जेल मुख्यालय में मुँह देखकर बांटे गए प्रशंसा प्रमाण पत्र। 54 को गोल्ड, 46 को सिल्वर, 23 बाबुओं को प्रशंसा प्रमाण पत्र। जितना बेईमान उसको उतना बड़ा सम्मान…!
लखनऊ। जो जितना बड़ा बेईमान उसको उतना बड़ा सम्मान। यह बात जेल मुख्यालय में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्क्रष्ट व सराहनीय कार्यो के लिए महानिरीक्षक कारागार की ओर से दिए गए गोल्ड, सिल्वर प्रशंसा चिन्ह एवम प्रशंसा प्रमाण पत्र के दौरान देखने को मिली। आईजी जेल की ओर से 54 अधिकारियों एवं कर्मचारियों को गोल्ड पदक, 46 को सिल्वर एवम बाबू संवर्ग के 23 कर्मियों को प्रशंसा प्रमाण पत्र दिया गया। मुँह देखकर चयनित किये गए नामों को लेकर मुख्यालय कर्मियों में खासा आक्रोश है। आक्रोशित कर्मचारियों ने जेलमंत्री से इसकी जांच कराए जाने की मांग की है।
क्या जेलमंत्री कराए पदक वितरण की जांच….? जेल मुख्यालय के कर्मियों ने जेलमंत्री धर्मवीर प्रजापति से वितरित किये गए पदक व प्रशंसा प्राण पत्रों की जांच कराए जाने की मांग की है। कर्मियों का कहना है जांच में दूध का दूध पानी सामने आ जायेगा। कर्मियों का आरोप है कि पदक वितरण में बेहतर काम करने वालों को नजर अंदाज करके चहेते कर्मियों को सम्मानित कर दिया गया है।
जेल मुख्यालय की ओर से स्वतंत्रता दिवस के दो दिन पहले 13 अगस्त को उत्कृष्ट व सराहनीय कार्यो के लिए गोल्ड, सिल्वर व प्रशंसा प्रमाण पत्र के लिए अधिकारियों व कर्मचारियों की सूची जारी की। सूची में 54 अधिकारियों व कर्मचारियों को गोल्ड,46 को सिल्वर व 23 को प्रशंसा प्रमाण पत्र दिये जाने की घोषणा की गई। इस सूची में कई ऐसे अधिकारियों व कर्मियों को शामिल किया गया जो विवादों से घिरे हुए है।
सूत्रों का कहना है बाबू संवर्ग की सूची में कई नाम ऐसे है जिन्हें पहले भी यह सम्मान दिया जा चुका है। सूची में एक ऐसा नाम है जो बाबू पिछले करीब 30 साल से लगातार लखनऊ परिक्षेत्र के कार्यालय से जुड़ा हुआ है। इसका न तो कभी तबादला किया जाता है और न ही इसका पटल परिवर्तन किया गया। लखनऊ जेल में 35 लाख नगद बरामदगी की जांच में यह बाबू सुर्खियों में रहा था। इसी प्रकार लंबे समय से घूम फिरकर एक ही कमाऊ पटल पर बने रहने वाले कई बाबुओं को प्रशंसा प्रमाण पत्र दिया गया है। इसमे कई को तो यह सम्मान दोबारा दिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक जेल मुखिया की इस कार्यवाही से बाबू संवर्ग में खासा आक्रोश व्याप्त है। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का आरोप है कि मैं कार्यालय में सबसे वरिष्ठ हूँ। मुझे यह सम्मान क्यों नहीं दिया गया कोई बता पायेगा। चार महीने शेष बचे है। 40 साल बेदाग सेवा रही है मेरी। मैं स्पष्टवादी हूँ। यही मेरा दोष है। एक प्रशासनिक अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि बहुत नाइंसाफी है, आप तो जवाहर लाल नेहरू बन गए, चीन से युद्ध हारने के बाद, स्वयं को भारत रत्न से सम्मानित कर सकते है। उधर इस संबंध में जब एक वरिष्ठ अधिकारी से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कमेटी ने चयन किया है। सम्मानित कर्मी का एक उत्कृष्ट कार्य बताने के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली।