या