लड़खड़ाती कलम को आज स्याही की दरकार हैं

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लड़खड़ाती कलम को आज स्याही की दरकार हैं।

बहन, बेटियां अपने पारिवारिक जीवन के साथ कैरियर से समझौता करें मैं नहीं मानता।
विनोद यादव

न मैं कवि नहीं हूं न सत्ता का चाटूकार पत्रकार हूं न लेखक हूं।
मैं जब भी लिखता और बोलता हूं तो उस दर्द में गरीबी रहती हैं ।
तो अक्सर लगता है लोगों को मैं जातिए तगमे में सत्ता विरोधी हूं ।
मैं खड़ा हूं सबसे बड़ी कतार में जहां कडकती गर्मी हैं और नोटबंदी की लाईन में लाइब्रेरी बन गया हूं ।
जहां हर तरफ बिखरा पड़ा है असत्य ,नफर ,हिंसा ,भेदभाव ।।
कपोल साहित्य के नयें सृजन सत्ता की खुलकर मुखालफत भी नहीं कर पा रहें हैं ।
यहां गरीबी ,बेरोजगारी , महगाई ,हत्या ,लूट, बलात्कार आए दिन हो रहें हैं ।
मगर हास्य, करुण अथवा श्रृंगार के न जाने कितने लोग साहित्य के दर्शन को छोड़ सत्ता के पुरस्कार में फसे हैं ।
फूट पड़ते हैं प्रति क्षण हमारें रोम रोम में जब तुम्हें झोले में राशन की लगी लाईनों में देखता हूं ।
तुम्हारे स्पर्श मात्र से ही नहीं पूरी हो जाती हैं।
काग़ज़ पर लिखी तमाम अधूरी कहानियां ।
शायद इसीलिए मैं मन की बात न सुनकर तुम्हारे हक की बात लिखता हूं ।
सारी विफलताओं का ढींगरा तुम्हारे ही सर फोडा़ जाना हैं शोषितों ।
इसलिए तुमसे बार बार कह रहा हूं तुम्हीं हाशिये पर हो सभंल जाओ ।
पर न जाने कितना अपार लगाव है कि तुमको तुम्हें घोडी भी चढ़ने नहीं दिया जाता ।
पर सभाओं में नोटबंदी की लाईन में तुम्हें हर बार लाईन में ही खड़ा कर दिया जाता हैं ।
तुम्हारी आंखों में मैं जब भी उन्हें डूबता देखता हूं तो
हर बार तुम्हारे हकों पर डाका लिखता हूं ।
जब भी तुम सड़कों पर होते हो ,खेत खलिहानों में होते हो ।
तो बिखर पड़ती है मेरी आंखों का आंखू तुम्हारे पांव की फटी बेवाई को देखकर ।
मेरी कलम लोग समझते हैं की बागी हैं जनवादी मगर
मैं कोई बड़ा न लेखक हूं न कोई कवि न पत्रकार हूं ।
कभी कभी तो लोगों को ये भ्रम हो जाता है मुझ पर मैं नेता हूं ।
पर सत्य तो ये है न मैं कोई लेखक हूं न ही कोई कवि न पत्रकार ।
मैं वास्तव में एक किसान का बेटा हूं जो विगत कई सालों से इलाहाबाद में रहकर नौकरी की तपिश में तपा हूं ।
मगर हर बार हमारे हकों पर डाका डाला गया और हमें ही चोर साबित किया गया हैं ।
इसलिए दो चार बूंद स्याही खुद तुम्हारे दोहरे चरित्र पर नीर की तरह टपकाता रहता हूं ।
न मैं कोई कवि हूं न सत्ता का चाटूकार पत्रकार हूं न ही लेखक हूं ।।